विकास या आस्था : विकास चाहिए तो विनाश के लिए भी रहिए तैयार !
हे भगवान : अब आप भी छुट्टी पर चले जाओ !
केशव भुराड़िया
विकास और विनाश का द्वंद्व: आधुनिक भारत की असली चुनौती
भारत आज विकास की तेज़ रफ़्तार पर दौड़ रहा है। गगनचुंबी इमारतें, चौड़ी सड़कें, पहाड़ों को चीरकर बनाए जा रहे राजमार्ग और सुरंगें, बिजली से लेकर डिजिटल नेटवर्क तक—हर जगह आधुनिकता का बोलबाला है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विकास प्रकृति और आस्था की कीमत पर हो रहा है? क्योंकि जब-जब बारिश का कहर टूटता है, नदियाँ उफान पर आती हैं और पुल ढह जाते हैं, तब लोग भगवान को दोषी ठहराने लगते हैं। असल में, कहीं न कहीं यह हमारी ही चुनौती है, जो हमने सीधे-सीधे प्रकृति को दी है। लेकिन हर बार जब प्रकृति अपनी शक्ति का परिचय देती है, तब यह सवाल और गहरा हो जाता है—क्या यह विकास प्रकृति और आस्था की कीमत पर हो रहा है?
बरसात का मौसम आते ही यह सवाल और प्रासंगिक हो उठता है। नदियों का उफान, पुलों का ढहना, गाँवों का संपर्क कटना और श्रद्धालुओं का आस्था स्थलों तक पहुँचने में असमर्थ होना हमें सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं न कहीं यह संकट हमने खुद ही न्योता है।
उत्तर भारत में मूसलधार बारिश का कहर
उत्तर भारत फिलहाल लगातार मूसलधार बारिश की मार झेल रहा है। पंजाब, हरियाणा, जम्मू उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर तक जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है।
- कई पुल बह गए हैं।
- सैकड़ों सड़कें टूटकर बंद पड़ी हैं।
- गाँवों और कस्बों का आपसी संपर्क पूरी तरह कट गया है।
कई जगहों पर घरों में आठ-आठ फुट तक पानी भर जाने की खबरें हैं ।
हज़ारों लोग स्कूलों, मंदिरों और सामुदायिक भवनों में शरण लेने को मजबूर हैं। प्रशासन एवं समाजसेवी लोगों की तरफ से राहत व बचाव कार्य जारी है, लेकिन मौसम विभाग ने अगले 24 घंटे और कठिन हालात बनने की चेतावनी दी है।
इतिहास से सबक: जब विकास ने आस्था को चुनौती दी
भारत का इतिहास गवाह है कि जब भी इंसान ने प्रकृति और आस्था से टकराने की कोशिश की, तब उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी।
- केदारनाथ त्रासदी (2013): भीषण बाढ़ और भूस्खलन में हज़ारों लोग मारे गए, लेकिन मंदिर अडिग रहा। इसे आज भी लोग ईश्वर की शक्ति और चेतावनी मानते हैं।
- टनल हादसा (2023, उत्तराखंड):उत्तराखंड में एक सुरंग निर्माण के पहले एक प्राचीन मंदिर को हटाया गया। निर्माण के दौरान उसमें 40 से ज्यादा मजदूर फंस गए । दुनिया भर से बड़ी-बड़ी मशीनरी मजदूरों को निकालने के लिए पहुंच गई पर सब फेल हो गई । मजदूरों के फँसने के बाद राहत कार्य तभी सफल हुआ जब उस मंदिर की पुनःस्थापना की गई।
- कालका-शिमला रेललाइन (ब्रिटिश काल): इतिहास की किताबें बताती है कि कालका शिमला रेल लाइन बिछाने के दौरान अंग्रेज़ों ने एक हनुमान मंदिर को हटाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। अंततः उन्हें रेललाइन का मार्ग बदलना पड़ा।
- माँ वैष्णो देवी: इसी महीने कटरा से माता वैष्णो देवी मंदिर मार्ग पर लगातार भूस्खलन और पत्थरों की बारिश हुई, कई श्रद्धालुओं की दुखद मौत हुई , लेकिन मंदिर परिसर पूरी तरह सुरक्षित रहा।श्रद्धालु इसे माँ की दिव्य शक्ति मानते हैं।
- चंडीगढ़ – मनाली फोरेलेन हाईवे: सरकार ने फोरलेन निर्माण के दौरान सतलुज नदी के प्रवाह को संकरा कर दिया। परिणामस्वरूप अब हर वर्ष बरसात में नदी अपना पुराना मार्ग बनाकर तबाही मचाती है, मानो प्रकृति ने अपना रास्ता खुद चुन लिया हो।
- पंचवक्त्र मंदिर, मंडी (हिमाचल प्रदेश): जून 2023 में ब्यास नदी में आई भीषण बाढ़ ने कुल्लू-मनाली और मंडी ज़िले में भारी तबाही मचाई। होटल, मकान और सड़कें बह गईं, लेकिन 300 साल पुराना भगवान शिव का पंचवक्त्र मंदिर जलप्रलय में भी अडिग खड़ा रहा। दो दिन तक मंदिर पानी में डूबा रहा और 15 फीट मलबा अंदर जमा हो गया, जिसमें शिवलिंग और मूर्ति दब गई। फिर भी मंदिर की संरचना को कोई नुकसान नहीं पहुँचा। स्थानीय लोग इसे भगवान शिव की कृपा और मंदिर की अनोखी वास्तुकला का परिणाम मानते हैं, जैसे 2013 की केदारनाथ त्रासदी में मंदिर बचा था।
- शोर मंदिर, महाबलीपुरम (तमिलनाडु): 2004 की सुनामी में समुद्र की लहरों ने सीधे मंदिर को टक्कर मारी, लेकिन मंदिर को मामूली नुकसान ही हुआ। मज़बूत शिलान्यास ने इसे बचाए रखा, जबकि आसपास की रेत पर बनी कई संरचनाएँ बह गईं। सुनामी के बाद दबे हुए प्राचीन अवशेष भी सामने आए, जिसने मंदिर की दिव्यता और ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ा दिया।
ये उदाहरण दिखाते हैं कि आधुनिकता चाहे कितनी भी तेज़ क्यों न हो, आस्था और प्रकृति के साथ टकराव अंततः संकट ही लाता है।
क्या भगवान नाराज़ हैं या इंसान की ग़लती?
