भाजपा ने राहुल गांधी को दिया नया नाम रणछोड़ गांधी
क्या स्मृति ईरानी से हार के डर से राहुल ने पकड़ी रायबरेली की राह
अगर दोनो सीट पर विजयी हुए तो वायनाड या रायबरेली किसको रखेंगे और किसको छोड़ेंगे राहुल गांधी
खबरी प्रशाद, रितेश माहेश्वरी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज रायबरेली लोकसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया। मगर अंतिम समय तक चले सस्पेंस में कांग्रेस की तरफ से बहुत ज्यादा कैलकुलेशन की गई की अमेठी या रायबरेली राहुल के लिए कौन सी सीट बेहतर, क्योंकि दोनों ही सीटे गांधी परिवार का गढ़ रही है। इस गढ़ में 2019 के लोकसभा चुनाव में सेंध लगाई भारतीय जनता पार्टी की 2019 की उम्मीदवार और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने। वर्तमान में यानी 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अमेठी लोकसभा सीट से स्मृति ईरानी एक बार यहीं से ताल ठोक रही है। जबकि 2019 के चुनाव में राहुल गांधी ने अमेठी के साथ-साथ केरल के वायनाड सीट से भी अपनी किस्मत आजमाई थी और वायनाड सीट पर उन्होंने फ़तेह हासिल की थी जबकि अमेठी सीट गवा दी थी। मगर तब से स्मृति ईरानी ने अमेठी वासियों से ऐसा नाता जोड़ा की अमेठी वासी अब गांधी परिवार को छोड़कर ईरानी परिवार के हो गए हैं ऐसा कहा जाता है। तो क्या यह माना जाए कि गांधी परिवार का गढ़ रहा अमेठी-रायबरेली की कर्मभूमि से अब गांधी परिवार के पैर उखड़ रहे हैं। या फिर कुछ और बात है, वरना अपनी परंपरागत सीट अमेठी को छोड़कर राहुल गांधी ने आज रायबरेली से पर्चा क्यों भरा। और रायबरेली से राहुल गांधी के पर्चा भरने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के बड़े से लेकर छोटे नेताओं ने राहुल गांधी को घेरना शुरू कर दिया। यहां तक की राहुल गांधी को रणछोड़ नाम तक दे दिया गया। और तो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज एक जनसभा में तो यह कहा ना तो डरो ना ही भागो।
तो क्या राहुल गांधी स्मृति ईरानी से डर गए हैं, आखिर सच क्या है?
इस बात को लेकर खबरी प्रशाद अखबार ने कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट से बात की और सभी से सिर्फ एक ही सवाल था कि क्या राहुल गांधी हार के डर से अपनी सीट बदल रहे हैं या कुछ और बात है। तो जो बात निकाल कर सामने आई वह यह कि राहुल गांधी कांग्रेस की सबसे बड़े नेता है, जबकि स्मृति ईरानी सिर्फ मोदी सरकार में मंत्री है। वह भारतीय जनता पार्टी की अगर टॉप लीडरशिप की बात करें तो उसमें भी नहीं आती और अगर राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ते हैं और स्मृति ईरानी के सामने चुनाव हार जाते हैं तो इससे राहुल गांधी की छवि पर बहुत बड़ा असर पड़ सकता था। कांग्रेस जो अपने आप को उत्तर प्रदेश में जान डालने की कोशिश कर रही है राहुल गांधी की एक हार से टूटने की संभावना बन जाती। इसलिए पॉलिटिकल एक्सपर्ट राहुल गांधी का अमेठी छोड़कर रायबरेली जाना एक सही फैसला और नपा तुला फैसला मानते हैं।
अमेठी से रायबरेली जाने के पीछे पॉलिटिकल एक्सपर्ट कई और कारण भी बताते हैं, जैसे अमेठी विधानसभा में पिछले कई चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत कम होता जा रहा है। जहां 2007 के चुनाव में कांग्रेस ने लगभग 34% वोट पड़े थे तो वही 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वह 14 प्रतिशत वोट से अमेठी में संतोष करना पड़ा। 2017 की विधानसभा कि अगर बात करें तो अमेठी लोकसभा क्षेत्र में चार सीटों पर कांग्रेस ने फतेह प्राप्त की थी जबकि एक सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी। मगर उसके बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा और स्मृति ईरानी ने लोकसभा चुनाव जीत और उसके बाद में कांग्रेस की स्थिति अमेठी लोकसभा क्षेत्र में खराब होती गई। 