खबर छपी, नोटिस निकला… लेकिन सुरक्षा राम भरोसे!
क्या कंडम बीडीपीओ बिल्डिंग के स्थानांतरण रोकने में किसी आला अधिकारी या राजनेता का हाथ है?
प्रदेश सरकार भले ही कर्मचारियों के लिए सुरक्षित और आधुनिक कार्यस्थल बनाने के दावे करे, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। पंचकूला जिले के रायपुररानी स्थित खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी कार्यालय में हालात बद से बदतर हो गए हैं। दो सालों से कर्मचारी जर्जर और खतरनाक भवन में काम करने को मजबूर हैं। दीवारों में दरारें, टपकती छतें, झड़ते प्लास्टर रोज़मर्रा की समस्याएँ बन चुकी हैं और अब यह स्थिति किसी भी बड़े हादसे का इशारा दे रही है। प्रशासन की मूकदर्शिता और लापरवाही से लगता है कि यह हादसा किसी दिन अपरिहार्य बन चुका है। जबकि सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन किसी अनहोनी का इंतज़ार कर रहा है।
खबरी प्रशाद की प्रमुख रिपोर्ट के बाद प्रशासन की नींद टूटी, लेकिन स्थिति जस की तस
1 सितंबर को खबरी प्रशाद ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया था, जिसके बाद प्रशासन में हलचल मची। समाचार पत्र की रिपोर्ट के बाद अधिकारियों ने अपनी गहरी नींद से जागने का दावा किया और एक नोटिस जारी किया। लेकिन यह नोटिस की टॉफी अधिक असरदार नहीं साबित हुई। कुछ दिनों के लिए प्रशासन सक्रिय दिखा, लेकिन इसके बाद फिर से स्थिति जस की तस बनी रही और कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। फिलहाल सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन सिर्फ दिखावा करने में जुटा है या वास्तव में कर्मचारियों की सुरक्षा की उन्हें कोई चिंता है।

15 महीनों में कार्रवाई का नामोनिशान नहीं – कंडम भवन का प्रस्ताव 2023 में भेजा गया था
रायपुररानी पंचायत समिति ने 14 फरवरी 2023 को इस भवन को कंडम घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद 3 अप्रैल 2024 को यह प्रस्ताव जिला कार्यालय भेजा गया। लेकिन 15 महीनों तक न तो कोई निरीक्षण हुआ और न ही कोई कार्रवाई! हरियाणा सरकार के विकास और पंचायत विभाग ने एक समिति गठित की, लेकिन वह भी 26 जून 2024 को जाकर भवन का स्थलीय निरीक्षण करने पहुंची। तब जाकर समिति ने इस भवन को कंडम घोषित कर दिया, जिसकी पुष्टि अतिरिक्त मुख्य सचिव ने 9 फरवरी 2024 के पत्र में भी की थी। फिर भी, हालात जस के तस हैं और कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं।
एच.एस.आर.एल.एम कार्यालय को तहसील परिसर में स्थानांतरित करने के बावजूद बीडीपीओ परिसर से नहीं हटाया
इस बीच एक अहम और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, बीडीपीओ परिसर में वर्षों से संचालित एच.एस.आर.एल.एम के कार्यालय को पहले ही रायपुररानी की तहसील इमारत में स्थानांतरित किया जा चुका है। लेकिन इसके बावजूद, वह कार्यालय अब भी बीडीपीओ परिसर में ही संचालित हो रहा है। कर्मचारियों और स्थानीय लोगों का आरोप है कि आला अधिकारियों के दबाव के चलते एच.एस.आर.एम को जानबूझकर वहाँ से नहीं हटाया जा रहा, ताकि बीडीपीओ के कर्मचारियों को अस्थायी रूप से वहाँ स्थानांतरित न किया जा सके। उनका कहना है कि यदि प्रशासन इसे तहसील में स्थानांतरित कर दे, तो बीडीपीओ स्टाफ को कम से कम एक सुरक्षित जगह तो मिल सकती है। अब सवाल यह भी उठता है कि क्या इस जानबूझकर की गई देरी के पीछे किसी प्रभावशाली अधिकारी या राजनीतिक हस्ती का हाथ है।
पंचकूला जिला परिषद सीईओ और पंचायत मंत्री की नज़रअंदाज़ी पर सवाल – क्या कहीं दबाव है
अब सवाल यह उठता है कि पंचकूला जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और पंचायत मंत्री महिपाल ढाँडा की भूमिका क्या रही। यह मामला उनके संज्ञान में महीनों से था, लेकिन न तो सीईओ ने समय पर निरीक्षण करवाया और न ही पंचायत मंत्री ने कोई ठोस कदम उठाया। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और कर्मचारियों का आरोप है कि दोनों की लापरवाही के कारण यह मामला लटका हुआ है। कई बार इस मुद्दे पर पंचायत मंत्री से मुलाकात की गई, लेकिन उनकी अनदेखी ने कर्मचारियों की जान को खतरे में डाल दिया। अगर पंचायत मंत्री और अधिकारी सक्रिय होते तो शायद आज कर्मचारियों को इस खतरनाक भवन में काम नहीं करना पड़ता। लोगों का मानना है कि बीडीपीओ कार्यालय के निर्माण को रोकने में किसी राजनैतिक व्यक्ति का दबाव है?
