देश के दुश्मन दो नहीं, अब तीन हैं: आर-पार की जंग और शहीद मंदिरों की चुनौती
“सीमाओं से परे: देश के अंदर के हिस्से में पर्यटन की साज़िश”
“तीसरा युद्धक्षेत्र: जब देश का दुश्मन आता है”
भारत आज दो नहीं, तीन मोर्चे चल रहे हैं – बाहरी आतंक, सीमा पार के दुश्मन और अंदर छिपा ‘आधा मोर्चा’। पहलगाम आतंकवादी हमलों ने जहां सुरक्षा पर सवालिया निशान, वहीं पंजाब-हरियाणा जल विवाद ने संघीय व्यवस्था को झकझोर दिया। देश की एकता को एकताबद्ध साज़िशों से चुनौती मिल रही है, जिसमें कुछ राजनीतिक और असमानता समूह शामिल हैं। अब आवश्यकता है स्पष्ट नेतृत्व, सशक्त केंद्र-राज्य संवाद और वादी राष्ट्रविरोधियों की पहचान की। यह लड़ाई असल में सरहद की नहीं, आत्मा की भी है-भारत को जोड़ने और दुख की।
–डॉ. सत्यवान सौरभ
भारत के भूगोल और जटिल समाजशास्त्र ने उसे हमेशा दोतरफ़ा संघर्ष की ज़मीन पर रखा है – एक किनारे के पार के शत्रु, और दूसरी तरफ के किनारे के भीतर के विचारात्मक विष। अब वह समय आ गया है जब यह द्विध्रुवी युद्ध त्रिध्रुवी हो चुका है। अब लड़ाई सिर्फ पाकिस्तान और चीन से नहीं, वह ‘अधे मार्च’ भी है जो देश की एकता को अंदर से खोखला कर रहा है। पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले, भारत-पाक तनाव और उसी दौरान पंजाब-हरियाणा के बीच नंगल बांध को लेकर उपजी ताजा विवाद इस बात का प्रतीक है कि देश बाहरी नहीं, अब आंतरिक साजिशों से ज्यादा परेशान है।
पहलगाम की त्रासदी: आतंकवाद की खुली चुनौती
20 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहले गैम में एक असंबद्धता फिर से हिंदू आक्रमण की हत्या करके देश के ज़ख्मों को हरा दिया गया। यह उस सोच की उपज पर हमला करता है जो साजिशों की फ़सल को धर्म की खाद बनाकर ओबती है। अब केवल सैन्य हमला नहीं हो रहा है, यह एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है जो डर, असुरक्षा और अंधविश्वास के लिए बनाया गया है।
मोदी सरकार के वर्तमान सुरक्षा दृष्टिकोण को लेकर अच्छी तरह से ही आलोचना हो रही है, लेकिन यह स्वीकार करना होगा कि नीति के खिलाफ़ उग्रवाद, जो संयम और प्रतिशोध दोनों मिलकर काम करते हैं, एक राष्ट्रव्यापी सोच का हिस्सा है। सवाल यह नहीं है कि हमला क्यों हुआ, सवाल यह है कि उसके बाद के इंस्टाग्राम क्यों सक्रिय हो गए?
बांध पर ताला: जब पानी भी बना राजनीति का मोहरा
घटना के कुछ ही दिन बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हरियाणा के हिस्से के पानी पर रोक लगाने का आदेश देते हुए नंगल बांध के नियंत्रण कक्ष पर पुलिस बल के गठन पर ताला जड़वा दिया। यह केवल एक सार्वभौमिक निर्णय नहीं था, बल्कि भारत की संघीय भावना का अपमान था।
जब एक राज्य संकट की घड़ी में दूसरे राज्य से युद्ध होता है, तब वह भारत की संवैधानिक आत्मा को चोट पहुँचाता है। पानी पर राजनीति कोई नई बात नहीं, जब यह विवाद राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता के साए में हो, तब उनकी रंग ताकत के करीब लगती है।
आधा मोर्चा: उन्नत श्रेणी का नया नाम
भारत के पहले सीडीएस जनरल दीपक रावत ने अपने समय में “ढाई मोर्चे के युद्ध” की बात कही थी – पाकिस्तान, चीन और देश के अंदर एक लोकतांत्रिक मोर्चा सक्रिय है। यह ‘आधा मोर्चा’ किसी बंदूक या मिसाइल से नहीं लड़ता, यह कलम, कैमरा, कोर्ट और कभी-कभी सत्ता के मंचों से देश की बुनियाद को हिलाने की चालें चलता है।
भगवन्त मान जैसे वैलेरियो या बिग बॉस 19 के नेताओं की राजनीति जब-जब भारत की अस्मिता के विरुद्ध खड़ी होती है, तब यह सन्देह नहीं होता, प्रमाण मिलता है कि यह ‘आधा मोर्चा’ देश के अन्दर से ही भारत विरोधी ताकतों को आधिपत्य दे रहा है।
पानी से ज्यादा भरोसेमंद लाइक हो रहा है
ये सवाल नहीं रहा कि पंजाब-हरियाणा को पानी दोगे या नहीं। असल सवाल यह है कि भारत के एक राज्य में संकट की घड़ी का क्या मतलब है? क्या यह वो भारत है जिसे आज़ाद भारत के शिल्पियों ने अपने सपनों में देखा था? या ये वो भारत है जहां नदियों से ज्यादा राजनीति बह रही है?
