SIR प्रक्रिया के दौरान क्यों दे रहे हैं BLO अपनी जान !
पश्चिम बंगाल में वोटरों की रहस्यमयी बढ़ोतरी पर सियासी तकरार तेज
बिहार चुनाव के बाद में देश के 10 से ज्यादा राज्यों में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है इस प्रक्रिया के दौरान देश के कई राज्यों में बूथ लेवल ऑफिसर ( BLO ) ने अपनी जान दे दी है इस पर भी विवाद छिड़ा हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ SIR के दौरान पश्चिम बंगाल से घुसपैठियों और शरणार्थियों के बांग्लादेश जाने की खबरें भी मीडिया की सुर्खिया बन रही है ।
पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में पिछले दो दशकों के दौरान हुई असामान्य बढ़ोतरी को लेकर सियासत गरमा गई है। चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया ने राज्य के 10 जिलों में मतदाताओं की अप्रत्याशित वृद्धि पर नया विवाद खड़ा कर दिया है। इनमें से 9 जिले बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं, जिससे घुसपैठ, शरणार्थी और जनसंख्या बदलाव की चर्चाओं ने और जोर पकड़ लिया है।
23 साल में 66% बढ़े मतदाता, 10 जिलों में वृद्धि 70% से ज्यादा
2002 में राज्य में कुल 4.58 करोड़ वोटर दर्ज थे, जो अब बढ़कर 7.63 करोड़ हो चुके हैं। इस दौरान जिलों की संख्या 18 से बढ़कर 23 हुई, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि जिन 10 जिलों में मतदाता 70% से ज्यादा बढ़े, उनमें बीरभूम को छोड़कर सभी बांग्लादेश सीमा के निकट हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सबसे तेज वृद्धि उत्तर दिनाजपुर में दर्ज की गई, जहां वोटरों की संख्या में 105% का उछाल आया। मालदा में 94%, मुर्शिदाबाद में 87%, दक्षिण 24 परगना में 83% और जलपाईगुड़ी में 82% वृद्धि देखी गई। राजधानी कोलकाता इसके बिल्कुल उलट, 23 साल में सिर्फ 4.6% बढ़ोतरी दर्ज कर सिमट गया।
बीजेपी बोली—सीमा पार घुसपैठ, TMC ने दिया पलटवार
अचानक बढ़े लाखों वोटरों पर अब राजनीतिक तकरार अपने चरम पर है। भाजपा नेता राहुल सिन्हा का आरोप है कि “बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए राजनीतिक संरक्षण पाकर बड़ी संख्या में वोटर सूची में शामिल किए गए”, जिससे राज्य की डेमोग्राफी बदल गई है।
वहीं सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस इन आरोपों को राजनीतिक प्रोपेगेंडा बताते हुए कह रही है कि सीमा पार से आने वाले हिंदू शरणार्थियों को भाजपा ही वर्षों से समर्थन देती रही है। टीएमसी नेता अरूप चक्रवर्ती ने दावा किया कि “बांग्लादेश में उत्पीड़न के कारण हिंदू शरणार्थी पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में बसे। बीजेपी इन्हीं शरणार्थियों के वोट से कूचबिहार, अलीपुरद्वार और वनगांव जीतती रही है।”
वाम मोर्चा ने दोनों पक्षों पर साधा निशाना
सीपीएम नेता एमडी सलीम ने बढ़ती आबादी के लिए सीमा पार आने वाले लोगों के अलावा स्थानीय बर्थ रेट और कस्बाई विकास को भी जिम्मेदार बताया। उन्होंने बीएसएफ की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि “सिर्फ घुसपैठ का आरोप लगाकर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देना गलत है।” वाम दलों का मानना है कि शरणार्थी सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं, बल्कि वर्षों से दोनों ओर से आवागमन रहा है।
SIR से साफ होगी तस्वीर?
राज्य की राजनीति भले ही आरोप-प्रत्यारोप में उलझी हो, लेकिन SIR प्रक्रिया से पहली बार वोटर लिस्ट का विस्तृत सत्यापन होगा। सीमा से लगते इलाकों में वोटरों की अचानक बढ़ोतरी का कारण घुसपैठ है, या फिर उत्पीड़न के चलते आए शरणार्थी—यह अगले कुछ महीनों में स्पष्ट हो सकता है।
फिलहाल, पश्चिम बंगाल में मतदाता संख्या को लेकर उठे सवाल चुनावी राजनीति में बड़ा मुद्दा बन चुके हैं, जिसका असर आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक देखा जा सकता है।
SIR प्रक्रिया के दौरान क्यों दे रहे हैं BLO अपनी जान ?
SIR के दौरान बढ़ा काम का बोझ ?
देशभर में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) अभियान के बीच ब्लॉक लेवल ऑफिसर्स (BLO) की लगातार सामने आ रहीं मौतों ने चुनावी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात और राजस्थान तक, कई राज्यों में BLO के आत्महत्या करने या अचानक निधन की खबरों के बाद सियासी तापमान बढ़ गया है। परिजनों का आरोप है कि अत्यधिक कार्यभार और तंग समयसीमा ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया।
काम का दबाव बना जानलेवा?
पश्चिम बंगाल में हाल ही में आत्महत्या करने वाले BLO के परिवार ने आरोप लगाया कि SIR के दौरान उन पर तय समय में काम पूरा करने का असहनीय दबाव था। मध्य प्रदेश के दतिया में उदयभान और झाबुआ में भुवन सिंह चौहान की मौत ने भी इसी तरह के सवाल उठाए। कुछ राज्यों में BLO बीमार पड़ रहे हैं, जबकि कई अपनी जान गंवा चुके हैं। चुनावी कामकाज में लगे इन कर्मचारियों की मौतें पहली बार इतनी बड़ी संख्या में सामने आई हैं, जिससे व्यवस्थागत खामियों पर चर्चा तेज हो गई है।
राज्यों में विरोध और हड़ताल की तैयारी
केरल में BLO यूनियनों ने सोमवार से काम का बहिष्कार करने की घोषणा की है। उनका कहना है कि SIR ने काम का बोझ कई गुना बढ़ा दिया है, जबकि संसाधन और स्टाफ पहले से ही सीमित हैं। अन्य राज्यों में भी विरोध के स्वर उभरने लगे हैं।
राजनीति गरमाई, ममता ने SIR रोकने की मांग की
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पूरी स्थिति को ‘अत्यधिक और अमानवीय कार्यबल दबाव’ बताया और SIR अभियान को तत्काल रोकने की मांग की है। विपक्ष भी चुनाव आयोग पर सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या BLO की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था है या नहीं।
चुनाव आयोग ने मांगी रिपोर्ट
मौतों पर बढ़ते विवाद के बीच चुनाव आयोग ने संबंधित राज्यों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। आयोग का कहना है कि किसी भी अधिकारी या कर्मचारी की जान जाना बेहद गंभीर मुद्दा है और इसकी जवाबदेही तय होगी। साथ ही, SIR प्रक्रिया की मॉनिटरिंग भी बढ़ाई जाएगी।
SIR के दौरान हुए हादसों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि देश की विशाल चुनावी मशीनरी का बोझ अक्सर कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा पड़ता है। क्या कार्यप्रणाली में बदलाव होगा, समयसीमा घटाई जाएगी या BLO को अतिरिक्त सहायता मिलेगी—इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में सामने आएंगे।
फिलहाल, इन मौतों ने यह बहस तो शुरू कर ही दी है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की मतदाता सूची तैयार करने वाले लोगों की सुरक्षा और गरिमा का क्या?




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