घेवर : सावन में क्यों मिलता है , इस देसी मिठाई का इतिहास और रेसिपी !
सावन के महीने से जुड़ा है घेवर का बड़ा जबरदस्त इतिहास
घर में घेवर कैसे बनाएं जाने इसका पूरा तरीका
भारत में सावन का आगमन हो चुका है। सावन की बूंदों ने देशभर को अपने रंग में रंग लिया है। हर कोई इस मौसम के खुमार में मदहोश नजर आ रहा है। खाने पीने के शौकीनों के लिए भी सावन बेहद खास होता है। सावन में कई तरह के खास पकवान औऱ व्यंजन बनते हैं। बात सावन के पकवान की करें तो एक मिठाई का जिक्र जरूर होता है। इस मिठाई का नाम है घेवर। बिना घेवर के भाई-बहन का रक्षा बंधन का त्योहार पूरा नहीं माना जाता है। सावन या तीज पर भी बेटी के मायके से घेवर आता है, ऐसे में यह मिठाई बेटी को उसके मायके की याद दिलाती है। घेवर को अंग्रेजी में हनीकॉम्ब डेज़र्ट कहते हैं। बड़ी-बड़ी मिठाई की दुकानों पर घेवर इसी नाम से बिकती है। आइए जानते हैं देश दुनिया में अपनी मिठास घोलने वाले घेवर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
घेवर का इतिहास
घेवर का स्वाद जितना पुराना है, उतनी पुरानी ही इसकी विरासत है। घेवर की उत्पत्ति को लेकर कई तरह के मत हैं। कुछ फूड हिस्टोरियन्स का मानना है कि देश के तमाम व्यंजनों की ही तरह घेवर भी पर्शिया से मुगलों के साथ भारत पहुंची थी। हालांकि इसे लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। दूसरी और कुछ फूड इतिहासकारों का मानना है कि घेवर मूल रूप से भारतीय मिठाई ही है। ये लोग राजस्थान से घेवर की उत्पत्ति बताते हैं। जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सिया शरण लश्करी के मुताबिक घेवर सबसे पहले राजस्थान के सांभर में बनती थी। जयपुर की बसावट से पहले आमेर के राजा तीज त्योहार पर सांभर से घेवर मंगवाया करते थे।
मारवाड़ी कहावतों में भी है घेवर
सिया शरण लश्करी के मुताबिक 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय ने जब जयपुर बसाया तो अलग-अलग जगहों से भिन्न-भिन्न प्रकार के हुनरबाजों को यहां ले आए। उन्हें सारी सुख सुविधाओं के साथ यहां बसाया गया। इसी कड़ी में सांभर से घेवर बनाने वाले कारीगरों को भी जयपुर में बसाया गया। जयपुर आगे चलकर राजस्थान की राजधानी बनी। राजधानी बनने के कारण यहां देश-विदेश से पर्यटकों का आना-जाना रहा। जिसने भी यहां का घेवर चखा वो इसका स्वाद भूल ना सका। यहीं से घेवर देश दुनिया तक पहुंचा। राजस्थान में गणगौर समेत कई तीज-त्योहार ऐसे हैं जिसमें घेवर बनता ही है। राजस्थान में आप कहीं भी चले जाइए करीब हर मौसम में आपको घेवर मिल जाएगा।
मारवाड़ी में एक कहावत भी है – आरा म्हारा देवरा तने खिलाऊं मैं घेवर।
यह राजस्थानी परंपरा का एक हिस्सा है और गणगौर और तीज से पहले के दिन सिंजारा पर नवविवाहित बेटी को उपहार में दिया जाता है। यह भगवान कृष्ण को परोसे जाने वाले छप्पन भोग (56 व्यंजन) में से एक है। दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भी घेवर का खूब चलन है। लेकिन राजस्थान से इतर इन राज्यों में घेवर सावन के महीने में ही बनता और बिकता है। सावन या तीज पर भी बेटी के मायके से घेवर आता है। रक्षाबंधन पर भी बहन घेवर खिलाकर ही भाई को राखी बांधी जाती है।
सावन में क्यों खाते हैं घेवर, कितने दिनों तक रहती है ताजा, जानिए इस देसी मिठाई का इतिहास और रेसिपी
घेवर कितने दिनों तक खाने योग्य रहती है ये उसके बनने के तरीके पर निर्भर करता है। अगर घेवर में मावा का इस्तेमाल हुआ है तो वह 4-5 दिनों तक ही खाने लायक रहती है। वहीं दूसरी तरफ फीके घेवर 15-20 दिनों तक चल जाते हैं। घेवर 300 रुपये से 1000 रुपये किलो तक के भाव से बिकते हैं। घेवर का दाम उसके तरीके पर निर्भर करता है।
कहां का घेवर सबसे फेमस
