खरी-अखरी: देश – दुनिया ने खुली आंखों देखा पप्पू का साहस और कायरता का नजारा
देश – दुनिया ने खुली आंखों देखा पप्पू का साहस और ** की कायरता का नजारा
सवाल तो दो ही थे और उत्तर भी एक ही था। पहला सवाल था – पहलगाम में कोई सुरक्षाकर्मी मौजूद क्यों नहीं था और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? और दूसरा सवाल था – कि जब भारत पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करने जा ही रहा था तो सीजफायर क्यों किया गया और किसने सीजफायर करने का निर्णय लिया ? इन दो सवालों पर चर्चा और जवाब देने के लिए निर्धारित किये गये थे 16 घंटे। जबकि इन दोनों सवालों का जवाब केवल तीन लोगों को देना था, तथा उन्हें केवल दो लाईनें बोलनी थी और उसमें समय बमुश्किल दस मिनट भी नहीं लगते। पहले जवाब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह देते “हाँ यह सही है पहलगाम में जहां आतंकवादियों ने 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है वहां पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती नहीं थी, मैं उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र देता हूं । दूसरे नम्बर पर गृहमंत्री अमित शाह को जवाब देना था कि सीमा पार से चार आतंकवादी घुसकर पहलगाम तक पहुंच गये ये मेरे अधीन आने वाली तमाम इंटेलिजेंस का फेलुअर है। मैं इसकी नैतिक जवाबदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देता हूं। तीसरे नम्बर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवाब देना था कि सीजफायर की जिस घोषणा को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जरिए देश और दुनिया ने जाना है वह घोषणा तो सबसे पहले मुझे ही करनी थी। यह मेरी आजतक की सबसे बड़ी अक्षम्य राजनैतिक अक्षमता है। मैं इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं और अपने पद से इस्तीफा देता हूं। तो देश के 15 घंटे 50 मिनट जाया नहीं होते और पार्लियामेंट के भीतर सरकार की छीछालेदर भी होने से रुक जाती । मगर जैसी कि उम्मीद थी कि सरकार दोनों सवालों का जवाब देने में खामोशी बरतेगी, वही हुआ। सरकार की ओर से एक भी नेता ने यहां तक कि डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह, होम मिनिस्टर अमित शाह और प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी ने अपने लंबे-चौड़े भाषण में दुनिया भर की बातें तो की लेकिन किसी ने भी ना तो ये बताया कि पहलगाम में सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी किन कारणों से नहीं की गई थी, इसके लिए कौन जिम्मेदार है ना ही ये बताया गया कि जीत के करीब पहुंच गई भारतीय सेना को वापस लौटने के लिए सीजफायर क्यों किया गया, इसका निर्णय किसने लिया ।
निश्चित ही पहलगाम में मारे गए 26 लोगों के परिजनों को निराशा हुई होगी। पहलगाम में मारे गए सैनिक की विधवा के इस बयान पर “ऐसा लगा कि सरकार ने हमें अनाथ छोड़ दिया है” रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार्लियामेंट के भीतर 16 घंटे की चर्चा के दौरान पहलगाम में मारे गए 26 लोगों में से एक भी मृतक का जिक्र न करके उस विधवा के बयान पर सही होने का निशान लगा दिया है कि हां सरकार ने पहलगाम में आये सैलानियों को अनाथ छोड़ दिया था, भगवान भरोसे छोड़ दिया था।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने एक घंटे से ज्यादा चले उबासी भरे भाषण में एकबार फिर वही हल्की (सड़कछाप) भाषा और हलकटपन (छिछोरेपन) का नजारा पेश किया। गृहमंत्री अमित शाह भी पीछे नहीं रहे। दोनों अपने भाषण में वर्तमान से भाग कर अतीत के पीछे छिपते नजर आये। दोनों ने इतने गंभीर सवालों की गंभीरता को नजरअंदाज करते हुए सारे टाइम कांग्रेस को कैसे टार्गेट पर लिया जाय यही गुडकतान करते नजर आये। वहीं विपक्ष ने गंभीरता का परिचय देते हुए सवालों को सिलसिलेवार उठाया, सरकार की कथनी और करनी को कटघरे में