लोक गायिका शारदा सिन्हा पंचतत्व में विलीन: बेटा अंशुमान मुखाग्नि के बाद भावुक होकर पैरों से लिपटकर फूट-फूट कर रोए
लोक गायिका शारदा सिन्हा का 7 नवंबर को पटना के गुलबी घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। छठ महापर्व के पहले दिन उनके निधन की खबर से कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी। शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान ने उन्हें मुखाग्नि दी, जिसके बाद वे अपनी मां के पैरों से लिपट कर भावुक होकर फूट-फूटकर रो पड़े। घाट पर उनके प्रशंसक और समर्थक ‘शारदा सिन्हा अमर रहें’ और ‘छठी मइया की जय’ के नारों के बीच अपनी प्रिय कलाकार को अंतिम विदाई देते नजर आए।
शारदा सिन्हा को उनके छठ गीतों के लिए बिहार और देशभर में विशेष पहचान मिली थी। उनके गीत छठ महापर्व का अभिन्न हिस्सा माने जाते थे और उनकी आवाज में हर साल यह पर्व एक विशेष गरिमा और पवित्रता को प्राप्त करता था। उनका निधन दिल्ली के एम्स में 5 अक्टूबर की रात को हुआ, जब वे 72 वर्ष की थीं। अंतिम संस्कार के समय उनका अंतिम गाया गया छठ गीत “दुखवा मिटाई छठी मइया” भी बजाया गया, जिसे उन्होंने दिल्ली में अपने इलाज के दौरान रिलीज किया था।
उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में प्रशंसक, स्थानीय लोग और राजनेता शामिल हुए। बेटे अंशुमान के साथ, बीजेपी के पूर्व सांसद रामकृपाल यादव और विधायक संजीव चौरसिया ने भी उनकी अर्थी को कंधा दिया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके राजेंद्र नगर स्थित आवास पर पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की, जबकि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पटना आकर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे।
शारदा सिन्हा के पति का निधन 45 दिन पहले ही हुआ था, और उनका अंतिम संस्कार भी इसी गुलबी घाट पर किया गया था। शारदा सिन्हा की इच्छा थी कि उन्हें भी उसी घाट पर अंतिम विदाई दी जाए, और उनके परिवार ने उनकी इस इच्छा का मान रखा। लोक संगीत में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली शारदा सिन्हा के निधन से एक युग का अंत हो गया है। उनके प्रसिद्ध छठ गीत जैसे “पावन छठी मइया” और “केलवा के पात पर” उनकी स्मृतियों को सदियों तक जीवित रखेंगे और उनके नाम को संगीत प्रेमियों के दिलों में अमर बनाए रखेंगे।
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