योगा डे कड़वा सच : एक दिन का योग नहीं, रोज का अभ्यास ही बनाएगा निरोग
योगा डे आयोजन में पारदर्शिता पर भी सवाल
11 वे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर दिखी चमक और चुप्पी दोनों
नई दिल्ली रीतेश माहेश्वरी
विश्वभर में 11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे उत्साह और भव्यता के साथ मनाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में योग करके इस अभियान का नेतृत्व किया, वहीं केंद्र सरकार के सभी केंद्रीय मंत्री अलग-अलग स्थानों पर योग करते नजर आए। हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कुरुक्षेत्र में बाबा रामदेव के साथ योग किया, इसी जगह पर राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय भी योगाभ्यास में शामिल हुए। इस आयोजन की तैयारियाँ कई दिनों पहले से शुरू हो चुकी थीं।
लेकिन इस बीच एक सवाल बार-बार उभर कर सामने आता है — क्या साल में एक दिन योग करने से हम निरोग रह सकते हैं? या फिर यह महज एक प्रतीकात्मक आयोजन बनकर रह गया है?



अच्छे स्वास्थ्य का रोजाना योग ही है असली समाधान
बाबा रामदेव सहित तमाम योगाचार्य वर्षों से यही कहते आ रहे हैं कि योग को जीवनशैली का हिस्सा बनाना जरूरी है। चाहे योग 10 मिनट करें या 20, लेकिन नियमित योग ही तन और मन को स्वस्थ रख सकता है। एक दिन की भीड़, कैमरों के सामने योगासन और बड़ी घोषणाएं तभी सार्थक होंगी जब आम लोग इसे अपनी दिनचर्या में उतारेंगे।
प्रचार की चमक, पर योग का असर कहां?
प्रत्येक वर्ष योग दिवस पर बड़े-बड़े विज्ञापन, सरकारी आयोजन और सामाजिक मंचों पर योग के लाभों का प्रचार किया जाता है। पर सवाल यह है कि क्या इससे लोगों में योग के प्रति आदत विकसित हो रही है, या यह सिर्फ एक दिन की रस्म अदायगी बनकर रह गया है?
आयोजन में पारदर्शिता पर सवाल
योग दिवस को लेकर एक और चिंताजनक पहलू है—भ्रष्टाचार। सूत्रों के मुताबिक, कई आयोजनों में भाग लेने वालों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। जैसे मान लेते हैं किसी जगह पर 500 लोग योग के लिए आए और उनके लिए नाश्ता जूस वगैरा वितरित हुआ, लेकिन बिल हजारों लोगों का बना दिया जाता है। फलों, जूस, मंच व्यवस्था और अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर अनगिनत बिल पास किए जाते हैं। यह सब सरकारी खर्चे पर और सार्वजनिक धन से किया जाता है, लेकिन उसकी निगरानी का कोई तंत्र नजर नहीं आता। यह कोई एक जगह की बात नहीं ज्यादातर जगहों पर यही हाल है पर ना कोई कहने वाला है और ना ही कोई सुनने वाला , और लिखने वालों की तो आत्मा पहले ही मर चुकी है ।
क्या यह योग की आत्मा से मेल खाता है?
योग न केवल शरीर की शुद्धि का, बल्कि आचरण की शुद्धि का भी विज्ञान है। जब उसी योग के नाम पर फर्जीवाड़ा और लाभ उठाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है, तो यह पूरे अभियान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।
11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भव्य आयोजनों के बीच संपन्न हो गया, और अब जल्द ही 12वें योग दिवस की तैयारियां भी शुरू हो जाएंगी। फिर वही रिकॉर्ड तोड़ने की होड़, वही प्रचार और शायद वही आरोप। लेकिन यदि वाकई हम समाज को निरोग बनाना चाहते हैं, तो ज़रूरत है कि योग को रोज का अभ्यास बनाया जाए — न कि केवल एक दिन की औपचारिकता। योग दिवस को अभियान नहीं, आदत बनाना ही उसका असली उद्देश्य होना चाहिए।
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