सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग समय की जरूरत : अग्रवाल
पंचकूला। तकनीक ने हमारे जीवन को जहां सहज और सरल बनाया है, वहीं इसके अति प्रयोग ने कई बार हमें अनावश्यक गतिविधियों में उलझा भी दिया है। वरिष्ठ विचारक हेमंत अग्रवाल ने लोगों से सोशल मीडिया, विशेष रूप से वॉट्सऐप और फेसबुक जैसी सुविधाओं का सोच-समझकर उपयोग करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म, जहां एक ओर सूचना साझा करने का सशक्त माध्यम हैं, वहीं दूसरी ओर इनका गलत इस्तेमाल समाज के समय और ऊर्जा की बर्बादी का कारण बन रहा है।
अग्रवाल के अनुसार, हर सुबह ‘गुड मॉर्निंग’, ‘सुप्रभात’, ‘राम-राम’ या ‘राधे-राधे’ जैसे संदेशों की बाढ़ सोशल मीडिया पर देखने को मिलती है। इनमें से अधिकांश संदेश केवल औपचारिकता होते हैं, जिनका न कोई उद्देश्य होता है और न ही कोई भावनात्मक जुड़ाव। एक क्लिक में सैकड़ों लोगों को भेजे गए ये संदेश न केवल डिजिटल शोर बढ़ाते हैं, बल्कि प्राप्त करने वालों के समय का भी अनावश्यक व्यय करते हैं।
उन्होंने कहा कि यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब इन्हीं संदेशों के बीच कोई महत्वपूर्ण सूचना या संदेश छूट जाता है। यही कारण है कि सोशल मीडिया पर ‘गुणवत्ता बनाम मात्रा’ की बहस और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि देवी-देवताओं के चित्र या धार्मिक संदेश भेजने वालों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि प्राप्तकर्ता की आस्था या मान्यता भिन्न हो सकती है। हर व्यक्ति मूर्तिपूजक नहीं होता, और ऐसे में बिना विचार किए धार्मिक सामग्री साझा करना दूसरों की भावनाओं को ठेस भी पहुंचा सकता है।
हेमंत अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों और भ्रामक जानकारियों पर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि कैसे हर वर्ष फरवरी में “सभी सप्ताहों में चार-चार दिन” जैसी भ्रांतियों को फेंगशुई या दुर्लभ संयोग बता कर हजारों लोग साझा करते हैं, जबकि यह बात सामान्य गणितीय सत्य से ज्यादा कुछ नहीं होती। ऐसी गलत जानकारियां न केवल लोगों को भ्रमित करती हैं, बल्कि सोशल मीडिया की विश्वसनीयता को भी कमजोर करती हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि किसी को अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं या स्नेह जताना ही है, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से संदेश भेजा जाना चाहिए। थोक में प्रसारित किए गए संदेश न तो भावनात्मक जुड़ाव बनाते हैं, न ही उनका कोई गहरा प्रभाव होता है। सोशल मीडिया आज के समय की आवश्यकता है, परंतु इसका विवेकपूर्ण, मर्यादित और उपयोगी प्रयोग ही इसे सार्थक बना सकता है। समाज को चाहिए कि वह इसके माध्यम से केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान ही न करे, बल्कि सकारात्मक संवाद, विचार-विमर्श और रचनात्मक संवाद के लिए भी इस मंच का उपयोग करे। तभी डिजिटल युग में सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन सही मायनों में संभव होगा।
सोशल मीडिया आज के समय की आवश्यकता है, परंतु इसका विवेकपूर्ण, मर्यादित और उपयोगी प्रयोग ही इसे सार्थक बना सकता है। समाज को चाहिए कि वह इसके माध्यम से केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान ही न करे, बल्कि सकारात्मक संवाद, विचार-विमर्श और रचनात्मक संवाद के लिए भी इस मंच का उपयोग करे। तभी डिजिटल युग में सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन सही मायनों में संभव होगा।
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