घेवर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह से बनाया जाता है। हर जगह के घेवर का स्वाद अलग होता है। कहीं के घेवर में मिठास ज्यादा होती है तो कहीं के में मावा, कहीं के घेवर थोड़े कठोर होते हैं तो कहीं के काफी मुलायम। हालांकि अगर सबसे अच्छे स्वाद की बात करें तो जयपुर और उसके आसपास के इलाकों में मिलने वाले घेवर पहले पायदान पर हैं। जयपुर के घेवर का स्वाद विदेशों तक फैला हुआ है।
कितने तरह के होते हैं घेवर
घेवर को कई तरह के फ्लेवर में बनाया जाता है। हालांकि मूल रूप से पांच तरह के घेवर बिकते हैं। इनमें मीठे, फीके, मावे, सादा, चॉकलेटी घेवर शामिल हैं। लोग अपनी पसंद के घेवर खरीदते हैं। जयपुर वालों के लिए तो घेवर ही एक ऐसी अनोखी मिठाई हैं जो 5 अलग-अलग आकार से तैयार की जाती हैं जिसमें बड़े आकार का घेवर, मिनी घेवर, मावा घेवर, पनीर घेवर, ड्राई फ्रूट्स घेवर और रबड़ी घेवर जैसी अलग-अलग वैरायटी में तैयार किया जाता हैं। सबसे ज्यादा मावा वाले घेवर पसंद किये जाते हैं। वैसे आजकल लोग सेहत का ध्यान रखते हुए फीके मावे भी खूब पसंद कर रहे हैं।
कितने दिन ताजा रहता है घेवर
घेवर कितने दिनों तक खाने योग्य रहती है ये उसके बनने के तरीके पर निर्भर करता है। अगर घेवर में मावा का इस्तेमाल हुआ है तो वह 4-5 दिनों तक ही खाने लायक रहती है। वहीं दूसरी तरफ फीके घेवर 15-20 दिनों तक चल जाते हैं। घेवर 300 रुपये से 1000 रुपये किलो तक के भाव से बिकते हैं। घेवर का दाम उसके तरीके पर निर्भर करता है।
सावन में क्यों खाते हैं घेवर
घेवर को खासतौर पर सावन में ही खाया जाता है। इसके पीछे बेहद खास वजह है। दरअसल, बरसात के मौसम में अक्सर वात और पित्त की शिकायत हो जाती है। साथ ही इस मौसम में शरीर में सूखापन या एसिडिटी हो जाती है, जिससे थकान और बेचैनी होने लगती है। ऐसे में घी से बनी यह मिठाई शरीर में फैट संतुलित कर शरीर की ड्राईनेस को कम करती है। साथ ही घी में बनी होनी की वजह से बॉडी का कोलेस्ट्रोल भी कंट्रोल रहता है।
सावन में घेवर खाने के पीछे दूसरा कारण ये है कि बरसात के मौसम में वातावरण में बहुत ज्यादा मात्रा में नमी होती है। यह नमी ना सिर्फ घेवर को खराब होने से बचाती है बल्कि यह उसके स्वाद को भी बढ़ाती है। नमी के कारण घेवर का मुलायमपना बचा रहता है।
कैसे बनाएं घर में घेवर
घेवर बनाने के लिए सबसे पहले उसका बैटर तैयार करना होता है। बैटर में बिल्कुल ना के बराबर पानी का इस्तेमाल होता है। बैटर बनाने के लिए दूध या घी का इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे पहले आप एक कड़ाही में 200 ग्राम घी गर्म करने के लिए रख दें। फिर घी को गैस से उतरकर ठंडा करने के लिए रख दें। जब यह ठंडा हो जाए, तो इसे अच्छी तरह से फेंट लें। अब इसमें धीरे-धीरे पानी, सूजी और मैदा डालना शुरू करें जब तक कि यह एक स्मूथ बैटर न बन जाए। बैटर बनाने के बाद कुछ देर के लिए रख दें।
बैटर तैयार करके रखने के बाद चाशनी तैयार करनी होगी। घेवर की चाशनी गाढ़ी बनती है। गाढ़ी चाशनी बनाने के लिए 1 कप पानी में 250 ग्राम चीनी का इस्तेमाल करना बेस्ट माना जाता है। चाशनी को स्वादिष्ट बनाने के लिए केसर, इलायची, कसा हुआ नारियल और केवड़ा इस्तेमाल करें। अगर आप चाहें तो गुलाब जल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
अब एक छोटे पेन में घी गर्म करें। अगर आप पैन इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, तो सांचे का इस्तेमाल करें। अब पैन या सांचे में बैटर को बीच से डालना शुरू करें। इसे लगभग गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई कर लें। घेवर फ्राइ होने के बाद उसे तैयार की गई चाशनी में डाल दें। इस प्रक्रिया के बाद आपका घेवर पूरी तरह से तैयार है।
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