किसने की थी पहली बार छठ पुजा ? छठ पर्व के रीति- रिवाजों की पुरी जानकारी ! हेमंत किगर
छठ पूजा, जो दीपावली के छह दिनों के बाद मनाई जाती है, एक प्रमुख भारतीय पर्व है। यह विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह चार दिवसीय पर्व भगवान सूर्य को समर्पित है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है। आइए, छठ पूजा के इतिहास, इसकी पहली पूजा और इसके महत्वपूर्ण रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
पहली छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा की शुरुआत से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। मान्यता है कि सबसे पहली छठ पूजा माता सीता ने की थी। जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष के वनवास से लौटे, तब माता सीता ने मुद्गल ऋषि के आश्रम में छह दिनों तक सूर्य देव की पूजा की। यह पूजा रावण के वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए की गई थी। उसी समय से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई।
इसके अलावा, महाभारत में यह भी कहा गया है कि भगवान सूर्य के पुत्र कर्ण ने भी इस पूजा का पालन किया। कर्ण अपनी भूमि पर घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। इसी तरह, द्रौपदी ने भी अपने पति पांडवों के लिए इस पूजा का आयोजन किया, जिससे उन्हें अपना खोया हुआ राज्य वापस मिला।
कठिनाई और महत्व
छठ पूजा एक कठिन व्रत है, जिसमें व्रति को 72 घंटे तक निर्जला रहना पड़ता है। इसमें डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए ठंडे पानी में घंटों खड़ा रहना भी शामिल है। इस पूजा में पवित्रता और निष्ठा के प्रति एक विशेष समर्पण की आवश्यकता होती है, क्योंकि किसी भी नियम का उल्लंघन पूरे व्रत को खंडित कर सकता है।
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक उत्सव भी है, जो लोगों को एक साथ लाता है। यह प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है। इसे मनाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास किया जाता है।
छठ पूजा 2024 की तिथियां
इस साल छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर 2024 को नहाय-खाय से होगी, इसके बाद
खरना: 6 नवंबर 2024
संध्या सूर्य अर्घ्य: 7 नवंबर 2024
प्रातः सूर्य अर्घ्य: 8 नवंबर 2024
पारण: 8 नवंबर 2024
छठ पूजा के रीति-रिवाज
छठ पूजा की प्रक्रिया चार दिनों में होती है-
नहाय-खाय: पहला दिन नहाय-खाय कहलाता है। इस दिन भक्त स्नान करते हैं और खास भोजन तैयार करते हैं, जिसमें चावल, अरवा दाल और कद्दू शामिल होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को पवित्र करना और पूजा की तैयारी करना होता है।
खरना: दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन व्रति उपवास रखती हैं और दिनभर फल-फलों का सेवन करती हैं। शाम को पूजा के दौरान गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है, जिसे परिवार के सदस्यों के साथ बांटा जाता है।
संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है। भक्त सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दौरान विशेष रूप से ठेकुआ और अन्य पकवान तैयार किए जाते हैं।
सुबह अर्घ्य: अंतिम दिन सुबह सूर्योदय के समय पुनः अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इस समय लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं।
इसलिए, छठ पूजा केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को जोड़ने और मानवता के लिए एकता का प्रतीक है।
#chathpooja #bihar #pourvanchalkatyohaar
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!