पंचकूला भाजपा धीरे-धीरे बढ़ रही गुटबाजी के शिकंजे में
तरुण भंडारी, अजय मित्तल, रेखा शर्मा और ज्ञानचंद गुप्ता की खींचतान में पिस रहा आम कार्यकर्ता
लगातार सीएम के दौरों से कार्यकर्ता और जनता दोनों नाखुश, पर सामने आकर बोलने को कोई तैयार नहीं
पंचकूला में विपक्ष की कमजोरी बन रही है संजीवनी
पंचकूला
हरियाणा विधानसभा चुनाव में ज्ञानचंद गुप्ता की हार के बाद पंचकूला भाजपा अब धीरे-धीरे गुटबाजी की चपेट में आती दिख रही है। संगठन के भीतर अब कई धड़े उभरते नजर आ रहे हैं, जिनमें मुख्यमंत्री के करीबी तरुण भंडारी, राज्यसभा सांसद रेखा शर्मा, पंचकूला भाजपा अध्यक्ष अजय मित्तल और पूर्व विधायक ज्ञानचंद गुप्ता प्रमुख नाम हैं। इनके इर्द-गिर्द अपने-अपने समर्थक सक्रिय हो गए हैं। इसके अलावा भी कुछ नेता हैं जो खुद को इन खेमों में शामिल करवाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें स्वीकार्यता नहीं मिल रही। या फिर अपना अलग गुट बनाने की कोशिश में भी लगे हुए हैं ।
इधर, मुख्यमंत्री के बार-बार पंचकूला दौरे से कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ती जा रही है। हालांकि कैमरे के सामने कोई भी खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है, क्योंकि सभी जानते हैं कि अगर किसी कार्यकर्ता ने कह दिया कि मुख्यमंत्री के बार-बार आने से परेशानियां होती हैं, तो अगली ही सुबह उसकी संगठनात्मक जिम्मेदारी से छुट्टी तय है। इसका उदाहरण ऐसे देखा जा सकता है कि बीते दिनों पंचकूला में समस्या समाधान शिविर में पिंजौर भाजपा की महिला कार्यकर्ता ने एक शिकायत दर्ज करवा दी थी । खबर मीडिया में छपी । उसके बाद उस महिला कार्यकर्ता पर संगठन में अंदर खाने जबरदस्त वाला दबाव बनाया गया कि यह खबर मीडिया में क्यों गई और अंततः वही हुआ उसके पास जो जिम्मेदारी थी , उससे उसको हाथ धोना पड़ा ।
दूसरी ओर, व्यापारियों और आम जनता को भी सीएम प्रोटोकॉल के कारण असुविधा झेलनी पड़ रही है। व्यापार प्रभावित हो रहा है और ट्रैफिक व रूट डायवर्जन से आम लोगों को भी दिक्कत हो रही है। वहीं, भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ता इन दौरों में केवल फोटो खिंचवाने तक सीमित नजर आते हैं।
अब बात गुटबाजी की
पंचकूला भाजपा में मुख्य तौर पर इस समय कर नेताओं के गुट देखे जा रहे हैं हालांकि कुछ और नेता भी अपना अलग अलग गुट बनाने की लाइन में लगे हुए हैं पर मुख्य तौर पर गुटबाजी में इन्हीं चार नेताओं का नाम लिया जा रहा है ।
1. तरुण भंडारी का गुट
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सबसे करीबी माने जाने वाले नेता और वर्तमान में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के करीबी तरुण भंडारी आजकल पंचकूला भाजपा में काफी प्रभावशाली भूमिका में हैं। संगठन के ज्यादातर कार्यकर्ता उनके करीब जाने की कोशिश में लगे हुए हैं, जिससे पंचकूला भाजपा में उनका एक अलग गुट बन गया है।

2. रेखा शर्मा का प्रभाव
दूसरे गुट में राज्यसभा सांसद रेखा शर्मा का नाम लिया जा रहा है। रेखा शर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। वह पहले राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। मौजूदा समय में उनका अधिकांश समय पंचकूला में बीतता है। कार्यकर्ता उनके साथ भी नजदीकी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। कई कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर रेखा शर्मा का सर पर हाथ रहेगा तो भविष्य में कहीं ना कहीं किसी न किसी पोस्ट पर तो एडजस्टमेंट मिल ही जाएगी ।

