संपादकीय : लाइक और व्यूज़ की अंधी दौड़ में रिश्तों का मोल !
सोशल मीडिया के इस दौर में मानो हर इंसान कैमरे के सामने खड़ा एक अभिनेता बन गया है। फ़र्क सिर्फ इतना है कि अब कैमरा किसी फिल्म सेट का नहीं, बल्कि हमारे अपने मोबाइल फोन का है और दर्शक वे हैं, जो कभी हमारे मित्र-सूची में होते हैं तो कभी पूरी दुनिया। क्लिक, लाइक और व्यूज़ की इस अंधी होड़ में लोग अब अपने निजी रिश्तों और संवेदनाओं तक को ‘कंटेंट’ में बदलने लगे हैं।
हाल ही में वायरल हुआ एक वीडियो इसी प्रवृत्ति की नजीर है—एक युवक ने अपनी पत्नी के साथ निजी पल साझा करते हुए वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। नतीजा यह हुआ कि लोग उसकी भावनाओं या रिश्ते की गहराई पर नहीं, बल्कि उसकी पत्नी के रूप-रंग पर टिप्पणियां करने लगे। यहां सवाल उस पत्नी की निजता का भी है, जिसकी अनुमति, सहमति और सहजता का इस ‘डिजिटल तमाशे’ में कहीं ज़िक्र नहीं मिलता।
रिश्ते, चाहे पति-पत्नी के हों या परिवार के, भरोसे और सम्मान की नींव पर खड़े होते हैं। जब इन्हें पब्लिक प्लेटफ़ॉर्म पर दिखावे के लिए पेश किया जाता है, तो यह केवल निजी जीवन का अतिक्रमण नहीं, बल्कि रिश्तों के मर्म का अपमान भी है। इस दौर की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि लाइक और व्यूज़ पाने के लिए लोग अपने ही जीवन के सबसे पवित्र हिस्सों को भी ‘मनोरंजन सामग्री’ की तरह बेचने लगे हैं।
सोशल मीडिया निस्संदेह अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, लेकिन यह तभी तक स्वस्थ है जब तक वह व्यक्तिगत गरिमा और दूसरों की निजता का सम्मान करे। व्यक्तिगत पलों को साझा करने और उनका प्रदर्शन करने के बीच एक महीन रेखा है—इसे पार करना केवल स्वयं के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है।
आख़िर हमें यह समझना होगा कि लाइक और कमेंट का जीवन में वही महत्व है, जो नमक का खाने में—जरूरी तो है, लेकिन ज्यादा हो जाए तो स्वाद बिगाड़ देता है। रिश्तों का स्वाद बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हम उनकी गरिमा, निजीपन और आत्मीयता को बचाकर रखें, न कि उन्हें डिजिटल बाजार में सस्ते रोमांच के लिए नीलाम करें।
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