आखिर कैसे रिकॉर्ड हुआ हाथी मेरे साथी फिल्म का गाना नफरत की दुनिया छोड़कर खुश रहना मेरे यार
किस्सा साल 1970 का है। ये राजेश खन्ना साहब के स्टारडम का शिखर था। 1969 में आई उनकी फिल्म अराधना ज़बरदस्त हिट रही थी। और अराधना के गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए थे। अराधना में किशोर दा और रफी साहब, दोनों ने राजेश खन्ना जी के लिए गाया था। लेकिन किशोर दा के गाए गीत कुछ ज़्यादा ही मशहूर हुए। राजेश खन्ना इस बात से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने ऐलान कर दिया कि अब से फिल्मों में मेरे गीत किशोर कुमार ही गाएंगे।
खैर, अब आता है साल 1970। राजेश खन्ना फिल्म हाथी मेरे साथी की शूटिंग शुरू करते हैं। और इस फिल्म का गीत-संगीत संभालते हैं एलपी यानि लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। राजेश खन्ना की ख्वाहिश के मुताबिक किशोर दा को इस फिल्म के सभी गीत गाने के लिए साइन कर लिया जाता है। किशोर दा भी बड़ी कुशलता से सारे गीत रिकॉर्ड करते हैं। सिवाय एक को छोड़कर।
काफी रिहर्सल के बाद भी उस गीत में जिस दर्द की ज़रूरत थी, वो किशोर दा नहीं ला पा रहे थे। इस वजह से संगीत का उतार-चढ़ाव भी ठीक तरह से नहीं हो पा रहा था। जब काफी देर हो गई तो लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी को लगने लगा कि इस गाने को फिल्म से ही हटा दिया जाए।
मगर हाथी मेरे साथी फिल्म के प्रोड्यूसर चिनप्पा देवर इस बात के लिए कतई तैयार नहीं थे। वो हर हाल में इस गीत को फिल्म में रखना चाहते थे। क्योंकि उन्हें यकीन था कि ये गीत जब आएगा तो सिनेमाघरों में आई पब्लिक के आंसू बह निकलेंगे।
किशोर दा को जब पता चला कि प्रोड्यूसर साहब इस गाने को नहीं हटाना चाहते तो उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी से कहा,”मुझसे तो ये गीत नहीं गाया जा रहा है। इस गीत के साथ कोई न्याय कर सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ रफी साहब हैं।
उनसे बात कीजिए। उन्हें मनाइए।” लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को भी ये बात समझ में आ गई। लेकिन मसला ये था कि उन्हें ये भरोसा नहीं हो पा रहा था कि रफी साहब भी ये गीत गाने को तैयार होंगे या नहीं।
दरअसल, फिल्मी दुनिया में जब किसी आर्टिस्ट को पहली दफा में कोई काम नहीं दिया जाता तो इसे खराब बात समझा जाता है। एलपी की जोड़ी को भी यही डर था कि रफी साहब कहीं इन्कार ना कर दें। मगर बात तो उन्हें रफी साहब से करनी ही थी।
सो वो मन में संकोच लिए रफी साहब से मिलने गए और उनसे हाथी मेरे साथी फिल्म का ये गीत गाने की गुज़ारिश की। रफी साहब तो रफी साहब थे। महान इंसान। कमाल की शख्सियत। उन्होंने बिना कोई सवाल-जवाब किए हामी भर दी।
फिर रफी साहब ने ये गीत रिकॉर्ड किया। और कुछ ऐसे रिकॉर्ड किया कि जब फिल्म में ये गीत लोगों ने सुना तो उनकी आंखों से अश्रूधारा फूट पड़ी। और तब की तो बात छोड़िए। आज भी जब कोई ये गीत सुनता है तो उसकी आंखें नम हो जाती हैं। ये गीत था ‘नफरत की दुनिया को छोड़कर प्यार की दुनिया में। खुश रहना मेरे यार।’
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