3. अजय मित्तल का अलग रुख
भाजपा के पंचकूला जिलाध्यक्ष अजय मित्तल के आने के बाद से गुटबाजी और भी स्पष्ट रूप से सामने आने लगी है। सूत्रों के अनुसार, पहले कभी भी पंचकूला भाजपा में इतनी खुलेआम गुटबाजी नहीं देखी गई। मित्तल की मीडिया से दूरी भी चर्चा का विषय रही है। उन्होंने कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की हैं लेकिन औपचारिक रूप से मीडिया से खबर लिखे जाने तक आधिकारिक तौर पर संवाद नहीं किया।

4. विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी ज्ञानचंद गुप्ता सक्रिय
हरियाणा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और पंचकूला से दो बार विधायक रहे ज्ञानचंद गुप्ता भी अभी भी संगठन में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। हाल ही में उन्होंने सुबह-सुबह अधिकारियों को बुलाकर पार्क में बैठक करके यह संदेश देने की कोशिश की, कि हार के बावजूद उनका जज्बा कायम है। इससे उनके पुराने समर्थक ( जिन्होंने नए आका ढूंढ लिए थे ) असमंजस में हैं—वे अब तय नहीं कर पा रहे कि नया नेतृत्व चुने या फिर दोबारा गुप्ता जी की ओर लौटें।

जनता और व्यापारी वर्ग भी परेशान
पंचकूला भाजपा की अंदरूनी राजनीति से इतर, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बार-बार पंचकूला आने से व्यापारी वर्ग भी नाराज है। हर दौरे में सुरक्षा और प्रोटोकॉल की सख्ती के चलते प्रशासनिक अधिकारी पूरी तरह मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में व्यस्त हो जाते हैं, जिससे सामान्य कार्य बाधित होते हैं और आम जनता को खासी परेशानी उठानी पड़ती है।
धीरे-धीरे बढ़ती गुटबाजी भाजपा पर हावी हो सकती थी, लेकिन विपक्ष की कमजोरी बन रही है संजीवनी
पंचकूला भाजपा में लगातार गहराती गुटबाजी संगठन को कमजोर कर सकती थी, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा। इसकी एक बड़ी वजह है – क्षेत्र में मजबूत विपक्ष का न होना। सांसद और विधायक दोनों भले ही कांग्रेस कोटे से हों, लेकिन उनकी सक्रियता और उपस्थिति की कमी साफ नजर आती है। जनता को उनकी अनुपस्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
तो वही जननायक जनता पार्टी अब लगभग अस्तित्वहीन हो चुकी है, और इनेलो भी केवल राजनीतिक उपस्थिति बनाए रखने के लिए संघर्ष करती दिख रही है। और अगर बात आम आदमी पार्टी की जाए तो पंचकूला में अभी शुरुआती दौर में ही है । ऐसे में पंचकूला में विपक्ष का स्वरूप लगभग शून्य जैसा हो गया है। यही कारण है कि भाजपा के भीतर चल रही गुटबाजी को नेता गुटबाजी मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं, क्योंकि उन्हें साफ दिख रहा है कि उनके अश्वमेध रथ को रोकने वाला सामने मैदान में कोई नहीं है। नतीजा यह है कि संगठन की अंदरूनी लड़ाई भी फिलहाल बाहर से “सामंजस्य” ही लग रही है।
वहीं मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बार-बार पंचकूला दौरों से न तो शहर को कोई ठोस लाभ हो रहा है और न ही आम जनता को राहत मिल रही है। इतिहास में अगर जाकर देखा जाए तो जब कभी मुख्यमंत्री किसी क्षेत्र में आते थे तो वहां की सड़कें चमकती थीं, सफाई व्यवस्था सुधरती थी और एक सकारात्मक बदलाव महसूस होता था। लेकिन अब, चूंकि मुख्यमंत्री का बार-बार आना आम बात हो गई है, तो अधिकारियों के लिए भी यह एक सामान्य दिनचर्या बन चुकी है। वे यह सोचते हैं कि सीएम साहब तो फिर आ ही जाएंगे।
इस पूरे परिदृश्य में सबसे ज्यादा नुकसान जनता का हो रहा है। जब अधिकारी सारा समय मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में व्यस्त रहेंगे, तो फिर आम जनता की समस्याएं कौन सुनेगा?
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