अब रामराज आ गया है : मोहन भागवत
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के अवसर पर पहुंचे हुए मेहमानों को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा जब जोश के बीच होश की बात करनी होती है तब वह काम मेरा होता है । श्री राम का मंदिर बन चुका है और मंदिर बनने के साथ ही अब राम राज्य आ चुका है ।
अयोध्या में उस पुरी का नाम है, जिसमें कोई द्वंद्व, कलह और दुविधा नहीं। फिर भी 14 वर्ष वनवास में गए।’
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ‘आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का गर्व लौटकर आया है। संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला भारत खड़ा होगा। जोश की बातों में होश की बात करने का काम मुझे ही दिया जाता है। आज हमने सुना कि प्रधानमंत्री जी ने यहां आने से पहले कठोर तप रखा। जितना कठोर तप रखा जाना चाहिए था, उससे ज्यादा कठिन तप रखा। मेरा उनसे पुराना परिचय है। मैं जानता हूं, वे तपस्वी हैं ही। परंतु, वे अकेले तप कर रहे हैं, हम क्या करेंगे?’
‘आज रामलला वापस आ गए हैं’
आरएसएस प्रमुख ने कहा ‘अयोध्या में रामलला आए। अयोध्या से बाहर क्यों गए थे? रामायणकाल में ऐसा क्यों हुआ था। अयोध्या में कलह हुआ था। अयोध्या में उस पुरी का नाम है, जिसमें कोई द्वंद्व, कलह और दुविधा नहीं। फिर भी भगवान राम 14 वर्ष वनवास में गए। दुनिया के कलह को मिटाकर वापस आए।’ मोहन भागवत ने कहा ‘आज रामलला वापस फिर से आए हैं, पांच सौ वर्ष के बाद। जिनके त्याग, तपस्या, प्रयासों से आज हम यह स्वर्ण दिवस देख रहे हैं, उनका स्मरण प्राण-प्रतिष्ठा के संकल्प में हमने किया। उनके प्रयासों को कोटि बार नमन है।
‘अब हमें भी तप करना है’
भागवत बोले, ‘इस युग में आज के दिन रामलला के फिर वापस आने का इतिहास जो-जो स्मरण करेगा, वह राष्ट्र के लिए होगा। राष्ट्र का सब दुख हरण होगा, ऐसा इस इतिहास का सामर्थ्य है। हमारे लिए कर्तव्य का आदेश भी है। प्रधानमंत्री जी ने तप किया, अब हमें भी तप करना है। राम राज कैसा था, यह याद रखना है। हम भी भारत वर्ष की संतानें हैं। कोटि-कोटि कंठ हमारे हैं जो जयगान करते हैं।
हमें समन्वय से चलना होगा’
भागवत ने कहा ‘हमें अच्छा व्यवहार रखने का तप-आचरण करना होगा। हमें भी सारे कलह को विदाई देनी होगी। छोटे-छोटे परस्पर मत रहते हैं, छोटे-छोटे विवाद रहते हैं। उसे लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़नी पड़ेगी। सत्य कहता है कि सभी घटकों राम हैं। हमें समन्वय से चलना होगा। हम सबके लिए चलते हैं, सब हमारे हैं, इसलिए हम चल पाते हैं। आपस में समन्वय रखकर व्यवहार रखना ही सत्य का आचरण। करुणा दूसरा कदम है, जिसका मतलब है सेवा और परोपकार।’
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