फनी बात : शादियों में मिठाई दस की जगह दो रखो ,पर तंदूर दस रखना ,वरना
आज कल शादियों का सीजन चल रहा है और कई शादियों में तो मुझे पूरी खाकर ही वापस आना पड़ रहा है क्योंकि तंदूरी रोटी और नान के आगे लंबी लाइन लगती हैं जिसमें खड़ा होना मेरे बस का नहीं।
वैज्ञानिक लगे हुए हैं… मनुष्य को धरती से उठाकर मंगल ग्रह तक पहुंचाकर ही मानेगें….
लेकिन इस धरती के मनुष्यों से पूछो तो उनको “मंगल” में कोई दिलचस्पी नहीं… इन मनुष्यों में एक मैं भी शामिल हूं।
सब यही कह रहे है कि मंगल तक जाने का रास्ता तो आसान है.. सीधा सपाट.. बीच में कोई अवरोध नहीं।
पर इन वैज्ञानिकों को पहले.. शादियों में “तन्दूरी रोटियों तक पहुंचने के रास्ते” पर शोध करना चाहिए… ये ज्यादा जरूरी है..
आंकड़ो के अनुसार हमारे देश की शादियों में 30% सीधे, शिष्ट और कमजोर लोग या तो भूखे ही घर लौटते हैं या एक आध पनीर-चिल्ला खाकर पेट को सांत्वना दे देते हैं… तन्दूर से रोटी उठाना हर किसी के बस की बात नहीं।
सोच रहा हूं कि अबकी जब कोई शादी का कार्ड देने आए तो उसको सुझाव दे दूं कि… शादियों में रोटियों के तन्दूर पर एक CCTV Camera लगावा दिया जाये और दूसरे दिन, सारे घर के लोग शादी की वीडियो देखने के पहले यह भी देख सकेंगे , कि कौन लोग थे जो ज्यादा ही भूखे थे , और देश के वैज्ञानिकों का एक दल इसे एक साथ बैठकर देखे.. तब उनको लगेगा कि जीवन में इस “तंदूरी रोटी” का महत्व उस “मंगल ग्रह” से कहीं ज्यादा है…
चुनाव में टिकट के लिए तो फिर भी कम लोगों की लाईनें होती हैं… यहां तो सारे के सारे मेहमान.. चाहे Jodhpuri सूट में हो या जरी की साड़ी में.. सबकी आंखे तंदूर से निकलती रोटी पर उसी तरह होती है जैसे महाभारत में अर्जुन की आंख उस घूमती हुई मछली पर थी।
मौका मिलते ही “भेद” लो झपट लो।
ये तंदूर एक ऐसी जगह है जहां रिश्ते नाते, धैर्य, विनम्रता, शिष्टता आदि को अपने पेट के लिए त्यागना पड़ता है (नहीं त्यागोगे तो आपको भी मेरी तरह दुबारा फिर पनीर चिल्ला ही खाना पड़ेगा)
पेट पुराण में साफ शब्दों में लिखा है कि तृप्त होना है तो तंदूर पर अनजान बने रहो। मामा, मामी, काका, काकी, मौसा, मौसी, गुरूजी.. किसी को भी मत पहचानो…
और जो पहचान गये, नजर मिल गयी तो अपनी “रोटी” उनको देनी पड़ सकती है।
हाल ही एक शादी में, मैं तंदूर से तीन फीट दूर आधे घंटे तक अटका रहा.. मेरे आगे 15 लोग और थे…
एक परिचित से नजर मिल गयी.. बोला.. माहेश्वरी जी.. चपाती चाहिए क्या..?
मैंने कहा “जी नहीं.. यहां तो बस कलर केनवास लेने आया हूं..
दाईं तरफ एक और सज्जन खड़े थे जिनके होठ मोटे थे और उन पर काफी मात्रा में रबड़ी लगी थी.. मेरे कहने पर उन्होंने साफ करके अपने हाथ को कुर्ते के पीछे की तरफ पौंछ लिया।
यहां रोटी से ज्यादा भूख दर्शन दे रही थी। मैं कुछ देर और खड़ा रहा.. रोटियां सिकती जा रही थी.. और जाती जा रही थी…
तंदूर से चिपके कुछ मेहमान दूसरों की परवाह किये बिना अपनी थाली में चार-चार चपातियां घी लगा लगाकर ऐसे सजा रहे थे.. जैसे सगाई की थालियों में ज्वैलरी सजाते हैं।
खैर.. कहीं ले जा रहे होगें.. अपने को क्या… मैं तो फिर निकल गया वहां से।
मैं मन ही मन बड़बड़ा रहा था कि शादियों में मिठाई दस की जगह दो ही रखो पर रोटियों के तंदूर 10 जगह लगाओ… ताकि वो 30% लोग भी तसल्ली से खाना खाकर जाएं जिनमें मैं भी शामिल रहा हूं।
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