नंगल डैम का लॉक भारत की संघीय राजनीति का सिंबल बन गया है – एक ऐसा सिंबल जो उभर रहा है, और उस विश्वास से भारत के डेमोक्रेटिक ताने-बाने में उभर रहे हैं।
जनता के धैर्य की परीक्षा: मोदी के नेतृत्व की प्रदर्शनी
आज देश में दो ओर से टेरर का हमला है – एक ओर से टेरर का हमला, दूसरी ओर से 2 स्ट्रेंथ में उफान। ऐसे समय में जनता की नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर उठती हैं। यह राजनीतिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक विश्वास है कि जब देश टूटने लगे, तब मोदी जैसे नेतृत्वकर्ता फिर से उनसे जुड़ सकते हैं।
ये भी सच है कि मोदी विरोध अब तर्क से नहीं, भाव से भरा है। कई बार ऐसा लगता है कि जो मोदी विरोध कर रहे हैं, वे असल में भारत के आत्मबल को ही चुनौती दे रहे हैं।
संघीय व्यवस्था पर वार्विक हमला
पंजाब और हरियाणा का पानी विवाद केवल जल विवाद नहीं है, यह भारतीय संघीय व्यवस्था पर वैचारिक हमला है। वह चर्चा करता है कि किस देश के अंदर से उसे अलग-अलग कहा जाता है- भाषा के नाम पर, धर्म के नाम पर, और अब पानी के नाम पर।
जो नेता संकट के समय भी सहमत नहीं हैं, वे जाने-अनजाने में वह तीसरे गांधीवादी सैनिक बन जाते हैं जो भारत को विश्वगुरु नहीं, विखंडित राष्ट्र निर्मित देखना चाहते हैं।
मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग की शैलियाँ: आधा मोर्चा खोजा गया है
जो तबका CAA-NRC सड़कों पर उतरा था, वह आजंगल न बांध पर चुप क्यों है? क्या पानी परलॉक लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय नहीं है? क्या यह संविधान का उल्लंघन नहीं है?
असल में, यही वो आधा मोर्चा है जो कभी किसानों के नाम पर, कभी किसानों के नाम पर, और कभी आदिवासियों के नाम पर, देश को चमकाने वाले विश्वास को देने का काम करता है। यह वर्ग सत्य नहीं चाहता, सत्य अस्थिर चाहता है।
देश की आत्मा: आम आदमी की दृष्टि
आज देश की आत्मा उस आम आदमी में बसती है जो ना तो दिल्ली में आबाद नीति निर्माता है, ना ही ट्विटर पर ट्रेंड धारा वाला एक्टिविस्ट है। वह किसान है, मजदूर है, छोटा आदमी है, सैनिक का बेटा है या एक छात्र शिक्षक है – जो देश टूटता है वह नहीं देख सकता।
उसका न कोई धर्म विशेष होना चाहिए, न जाति विशेष का गौरव होना चाहिए। उसे एकजुट भारत चाहिए, जहां न आतंक हो, न बांध पर संदेह हो, और न ही दुश्मनों के अंदर।
क्या? सोल या माझी?
1. संघीय संवाद का पुनर्निर्माण आवश्यक है – राज्य के बीच मज़हबी केंद्र सरकार को सहमति से तत्पर होना चाहिए।
2. ‘आधा मोर्चा’ की पहचान जरूरी है – वैचारिक और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना चाहिए।
3. राष्ट्र का पुनर्पाठ आवश्यक है – जो सत्ता में है, वह भी और जो सड़क पर है, वह भी।
यह बस जल विवाद नहीं है, यह राष्ट्रभाव की चुनौती है
भारत आज केवल बाहरी ताक़तों से नहीं, बेहतर ‘आधा मोर्चा’ से शुरू हो रहा है। पहलगाम का आतंकी हमला जहां सीमा पार से आया ज़ख्म है, वहीं पंजाब-हरियाणा जल विवाद उस कठिन हुई फैंस की तरह है जो अंदर ही अंदर लहू रिसा रही है।
जरूरत है साइंटिस्ट की, एकजुटता की और उस प्रतिबद्धता को, जो देश की नींव को संदेह और अस्मिता से भर रही है।
क्योंकि अंत में यही तय चाहूँगा —
भारत का एकमात्र भूगोल है या भाव।
भारत का एकमात्र नक्शा है या नियत।
भारत केवल तंत्र है या एक औद्योगिक निजी।
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!