बद्रीनाथ मंदिर के कपाट आज से शीतकाल के लिए बंद , तीर्थयात्रा का समापन
उत्तराखंड का प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर आज, रविवार रात 9:07 बजे, शीतकाल के लिए बंद हो जाएगा। मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसमें विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जा रहा है। इस अवसर पर पुजारी और मंदिर के धर्माधिकारी विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, ताकि मंदिर शीतकाल के लिए तैयार हो सके।
पिछले कुछ दिन हुए धार्मिक आयोजन
शनिवार को बद्रीनाथ मंदिर में 10,000 से अधिक भक्तों ने दर्शन किए। इस दौरान कई प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान हुए और सैकड़ों किलो प्रसाद तैयार किया गया, जो भक्तों में वितरित किया गया। शनिवार की शाम, मंदिर के पुजारियों ने वेद मंत्रोच्चारण की प्रक्रिया को पूरा किया, जो शीतकालीन चरण की शुरुआत का प्रतीक था।
15 नवंबर को, मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया के तीसरे दिन, विशेष वेद ऋचाओं का उच्चारण किया गया और वेद उपनिषद रावल (प्रधान पुजारी) और धर्माधिकारी को सौंपे गए। इस दौरान मंदिर के शीतकालीन चरण के लिए समस्त तैयारियाँ पूरी कर ली गईं।
बंद होने की प्रक्रिया की शुरुआत
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया 13 नवंबर को शुरू हुई थी, जब श्री गणेश मंदिर के कपाट बंद किए गए थे। इसके बाद, आदि केदारेश्वर और आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद किए गए। यह सभी प्रक्रियाएँ पंच पूजा का हिस्सा हैं, जो मंदिर परिसर को शीतकाल के लिए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से की जाती हैं।
चारधाम यात्रा का समापन
उत्तराखंड के चारधाम – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ – सभी शीतकाल के लिए बंद हो रहे हैं, जिससे 2024 की तीर्थयात्रा का समापन हो गया है। गंगोत्री मंदिर के कपाट 2 नवंबर को, जबकि यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट 3 नवंबर को बंद किए गए थे। इसके अलावा, रुद्रनाथ और तुंगनाथ के कपाट पहले ही बंद किए जा चुके हैं। रुद्रनाथ मंदिर 17 अक्टूबर को और तुंगनाथ मंदिर 4 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद हुए थे।
मंदिरों की शीतकालीन बंदी प्रक्रिया
यह शीतकालीन बंदी प्रक्रिया दशहरे के आसपास की जाती है, ताकि मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्रों को ठंड और बर्फबारी से सुरक्षा मिल सके। इन मंदिरों के कपाट अगले साल अप्रैल या मई में फिर से खोले जाएंगे, और 2025 की चारधाम तीर्थयात्रा के लिए तैयार हो जाएंगे।
मंदिरों की सुरक्षा और तैयारियां
मंदिरों को शीतकाल के दौरान ठंड, बर्फबारी और अन्य प्राकृतिक चुनौतियों से बचाने के लिए यह बंदी की जाती है। मंदिर के कपाट बंद होने से पहले सभी जरूरी धार्मिक अनुष्ठान पूरे कर लिए जाते हैं, ताकि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और मंदिर परिसर को सुरक्षित रखा जा सके।
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