सीजफायर के बाद पाकिस्तान में तख्ता पलट के संकेत !
राष्ट्र के नाम संबोधन में झलकी बेबसी : शहबाज शरीफ ने फौज की लिखी स्क्रिप्ट दोहराई
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने शनिवार आधी रात राष्ट्र के नाम संबोधित एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उनका अंदाज़ आत्मविश्वास से अधिक विवशता का प्रतीक बनकर उभरा। उनके चेहरे की शिकनें, थरथराती आवाज़ और आंखों में झलकता भय, इस बात की तस्दीक करते हैं कि यह संबोधन महज़ एक औपचारिकता भर था , जिसकी पटकथा कहीं और से लिखी गई थी।
शनिवार को भारत-पाकिस्तान के पहलगाम कांड के बाद उभरे तनाव के बीच में सीजफायर उल्लंघन के बाद यह संबोधन सामने आया। अपने संदेश में शरीफ ने बार-बार पाकिस्तानी सेना की “कुर्बानियों” और “दृढ़ संकल्प” की बात की, साथ ही मुस्लिम देशों की एकता और समर्थन की सराहना की। लेकिन उनके शब्दों से अधिक उनके हावभाव ने यह बताया कि वे कितने दबाव में थे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पूरा संबोधन पूर्व-रिकॉर्डेड था, जिसमें शरीफ केवल स्क्रिप्ट पढ़ते नज़र आए। हर बार जब उन्होंने सेना, अवाम या मित्र देशों का धन्यवाद देने की कोशिश की, तो उनका चेहरा असहजता और तनाव से भर जाता था। यह संकेत देता है कि पाकिस्तान की अंदरूनी सियासी स्थिति और सैन्य दबाव किस हद तक हावी हो चुके हैं।
पाकिस्तानी जनता के बीच इस भाषण को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ इसे एक जरूरी संदेश मान रहे हैं, जबकि कई इसे लोकतंत्र के नाम पर एक और “प्रायोजित बयान” बता रहे हैं।
क्या हिलने लगी है शहबाज शरीफ की कुर्सी? पाकिस्तान में तख्तापलट के संकेत ?
भारत और पाकिस्तान के बीच बीते चार दिनों से जारी सैन्य तनाव के बाद शनिवार शाम जैसे ही युद्धविराम की घोषणा हुई, राजनीतिक गलियारों में एक नई चर्चा ने जोर पकड़ लिया—क्या पाकिस्तान में एक और तख्तापलट की पटकथा तैयार हो रही है?
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने युद्धविराम की घोषणा के कुछ ही देर बाद सोशल मीडिया पर अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को धन्यवाद दिया। हालांकि, यह शांति केवल तीन घंटे ही टिक पाई और पाकिस्तानी सेना ने फिर से भारतीय सीमावर्ती इलाकों में ड्रोन हमले शुरू कर दिए।
इस घटनाक्रम ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। सबसे बड़ा सवाल—क्या पाकिस्तान की सेना प्रधानमंत्री के फैसलों से सहमत नहीं है? क्या युद्धविराम के बावजूद हमलों को जारी रखकर जनरल आसिम मुनीर सरकार को किनारे लगाने की तैयारी में हैं?
पाकिस्तान का सैन्य इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जब-जब सेना को सियासी नेतृत्व की नीतियां रास नहीं आईं, तब-तब सत्ता की कमान बैरकों से निकलकर राजनैतिक गलियारों में दाखिल हुई है। शहबाज शरीफ की मौजूदा स्थिति भी कुछ वैसी ही लग रही है—दबाव में, अकेले और सैन्य इशारों पर चलने को मजबूर।
आलोचकों का मानना है कि शरीफ की लोकतांत्रिक वैधता जितनी कमजोर है, उतनी ही मजबूत सेना की पकड़ है। जनरल मुनीर की बढ़ती गतिविधियां और हाल के दिनों में सैन्य प्रवक्ताओं के तीखे बयान इस ओर संकेत करते हैं कि हालात तख्तापलट की ओर बढ़ सकते हैं।
ऐसे में यह देखना बेहद अहम होगा कि पाकिस्तान की अवाम, राजनीतिक दल और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस संभावित परिवर्तन पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। फिलहाल, इस्लामाबाद की सर्द हवाओं में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन की आहट सुनाई देने लगी है। और अमेरिका के दखलअंदा जी के बाद सीजफायर कितने दिन तक रहेगा यह कह पाना मुश्किल काम है !
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