जब आपदा आती है तो आमजन इसे भगवान की नाराज़गी मानते हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि यह सब जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और अव्यवस्थित विकास का परिणाम है।
दोनों दृष्टिकोणों में एक साझा बिंदु है—मानव की ग़लतियाँ ही आपदा का मूल कारण हैं।
इतिहास में पहली बार रुकी वैष्णो देवी यात्रा
माता वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा केंद्र मानी जाने वाली माँ वैष्णो देवी यात्रा इतिहास में पहली बार बारिश के कारण रोकनी पड़ी है। और लगातार 8 दिन तक यह यात्रा रुकी रही है ।
कटरा से भवन तक जाने वाले मार्ग पर लगातार भूस्खलन और पत्थर गिरने से 34 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इसके बाद प्रशासन को मजबूरी में यात्रा रोकनी पड़ी।
अब तक कभी नहीं हुआ कि बरसात के मौसम में यह यात्रा स्थगित की गई हो। यह बदलता परिदृश्य न केवल आस्था को झकझोरता है बल्कि यह भी बताता है कि प्रकृति के सामने इंसानी योजनाएँ कितनी कमज़ोर पड़ जाती हैं।
सिर्फ वैष्णो देवी नहीं—कई यात्राएँ ठप
- चारधाम यात्रा (उत्तराखंड): भारी बारिश और भूस्खलन से बाधित।
- मणिमहेश यात्रा (हिमाचल): धार्मिक आस्था का केंद्र, लेकिन इस बार मानसून ने यहाँ भी रास्ते बंद कर दिए।
- किं्नर कैलाश यात्रा (हिमाचल): दुर्गम मार्ग पर लगातार बारिश के चलते यात्रा स्थगित करनी पड़ी।
इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब एक साथ इतनी धार्मिक यात्राएँ बारिश की वजह से ठप हो गईं।
मानसून की मार और बंद होते भगवान के दरबार
सिर्फ बड़े तीर्थ स्थल ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के अनेक छोटे-बड़े मंदिरों और धार्मिक मार्गों को भी बंद करना पड़ा है। जगह-जगह सड़कों का कटना और पुलों का बहना लोगों को भगवान के दरबार तक पहुँचने से रोक रहा है।
यह स्थिति बताती है कि अव्यवस्थित विकास, बिना पर्यावरणीय अध्ययन के निर्माण और लापरवाह शहरीकरण अब सीधे आस्था पर चोट पहुँचा रहे हैं।
आमजन की पुकार: “हे भगवान, अब तो आप भी छुट्टी ले लो”
उत्तर भारत में जारी भारी बारिश ने जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। कहीं स्कूलों में छुट्टियाँ कर दी गई हैं तो कहीं दफ़्तरों में कर्मचारियों को घर से काम करने की सलाह दी जा रही है। ऐसे में आमजन अब मज़ाकिया अंदाज़ में भी अपनी पीड़ा व्यक्त करने लगे हैं।
सोशल मीडिया पर लोग मज़ाक में लिख रहे हैं— “हे भगवान, अब तो आप भी छुट्टी ले लो, कब तक बरसोगे? हमें तो स्कूल और दफ़्तर से छुट्टी मिल गई, अब आपकी बारी है।”
यह मज़ाक भले ही हल्का लगे, लेकिन इसके पीछे गहरी चिंता छिपी है। जब इंसान हर जगह असहाय हो जाता है, तब उसकी नज़र भगवान की ओर ही उठती है।

आगे का रास्ता क्या ? संतुलित विकास ही समाधान
उत्तर भारत की मौजूदा तबाही हमें यह स्पष्ट संदेश देती है:
- प्रकृति से छेड़छाड़ महँगी पड़ सकती है।
- आस्था और सांस्कृतिक धरोहरों का सम्मान करन ज़रूरी है।
- अव्यवस्थित निर्माण और अनियंत्रित शहरीकरण पर रोक लगानी होगी।
- संतुलित विकास और पर्यावरणीय संवेदनशीलता ही भविष्य की राह है।
विकास ज़रूरी है। लेकिन अगर यह प्रकृति और आस्था की अनदेखी करके होगा, तो हर बरसात हमें विनाश का भयावह चेहरा दिखाएगी।
इसीलिए कहा जा सकता है—
“विकास चाहिए तो विनाश के लिए भी हमें तैयार रहना होगा ।”
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