खरी-अखरी : डराने लगा है अब अपना ही साया
उस सरफिरे को यूॅं नहीं बहला सकेंगे आप, वो आदमी नया है मगर सावधान है।
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है।
सामान कुछ नहीं है फटे हाल है मगर, झोले में उसके पास कोई संविधान है।
दुष्यंत कुमार की गजल की ये चंद पंक्तियाँ आज के दौर में राहुल गांधी पर ठीक उसी तरह सटीक बैठती हैं, जिस तरह दुष्यंत कुमार की गजल की ए लाईनें नरेन्द्र मोदी और उनकी भाजपा पर सही उतरती लगती है।
देखे हैं हमने दौर कई अब खबर नहीं, पांव तले जमीन है या आसमान है।
इसे समझने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। सारा वाक्या 01 जुलाई 2024 को लोकसभा में हुआ कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी के भाषण और भाषण के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम के आधा दर्जन मंत्रियों के स्व बचाव के लिए की गई बचकानी हरकतों से समझा जा सकता है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम को लोकसभा के भीतर उनके ही दांव से उनको चित्त कर दिया। चुनाव दर चुनाव धार्मिक और जातिवादी सामाजिक ध्रुवीकरण कर सत्ता हथियाते आ रहे भाजपा लीडरान को उनकी नफरती राजनीति के सारे दांव आज लोकसभा के भीतर भोथरे साबित होते रहे। राहुल ने भगवान शिव, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, ईसा मसीह, गुरु नानक देव, कुरान सहित अन्य महापुरुषों के वाक्य “डरो मत, डराओ मत” के साथ अभय मुद्रा का जिक्र करते हुए यह कहा कि हर धर्म डरो मत डराओ मत की बात करता है। हिन्दू कभी भी हिंसा की बात नहीं करता। हिन्दू कभी भी हिंसक नहीं होता है। जो हिंसा की बात करते हैं वो हिन्दू हो ही नहीं सकते। भाजपा हमेशा हिंसा – हिंसा नफरत – नफरत की बात करती है। ये हिन्दू हैं ही नहीं।
राहुल के इतना कहते ही पीएम नरेन्द्र मोदी ने खड़े होकर अध्यक्ष से कहा कि यह गंभीर विषय है। सभी हिन्दुओं को हिंसक कहा जा रहा है, उन्होंने राहुल के कहे को एक सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की तो राहुल ने तत्काल पलटवार करते हुए कहा नहीं – नहीं यह भाजपा के लिए कहा गया है । नरेन्द्र मोदी समस्त हिन्दू समाज नहीं हैं, बीजेपी समस्त हिन्दू समाज नहीं है, आरएसएस समस्त हिन्दू समाज नहीं है। यह बीजेपी का ठेका नहीं है। पिछले दस सालों में पीएम नरेन्द्र मोदी संसद के भीतर जिन विषयों /मुद्दों पर बात करने से कतराते – भागते रहे हैं राहुल गांधी ने उन्हीं मुद्दों पर नरेन्द्र मोदी को घेर कर कटघरे में खड़ा करने की भरसक कोशिश की। राहुल गांधी के तीखे सवालों से सरकार की तिलमिलाहट – बौखलाहट यहां तक बढ़ गई कि पीएम नरेन्द्र मोदी को दो बार, गृहमंत्री अमित शाह को तीन बार, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को दो बार,धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान, किरन रिजजू को एक बार खड़े होकर स्पीकर से गुहार लगानी पड़ी। गृहमंत्री अमित शाह तो स्पीकर से संरक्षण दिए जाने की चिरौरी-विनती करते नजर आये। अमित शाह ने तो इमर्जेंसी और 84 के सिक्ख दंगों का जिक्र कर राहुल को चुप कराने तथा कांग्रेस को घेरने की असफल कोशिश की जबकि भाजपा का यह दांव अब भोथरा पड़ चुका है।
जब राहुल मणिपुर की नस्लीय हिंसा, नोटबंदी, जीएसटी की विफलता, किसान आंदोलन, अग्निवीर, जांच ऐजेंसियों का दुरूपयोग, नीट पेपर लीक जैसे जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर सरकार पर बौछारें कर रहे थे तब पीएम, केन्द्रीय मंत्री और भाजपाई सांसदों की भीड़ दयनीय तरीके से नियमों और संविधान की दुहाई दे रहे थे। नरेन्द्र मोदी का एक जुमला “एक अकेला सब पर भारी” नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम पर हकीकत बन कर प्रहार कर रहा था। राज्यसभा में भी कांग्रेस अध्यक्ष और प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे पर आरएसएस का प्रभाव, आरएसएस को लेकर सरदार पटेल की सोच से लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी के अहंकारी नारों और भाषणों का जिक्र कर भाजपा की दुखती रगों को मसल कर रख दिया। जिसका सीधा असर भी दिखाई दिया जब संवैधानिक मर्यादाओं को दरकिनार कर उप राष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बचाव और पैरवी करते नजर आये। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का तो संघ की पैरवी करना तो समझ में आता है।
