क्या 9 जून को इतिहास अपने आप को दोहराएगा
2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद के कार्ड छप गए थे पर शपथ ली मनमोहन सिंह ने
कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है , पर हर बार यह कहावत सही हो ऐसा भी नहीं है । इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अबकी बार 400 पार के नारे के साथ मैदान में थी पर स्थितियां उलट गई और भाजपा बहुमत से पीछे रह गई । यह अलग बात है कि एनडीए गठबंधन को बहुमत मिल गया । पर इतिहास की किताबों को अगर देखे तो एक बार ऐसा हुआ है कि राष्ट्रपति आवास में प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण के इनविटेशन कार्ड एक नाम के साथ छप गए थे परंतु शपथ किसी दूसरे नाम ने ली ।
भाजपा का नहीं चला इंडिया शाइनिंग का नारा और फिर
यह बात है साल 2004 की जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी और वाजपेई सरकार के मुख्य कर्ताधर्ता लालकृष्ण आडवाणी को इस बात का भरोसा था कि जनता इस बार एक बार फिर अटल को चुने जा रही है और नारा दिया गया था इंडिया साइनिंग । 2004 लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ‘शाइनिंग इंडिया’ नारे के साथ उतरी। इसके जवाब में सोनिया गांधी की कांग्रेस ने नारा दिया- ‘आम आदमी को क्या मिला?’ 13 मई को नतीजे आए तो बीजेपी 138 सीटों पर सिमट गई। 145 सीटों के साथ क्या 9 जून को इतिहास अपने आप को दोहराएगा
2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद के कार्ड छप गए थे पर शपथ ली मनमोहन सिंह ने
कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है पर हर बार यह कहावत सही हो ऐसा भी नहीं है । इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अबकी बार 400 पर के नारे के साथ मैदान में थी पर स्थितियां उलट गई और भाजपा बहुमत से पीछे रह गई यह अलग बात है कि एनडीए गठबंधन को बहुमत मिल गया । पर इतिहास की किताबों को अगर देखे तो एक बार ऐसा हुआ है कि राष्ट्रपति आवास में प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण के इनविटेशन कार्ड एक नाम के साथ छप गए थे परंतु शपथ किसी दूसरे नाम ने ली ।
यह बात है साल 2004 की जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी और वाजपेई सरकार के मुख्य कर्ताधर्ता लालकृष्ण आडवाणी को इस बात का भरोसा था कि जनता इस बार एक बार फिर अटल को चुने जा रही है और नारा दिया गया था इंडिया साइनिंग । 2004 लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ‘शाइनिंग इंडिया’ नारे के साथ उतरी। इसके जवाब में सोनिया गांधी की कांग्रेस ने नारा दिया- ‘आम आदमी को क्या मिला?’ 13 मई को नतीजे आए तो बीजेपी 138 सीटों पर सिमट गई। 145 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पर सरकार बनाने के लिए 272 सीटें चाहिए थीं।
उधर राष्ट्रपति भवन में अब्दुल कलाम इंतजार कर रहे थे, लेकिन किसी भी दल ने 3 दिन तक सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। जेवियर मोरो सोनिया गांधी की बायोग्राफी ‘द रेड साड़ी’ में लिखते हैं कि 15 मई को कांग्रेस ने सोनिया गांधी को अपने संसदीय दल का नेता चुन लिया। एक पत्रकार ने सोनिया से पूछा- क्या संसदीय दल का नेता ही अगला पीएम होगा? सोनिया बोलीं- परंपरा तो यही है ।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अपनी किताब ‘टर्निंग पॉइंट- ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज’ में लिखते हैं कि, ‘18 मई की दोपहर 12:15 बजे सोनिया गांधी मुझसे मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंचीं। मुझे बताया कि सरकार बनाने के लिए उनके पास पर्याप्त नंबर है। हालांकि उस वक्त वो दस्तखत किए हुए समर्थन पत्र साथ नहीं लाई थीं। उन्होंने ( सोनिया गांधी ) कहा कि कल समर्थन पत्र के साथ वो फिर मेरे पास आएंगीं।’
