“बिना पतझड़ बसंत नहीं आता”*हिन्दी पट्टी में मुहब्बत की दुकान पर भारी पड़ा सनातन का पंच*
*खरी – अखरी*
*जो जीता वही सिकंदर*
*हिन्दी पट्टी में भाजपा – दक्षिण में कांग्रेस तो पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय पार्टी जेडपीएम*
*हिन्दी पट्टी के तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा के बीच था तो वहीं दक्षिणी राज्य तेलंगाना में कांग्रेस और बीआएस के बीच सीधी टक्कर थी । पूर्वोत्तरीय राज्य मिजोरम में मुख्य मुकाबला क्षेत्रीय पार्टी सत्ताधारी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और विपक्षी पार्टी जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के बीच है। हिन्दी पट्टी के राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि वहां भाजपा सरकार बनाने जा रही है तो दक्षिणी राज्य तेलंगाना में कांग्रेस का राज्याभिषेक होने जा रहा है। इसी तरह मिजोरम में विपक्षी पार्टी रही जोरम पीपुल्स मूवमेंट राज्य की लगाम सम्हालने जा रही है।*
*हिन्दी पट्टी में मुहब्बत की दुकान पर भारी पड़ा सनातन का पंच*
*मध्य प्रदेश में भाजपा अपनी सरकार को बनाये रखने में सफल रही है। राजस्थान की जनता ने अपनी सत्ता परिवर्तन के रिवाज को कायम रखते हुए पांच साल बाद फिर भाजपा को सत्ता सौंपी है । वहीं छत्तीसगढ़ में भाजपा ने 2018 में कांग्रेस से हुई पराजय का बदला ले लिया है । दक्षिण में एकबार फिर से कांग्रेस अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए सत्तारूढ़ होने जा रही है। यहां भाजपा के हाथ सत्ता से बहुत दूर थे फिर भी वह पिछले चुनाव की अपेक्षा ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हुई है । वहीं पूर्वोत्तर के मिजोरम में कोई भी राष्ट्रीय पार्टी सरकार बनाने के करीब नहीं है। यहां एकबार फिर क्षेत्रीय दल सरकार बनाने जा रही है।*
*किससे पूछें हम कि लहू बरसा कि पानी बरसा*
*लोग बच्चों की तरह ख़ुश हैं कि बरसात हुई*
*मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि यहां पर शिवराज सिंह चौहान के 18 साल की प्रशासनिक कुव्यवस्था पर चुनाव के अंतिम चरण में खेला गया लाड़ली बहना का ईमोशनल कार्ड गेम चेंजर साबित हुआ है। इसके अलावा कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच परदे के पीछे का गुणा-भाग अपने – अपने पुत्र को मुख्यमंत्री बनाने की लालसा ने भी कांग्रेस को एकबार फिर पांच साल के लिए सत्ता से दूर कर दिया है।*
*मुख्यमंत्री के चेहरे से शिवराज सिंह चौहान को दूर कर तथा कैलाश विजयवर्गीय, नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटैल जैसे मुख्यमंत्रित्व चेहरों को बतौर विकल्प चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा ने जनता के बीच शिवराज सिंह चौहान को लेकर फैली नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया था जिसमें भाजपा सफल रही है। वहीं कांग्रेस ने अधिकांश जगहों पर जनापेक्षा को दरकिनार करते हुए एकबार फिर उन्हीं बासी – तिबासी चेहरों को टिकिट दी थी जिन्हें मतदाताओं ने 2018 के चुनाव में नकार दिया था।*
*कांग्रेस आलाकमान यह भूल गया था कि 2018 के चुनाव में पार्टी को सत्तारूढ़ कराने में कमलनाथ से ज्यादा ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे का योगदान था और सत्ता मिलते ही उसी चेहरे को दरकिनार कर दिया गया था। जिसका खामियाजा भी तब भुगतना पड़ा था। फिर भी कांग्रेस आलाकमान ने कोई न तो सबक सीखा और न सिंधिया की भरपाई करने की कोई तैयारी ही की। कहते हैं न कि “बिना पतझड़ बसंत नहीं आता”। यही कांग्रेस में भी लागू होता है। आज में कांग्रेस के हालातों के लिए उम्रदराज नेता ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने युवा बसंतों को आने से रोका हुआ है।*
*मध्य प्रदेश में सामने आया जनमत इस बात की ओर इंगित कर रहा है कि प्रदेशवासियों की मानसिकता पर मंहगाई, बेरोजगारी, यौनाचार, माफियाओं की गुंडागर्दी आदि के ऊपर कहीं न कहीं धार्मिकता की अफीम ज्यादा असरदार रही है।*