कर्मचारी रोज़ दांव पर लगा रहे हैं जान – क्या दुर्घटना के बाद ही कोई जागेगा?
प्रदेश सरकार ने निर्देश दिए थे कि नए भवन के निर्माण के खबर छपी, नोटिस निकला… लेकिन सुरक्षा राम भरोसे लिए एस्टिमेट तैयार कर मुख्यालय भेजा जाए। लेकिन जब तक मुख्यालय से स्वीकृति नहीं मिलती, न तो पुराना भवन तोड़ा जा सकता है, न ही कर्मचारियों को सुरक्षित अस्थायी भवन में स्थानांतरित किया जा सकता है। इस स्थिति में बीडीपीओ कार्यालय के कर्मचारी हर रोज़ उस खंडहरनुमा इमारत में घुसते हैं, जहाँ हर दीवार से असुरक्षा की बू आती है और हर बारिश के साथ एक नया खतरा दस्तक देता है। कर्मचारियों का कहना है कि अब यह भवन मौत के साए जैसा बन चुका है। क्या इसे कोई गंभीर हादसा होने के बाद ही प्रशासन का होश आएगा।
अधिकारियों की बेरुखी और ढहती ईंटें – कब गिरेगा प्लास्टर, कब होगा हादसा?
स्थानीय लोग और पंचायत समिति के सदस्य यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर यह भवन किसी मंत्री या आईएएस अधिकारी का कार्यालय होता, तो अब तक नया भवन खड़ा हो चुका होता। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और सामान्य कर्मचारियों की समस्याओं पर प्रशासन की कोई प्राथमिकता नहीं है। एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम हर रोज़ छत के नीचे नहीं, मौत के साए में बैठकर काम कर रहे हैं। अधिकारियों की बेरुखी और नीचे से ढहते प्लास्टर के बीच कर्मचारियों की जान हर पल खतरे में रहती है।
हमने कितनी बार प्रशासन से कहा कि इस जर्जर भवन को हटा दें, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। ये प्रशासन सिर्फ फाइलों में उलझा रहता है। अगर यह कोई मंत्री का दफ्तर होता, तो अब तक नया भवन बन चुका होता। हम गांव वाले हैं, हमारी कोई कीमत नहीं है। अधिकारी और मंत्री सिर्फ अपने तक ही सीमित हैं।——- रविन्द्र चौधरी, प्रधान सरपंच एसोसिएशन
हम कब तक इस मरणासन्न इमारत में जान को जोखिम में डालते रहेंगे। प्रशासन ने तो जैसे अपनी आंखें और कान बंद कर रखे हैं। मीडिया की रिपोर्ट के बाद थोड़ी हलचल दिखी, लेकिन फिर वही ढाक के तीन पत्ते। अब तो हमें यह लगता है कि जब कोई बड़ा हादसा होगा, तभी इनकी नींद खुलेगी।—— प्यारा सिंह, समाजसेवी शाहपुर
बिल्डिंग के निर्माण हेतु अनुमानित लागत का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका है। जैसे ही संबंधित विभाग से स्वीकृति प्राप्त होगी, निर्माण कार्य को प्राथमिकता के आधार पर तुरंत प्रारंभ किया जाएगा। प्रशासन समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण निर्माण सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।— विशाल पराशर, डी.डी.पी.ओ. पंचकूला





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