इसके पहले राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में इमर्जेंसी का जिक्र कर राष्ट्रपति की गरिमा को कम किया है। इमर्जेंसी की घोषणा श्रीमती इंदिरा गांधी ने नहीं तत्कालीन राष्ट्रपति ने की थी। उसमें तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष की भी सहभागिता रही। इसलिए पद की गरिमा और मर्यादा के मद्देनजर वर्तमान राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष को अपने समकालिक तत्कालीन राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय की समीक्षा नहीं करनी चाहिए ! लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राहुल गांधी द्वारा दिए गए भाषण में से कुछ अंशों को विलोपित कर एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे सत्तापक्ष के दबाव में काम कर रहे हैं। राहुल गांधी ने अपनी आपत्ति जताते हुए स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखकर विलोपित किए गए शब्दांशों को यथावत रखने की मांग की है। इसी तरह से राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड ने भी कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा कहे गए कुछ अंशों को कार्यवाही से विलोपित कर दिया गया है। लगता है कि सदन के मानीटर यह भूल गए हैं कि आज का समय डिजिटल युग का है। देश और विदेश तक मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी का पूरा भाषण लाइव देखा और सुना गया है। वक्ताओं के भाषणों पर की गई काट-छांट स्पीकर और सभापति की गरिमा पर ही प्रश्न चिन्ह आरोपित करती है। खरी – अखरी ने अपने 12 मई के आलेख में लिखा था कि “डर को इतना मत डराओ कि डर का डर निकल जाये”। 1 जुलाई 2024 को संसद के दोनों सदनों में यह देखने को मिला कि जिन्हें डराया जा रहा था उनका डर तो दूर भाग गया बल्कि डराने वाले खुद डरने लग गये हैं !
ये तो बता काफिला कैसे लुटा
पीएम नरेन्द्र मोदी राहुल गांधी और इंडिया एलायंस द्वारा उठाए गए मुद्दों का जबाव देने के बजाय आज भी नेहरू – गांधी को कोसते रहे। ना तो उनने अपने 10 साल के शासन काल की उपलब्धियों का जिक्र किया ना ही आने वाले रोडमैप का। पूंजीपतियों से अपने संबंधों के आरोपों पर खामोशी बरती मणिपुर के हालात और चीन की घुसपैठ पर बोलने से बचते नजर आये। नीट जैसे गंभीर मुद्दे पर बाईपास का रास्ता अपनाया जो निश्चित रूप से 24 लाख नौजवानों की निराशा का सबब बना होगा ! पीएम नरेन्द्र मोदी के पूरे भाषण का लब्बोलुआब यही है कि लफ्फाजी की बाजीगरी के बीच सवालों के जबाब से कन्नी काटते रहे। जिस तरह की तल्खी दोनों ओर से देखने को मिली है उससे कह सकते हैं कि आने वाले समय में प्रतिद्वंद्विता और गहरी होगी। सुखद यह था कि हाथरस में असमय मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई। मगर इस पर भी नरेन्द्र मोदी अपनी कालिख पोतने से नहीं चूके। श्रध्दांजलि के बाद नरेन्द्र मोदी की जली रस्सी की ऐंठन जैसी दंभ भरी टिप्पणी “मोदी डरता नहीं है” को निश्चित रूप से मरे हुए लोगों के लिए अपमानजनक ही कहा जाएगा। हमारी संस्कृति श्रध्दांजलि के बाद किसी तरह के विवादास्पद बयानों की इजाजत नहीं देती। खासकर उनको जो खुद को हिन्दू संस्कृति का झंडाबरदार मानते हैं।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता स्वतंत्र पत्रकार
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