*नहीं बन सका मंहगाई – बेरोजगारी चुनावी मुद्दा*
*ऐसी ही कहानी थी छत्तीसगढ़ और राजस्थान की। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्तासीन कराने में भूपेश बघेल के साथ ही टी एस सिंहदेव का बराबर से योगदान था तथा बारी – बारी से दोनों को मुख्यमंत्री पद नवाजे जाने का फार्मूला तय किया गया था। मगर जब कुर्सी हस्तांतरण का समय आया तो भूपेश बघेल तो मुकरे ही मुकरे आलाकमान ने भी सिंहदेव के साथ विश्वासघाती रवैया ही अपनाया और तब लगा था कि सरकार अब गई – तब गई। प्रदेश भर में सुरसा की तरह मुंह पसारती शराबखोरी को लेकर महिलाओं द्वारा किये गये आन्दोलन की अनदेखी भी कांग्रेस की पराजय का एक कारक बनकर सामने आया है।*
*कुछ देर की खामोशी है फिर कानों में शोर होगा*
*तुम्हारा तो सिर्फ वक्त है हमारा तो दौर होगा*
*जैसे 2013 में सत्तारुढ़ रही भाजपा के स्थान पर राजस्थानी रिवाज के मुताबिक 2018 में कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई थी वैसे ही अभी 2023 में भाजपा सत्तारूढ़ होने जा रही है इसमें न कोई मोदी मैजिक का करिश्मा है न ही कोई भाजपाई योगदान। फिर भी कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में सचिन पायलट के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ा था मगर जब सत्ता मिली तो नवजवान सचिन पायलट को किनारे कर उम्रदराज अशोक गहलोत को कुर्सी सौंप दी गई। यहां पर भी सचिन पायलट की मजबूत दावेदारी को देखते हुए छत्तीसगढ़ के फार्मूले की तरह बारी – बारी से मुख्यमंत्री बनाना तय किया गया था मगर राजस्थान में भी कांग्रेस आलाकमान ने अपने मानसिक दिवालियापन को ही दिखाया था। राजस्थान पांच साल तक जादूगर गहलोत और जमूरे पायलट की नूरा कुश्ती को ही देखता रहा। जब चुनाव सिर पर आया तो कांग्रेस आलाकमान ने अशोक और सचिन की गलबहियों वाली फोटोज शेयर कर जनता को भरमाने की कोशिश की मगर कालनेमी को भी पीछे छोड़ने वाले ने जनता को ईमोशनल ब्लैकमेल करने के लिए सचिन के मरहूम पिता राजेश पायलट की एंट्री चुनाव में ऐसे समय करा दी जब कांग्रेस के पास डेमेज कंट्रोल करने का समय ही नहीं बचा था । वैसे भी राजस्थान में हुए सत्ता परिवर्तन से न तो भाजपा को ज्यादा खुशी मनाने की जरूरत है न ही कांग्रेस को ज्यादा मातम मनाने की, क्योंकि राजस्थानी रिवाज के मुताबिक 2028 में भाजपा की बिदाई और कांग्रेस की अगवानी तय है।*
*कांग्रेस को मिली संजीवनी*
*रही बात तेलंगाना की तो यहां पर भाजपा पिछले 5 साल से अपने लिए जमीन ही तलाश रही है। मोदी में फिलहाल अभी इतना माद्दा नहीं है कि वह दक्षिण में अपने बूते मोदी मैजिक चला कर भाजपा की सरकार बनवा सके। अविभाजित तेलंगाना (आन्ध्रप्रदेश) में कांग्रेस सत्तारूढ़ रह चुकी है। तेलंगाना बनने के बाद वहां केसीआर की सरकार इसलिए बनी कि तेलंगाना बनाने में केसीआर का भी योगदान था। तेलंगाना में कांग्रेस की जड़ें पहले से जमी थीं केवल कुछ समय के लिए मुरझा गई थी जिसे कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सींचा है उसी का फायदा अब कांग्रेस को 2023 के विधानसभा चुनाव में मिला है और वह सरकार बनाने जा रही है।*
*क्षेत्रीय पार्टी सब पर भारी*
*लालदुहोमा द्वारा गठित नई नवेली क्षेत्रीय पार्टी जोरम नेशनलिस्ट पार्टी ने जोरम पीपुल्स मूवमेंट में शामिल होकर 2018 में विधानसभा चुनाव लड़ा था और पहलीबार ही दूसरी लारजेस्ट पार्टी बनकर सामने आई थी। सत्ता पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) की एंटीइनकमबेंसी का सीधा फायदा जोरम पीपुल्स मूवमेंट को मिल रहा है और वह स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है।*
*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*
_स्वतंत्र पत्रकार_
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