सोनिया और कलाम की इस मीटिंग के बाद राष्ट्रपति भवन में चिटि्ठयां और आमंत्रण टाइप किए जाने लगे । उन पत्रों में सोनिया गांधी को पीएम मानकर इनविटेशन लिखे गए थे। कलाम सोनिया को शपथ दिलाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन शाम तक पता चला कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। उनकी जगह मनमोहन सिंह के नाम का ऐलान हो गया।
यह बात थी 2004 की तब यूपीए गठबंधन से मनमोहन सिंह ने सत्ता संभाली थी और 10 साल तक लगातार यूपीए गठबंधन ने राज किया । उसके बाद 2014 में यूपीएस सरकार चली गई और एनडीए सरकार आई नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने 10 साल लगातार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने रहे । अब तीसरी बार भले भाजपा सबसे बड़ी पार्टी हो पर बहुमत से दूर है और सरकार गठबंधन की शपथ कल यानी 9 जून को लेने जा रही है । तो शुरुआती सवाल एक बार फिर , कि क्या इतिहास अपने आप को एक बार फिर से दोहराएगा क्योंकि एनडीए गठबंधन ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुना है पर भाजपा दल की बैठक खबर लिखे जाने के वक्त तक नहीं हुई है ना ही भाजपा सांसदीय दल ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुना है । सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पर सरकार बनाने के लिए 272 सीटें चाहिए थीं।
उधर राष्ट्रपति भवन में अब्दुल कलाम इंतजार कर रहे थे, लेकिन किसी भी दल ने 3 दिन तक सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। जेवियर मोरो सोनिया गांधी की बायोग्राफी ‘द रेड साड़ी’ में लिखते हैं कि 15 मई को कांग्रेस ने सोनिया गांधी को अपने संसदीय दल का नेता चुन लिया। एक पत्रकार ने सोनिया से पूछा- क्या संसदीय दल का नेता ही अगला पीएम होगा? सोनिया बोलीं- परंपरा तो यही है ।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अपनी किताब ‘टर्निंग पॉइंट- ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज’ में लिखते हैं कि, ‘18 मई की दोपहर 12:15 बजे सोनिया गांधी मुझसे मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंचीं। मुझे बताया कि सरकार बनाने के लिए उनके पास पर्याप्त नंबर है। हालांकि उस वक्त वो दस्तखत किए हुए समर्थन पत्र साथ नहीं लाई थीं। उन्होंने ( सोनिया गांधी ) कहा कि कल समर्थन पत्र के साथ वो फिर मेरे पास आएंगीं।’
सोनिया और कलाम की इस मीटिंग के बाद राष्ट्रपति भवन में चिटि्ठयां और आमंत्रण टाइप किए जाने लगे । उन पत्रों में सोनिया गांधी को पीएम मानकर इनविटेशन लिखे गए थे। कलाम सोनिया को शपथ दिलाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन शाम तक पता चला कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। उनकी जगह मनमोहन सिंह के नाम का ऐलान हो गया।
यह बात थी 2004 की तब यूपीए गठबंधन से मनमोहन सिंह ने सत्ता संभाली थी और 10 साल तक लगातार यूपीए गठबंधन ने राज किया । उसके बाद 2014 में यूपीए सरकार चली गई और एनडीए सरकार आई नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने 10 साल लगातार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने रहे । अब तीसरी बार भले भाजपा सबसे बड़ी पार्टी हो पर बहुमत से दूर है और सरकार गठबंधन की शपथ कल यानी 9 जून को लेने जा रही है । तो शुरुआती सवाल एक बार फिर वही , कि क्या इतिहास अपने आप को एक बार फिर से दोहराएगा क्योंकि एनडीए गठबंधन ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुना है पर भाजपा दल की बैठक खबर लिखे जाने के वक्त तक नहीं हुई है ना ही भाजपा सांसदीय दल ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुना है ।
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