पंचकुला में विधायक चंद्र मोहन के जन्मदिन पर रहा सन्नाटा !
2024 वाली रौनक अब गई कहां ?
पंचकुला, 13 सितंबर
वैसे तो किसी को अपना जन्मदिन मनाना या ना मनाना यह उसका निजी फैसला होता है । पर जब व्यक्ति सार्वजनिक / राजनीतिक जीवन में होता है , तो उसकी हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है । क्योंकि हर एक गतिविधि का अपना अपना महत्व होता है । ऐसे में अगर राजनीतिक व्यक्ति और वह भी सिटिंग विधायक अगर अपना जन्मदिन ना मनाएं और समर्थक उनके घर पर जन्मदिन की शुभकामनाएं। देने ना पहुंचे तो इसके अलग-अलग मतलब निकल लिए जाते हैं । कुछ ऐसा ही पंचकूला के विधायक चंद्र मोहन के साथ शनिवार को उनके जन्मदिन पर हुआ ।
पिछले साल 2024 में पंचकुला विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के तत्कालीन प्रत्याशी और वर्तमान विधायक चंद्र मोहन के समर्थन में उनके समर्थक अखबारों में दो-दो और तीन-तीन पन्नों के विज्ञापन छपवाते थे। उस समय लोग यह कहने लगे थे कि “जीएंगे तो चंद्र मोहन के लिए, मरेंगे तो चंद्र मोहन के लिए।” राजनीतिक उत्साह और जनसमर्थन का माहौल शहर के हर कोने में दिखाई देता था।
लेकिन 2025 आते-आते स्थिति पूरी तरह बदल गई है। कल शनिवार 13 सितंबर, चंद्र मोहन का जन्मदिन था , और पिछले साल की रौनक इस बार कहीं नहीं दिखाई पड़ी । इस बार न तो किसी अखबार में विधायक के लिए शुभकामना संदेश छपा, न ही शहर के चौक-चौराहों पर उनके समर्थकों ने कोई शुभकामना के लिए बोर्ड लगवाया।
इस बदलाव को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि शायद पिछले दिनों इसी अखबार द्वारा भाजपा के एक नेता द्वारा अपने जन्मदिन पर बिना प्रशासन की अनुमति से 100 से अधिक बोर्ड लगाने की खबर प्रकाशित करने के बाद समर्थकों ने यह कदम पीछे रखा हो। भाजपा के नेता के अवैध बोर्ड को लेकर प्रशासन पर भी सवाल उठ चुके हैं कि आखिरकार उस नेता को नोटिस क्यों नहीं जारी किया गया। जबकि बोर्ड अवैध तौर पर लगाए गए थे ।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इस वर्ष जन्मदिन पर किसी तरह की सार्वजनिक गतिविधियों में कमी के पीछे कई कारण हो सकते हैं—शायद रणनीतिक राजनीतिक सोच, शायद पिछले साल की मीडिया कवरेज का असर। हालांकि, विधायक के निवास स्थान पर भी स्थिति शांतिपूर्ण रही, और केवल कुछ ही समर्थक जन्मदिन की शुभकामनाएं देने उनके घर पहुंचे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चंद्र मोहन के समर्थकों की गतिशीलता और चुनावी माहौल में बदलाव ने इस बार जन्मदिन समारोह की झलक ही नहीं दी। यह स्थिति दर्शाती है कि राजनीतिक समर्थन कभी स्थायी नहीं होता और स्थानीय राजनीति में बदलाव तेजी से आ सकता है।
पंचकुला की राजनीतिक हलचल और समर्थक गतिविधियों में आया यह बदलाव आगामी चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है। सवाल यह उठता है कि क्या चंद्र मोहन अगले चुनाव में अपने पुराने उत्साही समर्थकों को फिर से जुटा पाएंगे या 2025 का यह शांत माहौल उनके राजनीतिक करियर पर असर डालेगा।
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