दुष्कर्मी दरिंदे को जीने का अधिकार क्यों?
आप जानते हैं कि देश की अदालतों में गवाहों और सबूतों के आधार पर न्यायाधीश अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए फैसला सुनाते हैं। जरूरी नहीं कि यह फैसला सभी पक्षों को स्वीकार हो। पिछले साल अगस्त में एक महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या के मामले में भी ऐसा हो रहा है।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित सरकारी आरजीकर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पिछले साल अगस्त में एक महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए संजय रॉय को सियालदह की अदालत ने हाल ही में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है । इस फैसले पर कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है। इसके पीछे कारण है कि आरजी कर अस्पताल की प्रशिक्षु चिकित्सक की जिस प्रकार से वीभत्स तरीके से हत्या की गयी थी, वो काफी दिलदहलाने वाला था। एक तरह से दिल्ली के निर्भया कांड की तरह था और यही कारण था कि इस दर्दनाक घटना से पूरे देश में आक्रोश फैल गया। चिकित्साकर्मियों व डॉक्टरों समेत आम लोगों ने लंबे समय तक विरोध-प्रदर्शन भी किए थे। सीबीआई की तरफ से कोर्ट से फांसी की मांग भी की गई थी। यही कारण था कि सभी को लग रहा था कि आरोपी को मृत्युदंड मिल सकती है, लेकिन कोर्ट ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर नहीं माना है। इसलिए संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। साथ ही 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि वह मृतका के परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा दे। कोर्ट ने फैसला सुनाते समय कहा कि ये कोई मामूली अपराध नहीं है, लेकिन कोर्ट ने इसे रेयरेस्ट ऑफ द रेयर नहीं माना है।
इस फैसले से न तो पीड़िता के माता-पिता, न राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, न राज्य की विपक्षी पार्टियां और न ही मामले की जांच कर रही एजेंसी सीबीआई खुश है। सभी को लग रहा है कि इस मामले में अधूरा न्याय हुआ है। अगर पीड़िता के माता -पिता की बात करें, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि उन्हें कंपनसेशन नहीं बल्कि न्याय चाहिए। वह दोषी को मौत की सजा चाहते हैं। साथ ही उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए सवाल उठाए। पीड़िता की मां ने कहा कि मेरी बेटी को अस्पताल में ड्यूटी के दौरान दुष्कर्म कर मार डाला गया। क्या यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर घटना नहीं है? सीबीआई इसे साबित करने में विफल रही। यही कारण है कि दोषी को फांसी की सजा नहीं मिली। पीड़िता के पिता ने अदालत के फैसले को न्याय की ओर पहला कदम बताया। उन्होंने कहा कि हमें अभी पूरा न्याय नहीं मिल पाया। पीड़िता के पिता ने मुआवजा लेने से इनकार करते हुए कहा कि हम अपनी बेटी को इस तरह बेच नहीं सकते। असली अपराधियों को सजा मिलने से ही हमारी बेटी की आत्मा को शांति मिलेगी।
सीबीआई पर सवाल
पीड़िता के माता-पिता ने पहले भी सीबीआई की जांच पर सवाल उठाए थे। उनका मानना है कि संजय अकेले यह अपराध नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि आरजी कर अस्पताल के पूर्व प्रधानाचार्य संदीप घोष और टाला थाना के पूर्व ओसी अभिजीत मंडल को गिरफ्तार करने के बावजूद सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल नहीं की। परिवार ने अदालत से अपील की है कि मामले की और गहराई से जांच होनी चाहिए। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के फैसले पर खुलकर अपनी निराशा व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि वह इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि हम सभी ने मृत्युदंड की मांग की थी, लेकिन अदालत ने आजीवन कारावास दिया। उन्होंने कहा है कि अगर यह मामला राज्य पुलिस के पास रहता तो हम सुनिश्चित करते कि उसे मौत की सजा मिले। बनर्जी ने भी जांच को लेकर सीबीआई पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मामला जबरन हमसे छीन लिया गया। अगर कोलकाता पुलिस ने जांच की होती तो नतीजा अलग होता।
बंगाल की सीएम ममता ने बलात्कार और हत्या के आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए ‘अपराजिता’ विधेयक विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित करवाया था। इस विधेयक में फास्ट- ट्रैक कोर्ट के माध्यम से त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए मसौदा कानून यौन हिंसा के मामलों को संभालने के लिए समर्पित विशेष अदालतों की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया है। विधेयक में जिला स्तर पर एक विशेष टास्क फोर्स के गठन की बात कही गई है, जिसका नेतृत्व पुलिस उपाधीक्षक करेंगे। यह टास्क फोर्स महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बलात्कार और अन्य अत्याचारों के मामलों की जांच पर ध्यान केंद्रित करेगी। कानून में बार-बार अपराध करने वालों के लिए आजीवन कारावास का प्रस्ताव है, साथ ही परिस्थितियों के अनुसार मृत्युदंड की संभावना भी है।
विधेयक में पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा, कानूनी प्रक्रिया के दौरान उनकी गोपनीयता और गरिमा सुनिश्चित करने के प्रावधान शामिल हैं। विधेयक में न्याय में देरी के लिए पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है जो तुरंत कार्रवाई करने में विफल रहते हैं या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी लापरवाही के लिए लिए अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना है। साफ है कि ममता सरकार रेप और हत्या के मामले में दोषियों के विरुद्ध सख्त सजा चाहती है, ऐसे में इस मामले में सीएम ममता की निराशा को समझा जा सकता है।
फैसले पर राजनीति
अब इस मामले में राजनीति भी शुरू हो गयी है। बीजेपी ने कोर्ट के इस फैसले को न्याय का मजाक बताया है। भाजपा के अनुसार फैसले के खिलाफ अपील की जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपराधी को बचाना बंद करना चाहिए। सबूतों को नष्ट करने में तत्कालीन कोलकाता कमिश्नर और मुख्यमंत्री की भूमिका की भी जांच करने की जरूरत है। न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। सीबीआई भी कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है। ऐसे में अगर कोई भी पक्ष कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वे इसको उच्च अदालत में ले जा सकते हैं।
इन सबके बीच हकीकत यह है कि तमाम कड़े कानूनों के बाद भी देश में महिलाएं प्रतिदिन असुरक्षा भरे माहौल से जूझने को मजबूर हैं। बड़ी-बड़ी बातों के अतिरिक उन्हें कुछ नहीं मिलता। दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा होना त्वरित न्याय के प्रतिमान गढ़ने वाला साबित हो सकता है। मगर दोषियों पर हाथ ही डालने में कोताही क्यों हो रही है। सबसे नीचे के आरोपी पर कड़ी कार्रवाई कर लीपापोती की आदतों का प्रतिफलन है, गंभीर अपराधों में संलिप्त दोषियों का छुट्टा घूमते रहना। बात यहां रात्रि पाली में काम करने वाली महिलाओं तक सीमित नहीं है। यह हर नागरिक की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। यदि आपराधिक प्रवृत्ति वाले ऐसे दरिंदों को भी जीने का अधिकार दिया जाएगा तो दरिंदगी और बर्बरता से भरी आरजीकर कॉलेज जैसी वारदातों में कमी नहीं आएगी। (विनायक फीचर्स)
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