2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की अगर बात करें तो कांग्रेस एक भी विधानसभा सीट पर विजय प्राप्त नहीं कर पाई। तो अमेठी से रायबरेली जाने की यह भी एक वजह हो सकती है। कांग्रेस का वोट बैंक अब भारतीय जनता पार्टी की तरफ खिसक चुका है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट इसकी एक और वजह भी मानते हैं की 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने अमेठी वासियों से वादा किया था कि अगर मैं अमेठी से जीत जाती हूं तो अमेठी के निवासियों को मुझसे मिलने के लिए दिल्ली या मुंबई नहीं जाना पड़ेगा मैं अपना घर यहीं बनाऊंगी। स्मृति ईरानी ने अपना वादा निभाया और 2019 में चुनाव जीतने के बाद में उन्होंने अमेठी लोकसभा क्षेत्र के गौरीगंज में अपना निवास स्थान बनवाया जिससे मतदाताओं का भरोसा स्मृति ईरानी पर और ज्यादा बढ़ गया। वही राहुल गांधी ने 2019 का चुनाव हारने के बाद अमेठी से पूरी तरीके से दूरी बना ली। 2019 से लेकर 2024 तक राहुल गांधी ने सिर्फ अमेठी के दो दौरे किए। पहले लगभग 2 साल के बाद में कांग्रेस की जन जागरण यात्रा थी उसके लिए और दूसरा भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान उनकी यात्रा अमेठी से निकली थी। तब वह अमेठी आए थे। तो मतदाताओं से दूरी हो जाना भी अमेठी से रायबरेली जाने का एक बड़ा कारण हो सकता है।
अपने हुए पराए
गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में गांधी परिवार के बहुत ही करीबी संजय सिंह के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद कहा जा सकता है कि अमेठी से कांग्रेस के पैर उखड़ चुके थे। संजय सिंह राजीव गांधी के करीबी तो रहेगी 10 जनपद तक भी उनका आना-जाना बेरोक टोक हुआ करता था। जब संजय सिंह ने कांग्रेस से दूरी बनाई तो भाजपा के लिए अमेठी में दोबारा पैर जमाना मुश्किल लगने लगा। यह भी अमेठी से रायबरेली जाने की एक वजह हो सकती है।
अब सवाल उठता है कि अगर राहुल गांधी वायनाड सीट और रायबरेली सीट दोनों जीत जाएंगे तो किसको रखेंगे और किसको छोड़ेंगे?
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा अभी से होने लगी है कि अगर राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट और उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट दोनों पर फतेह हासिल कर लेते हैं तो आखिरकार कौन सी ऐसी सीट होगी जिस पर राहुल गांधी को इस्तीफा देना होगा। तो पॉलिटिकल एक्सपर्ट अभी से इस बात का कयास लगाने लगे हैं कि राहुल गांधी वायनाड सीट से इस्तीफा देंगे, अगर वह दोनों सीट जीत जाते हैं। राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद प्रियंका गांधी वायनाड सीट पर गांधी परिवार का प्रतिनिधित्व करेंगी और ऐसी स्थिति में उत्तर और दक्षिण दोनों में बैलेंस बनाया जा सकेगा। और अगर कहीं राहुल गांधी रायबरेली सीट से इस्तीफा देते हैं और वायनाड सीट को अपने पास रखते हैं तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश के दरवाजे पूरी तरीके से बंद होने की संभावना बनी रह सकती है।
यह सारी बातें पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स, अमेठी के मतदाताओं और कई अखबारों के संवाददाताओं से बातचीत पर आधारित है। यह भी हो सकता है कि ऐसा हो भी जाए और यह भी हो सकता है कि ऐसा ना हो। परंतु यह राजनीति है यहां कयासों का बाजार हर वक्त चलता रहता है।
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