आत्म परीक्षण द्वारा आत्म शिक्षण का दिवस : स्वतंत्रता दिवस
नैतिकता, चारित्रिक उत्थान एवं आध्यात्म की युगयुगान्तकालीन परम्परा में दरार डालने वाली बाहरी एवं भीतरी शक्तियों से जूझता भारत आज महत्वपूर्ण निर्णय के द्वार पर खड़ा गहन चिन्ता और चिन्तन के साथ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। स्वतंत्रता दिवस हर वर्ष आ रहा है और आगे भी आता रहेगा किंतु जिस आभा मंडल के साथ यह आता है उस आभामंडल की कोई किरण हम अपने भीतर भी उतार पाये हैं या नहीं? एक स्वतंत्रता दिवस और दूसरे स्वतंत्रता दिवस के बीच जो फासला था, उस दूरी में हमारे जीवन में स्वतंत्रता की क्या भूमिका रही? कहीं ऐसा तो नहीं कि हिंसा, परावलम्बन, एवं मूल्यों के अवमूल्यन ने हमारे जीवन में चुपचाप सेंध लगा दी हो और हम चादर ताने सोते रहे हैं। ये ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर अक्सर हम नहीं दे पाते हैं और न ही ऐसी स्थिति में हैं कि इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब खोज सकें या दे पायें।
अवमूल्यन चाहे राजनीतिज्ञों के कर्तव्यों का हो या जनता की मानसिकता का, शास्त्रों का अवमूल्यन हो या विद्वानों की विद्वता का, अवमूल्यन चाहे सांस्कृतिक विरासत का हो या नैतिकता का, अवमूल्यन चाहे सामाजिक बन्धनों का हो या धर्म की मर्यादा का, सभी विषय एकत्रित होकर आज न केवल अत्यन्त ही चिन्तनीय स्थिति को प्रकट करने में लगे हुए हैं अपितु एक खौफनाक दृश्य को भी उजागर कर रहे हैं और हैरत तो इस बात की है कि इन अवमूल्यनों को पुख्ता करने के लिए हमारे देश के तमाम वे स्तम्भ जी जान से जुट गयेे हैं जिन पर देश की उन्नति का भार था।
विकास की तमाम योजनाओं और नई आर्थिक नीतियों के लागू किये जाने के बावजूद भी आज देश संकटों से क्यों गुजर रहा है? वर्षो बाद भी हम उन्हीं समस्याओं गरीबी और बेरोजगारी से क्यों घिरे हुए हैं? जब हमारा देश स्वतन्त्र हुआ था तो हम सोलह सौ करोड़ रूपये के साहूकार थे लेकिन आज हम साढ़े सात सौ बिलियन डॉलर के कर्जदार कैसे हो गये? सच तो यह है कि भारत का आर्थिक संकट वस्तुत: भारतीय राजनीति का संकट है। राजनैतिक दलों, नेताओं तथा अन्य संस्थाओं ने राष्ट्रीय मूल्यों के अनुसार कार्य करना बंद कर दिया है। उनकी रूचि, राष्ट्रीय संकल्प और साधना को नकार कर अपनी सत्ता कायम रखने तक सीमित होकर रह गई है। यही कारण है कि स्वधर्म, स्वभाषा, स्वसंस्कृति, स्वावलम्बन जैसे शब्द हमारे शब्द कोष से निकलते जा रहे हैं और हम परतन्त्रता के भंवर जाल में फंसते जा रहे हैं।
अत:आज आत्मपरीक्षण द्वारा आत्म शिक्षण की आवश्यकता है। मीडिया, न्यायपालिका पुलिस, राजनीतिज्ञ तथा समाज सेवी संगठनों के प्रतिनिधियों का एक पारदर्शी सशक्त संगठन बनाकर राष्ट्रीय उन्नति के अनुरूप कार्य किया जायेगा तभी वास्तविक स्वतंत्रता कायम हो सकेगी। अनेक बार मुंह की खाने के बावजूद भी पाकिस्तान युद्घोन्माद का दुस्साहसिक प्रयास कर बैठता है, जिससे अकारण ही हमारे जान-माल की भी हानि हो जाती है। जिसके लिए सार्थक हल ढूंढकर ठोस कदम उठाये जाने चाहिए ताकि निकट भविष्य में वह ऐसा कुत्सित और अमानवीय कृत्य न कर सकें तभी हम वास्तविक स्वतंत्रता दिवस साकार कर पाएंगे।
सुषमा जैन-विनायक फीचर्स
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