खड़ा किया, पीएम नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पर सवालों का जवाब देने की चुनौती दी मगर सरकार सीधे-सीधे जवाब देने के बजाय नेहरू के पीछे छिपती नजर आई, सवालों से भागती नजर आई। सवाल तो दो ही थे लेकिन बहस ने कुछ ऐसी परतों को खोल दिया जिसने सीधे तौर पर पहली बार इस सवाल को खड़ा कर दिया कि प्रधानमंत्री सच बोल रहे हैं या फिर सेना सच बोल रही है। देशवासियों को पूरा यकीन है कि सेना कभी झूठ नहीं बोल सकती क्योंकि वह राजनीतिक पैंतरेबाजी से बहुत दूर है। भारतीय सेना का अभी तक राजनीतिकरण नहीं हुआ है। सियासतदां ही अपनी सियासी रोटियाँ सेंकने के लिए न केवल झूठ बोलते हैं बल्कि आवाम की आंखों में धूल भी झोंकते रहते हैं।
आपरेशन सिंदूर के बाद इंडोनेशिया में तैनात अटैची कैप्टन शिव कुमार ने 10 जून को जकार्ता में हुए एक सेमिनार में कहा था कि पहले दिन भारत ने कुछ फाइटर जेट्स इसलिए खोये कि उनके हाथों को सरकार ने बांध दिया था (INDIA LOST SOME FIGHTER JETS ON THE FIRST DAY OF ITS RECENT MILITARY CLASH WITH PAKISTAN BECAUSE THE GOVERNMENT INITIALLY RESTRICTED STRIKE TO TERRORIST TARGETS ONLY AND NOT PAKISTAN MILITARY BASES) कुछ इसी तरह की मिलती-जुलती बात सीडीएस ने भी कही है। यानी सेना को खुली छूट नहीं दी गई थी। जबकि पार्लियामेंट के भीतर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की तरफ से जवाब देने खड़े हुए तो कहा कि हमने सेना को खुली छूट दे दी थी। सेना अपने तरीके से अपनी रणनीति बनाये और युद्ध को कामयाब करे। मतलब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक झटके में सैन्य अधिकारियों के द्वारा बयान की गई हकीकत को खारिज कर अपनी शर्ट को सेना की शर्ट से ज्यादा सफेद और चमकदार बताने की नाकामयाब कोशिश की। नाकामयाब इसलिए क्योंकि देश का कितना ही बड़ा सियासतदार क्यों न हो अगर वह भारतीय सैन्य अधिकारियों के उन बयानों को जो सेना से जुड़े हुए हैं उन्हें झुठलाने की कोशिश करेगा तो देशवासी सैन्य अधिकारियों की बात को ही सच मानेंगे न कि सियासतदार की बात को सच मानेंगे। यानी ऐसा कहकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों के भीतर अपनी ही विश्वसनीयता को कमतर किया है।
लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने सीधे तौर पर प्वाइंट टू प्वाइंट अपनी बात रखते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कही गई बातों के उस हिस्से का जिक्र किया जहां पर रक्षामंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि आधी रात के वक्त यानी 01.05 पर पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी ठिकानों पर हमला हुआ और 20 मिनट बाद तय किए गए टार्गेट को पूरा करके 1.35 बजे पाकिस्तान को जानकारी दे दी कि हम न तो आपके मिलिट्री बेस पर हमला कर रहे हैं न ही किसी दूसरी जगह पर। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार खुले तौर पर कहा था कि जिन्होंने आतंकवाद को पनाह दे रखी है, पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर कह चुके हैं कि दरअसल कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है (आतंकवाद शब्द का नाम नहीं लिया) वह गले की नस है और हम उनका साथ देंगे। पाकिस्तान की राष्ट्रीय नीति ही आतंकवाद को पोषित करने की है। तो फिर वह एक टेररिस्ट स्टेट है और उस टेररिस्ट स्टेट पर हमला करने का मतलब सिर्फ टेररिस्ट अड्डों पर हमला कर वापस लौटना नहीं होता है बल्कि उस स्टेट को नेस्तनाबूद करना भी होता है। तो फिर सवाल यही है कि क्या आपरेशन सिंदूर पाकिस्तान के खिलाफ था ? अगर वह पाकिस्तान के खिलाफ नहीं था तो फिर आपरेशन सिंदूर को विराम (सीजफायर) देने के बाद अंतरराष्ट्रीय तौर पर जिन सांसदों और डिप्लोमेट्स को अलग अलग देशों में टीम बना कर भेजा और वे वहां जाकर आतंकवाद और पाकिस्तान की माला जपते रहे उसका क्या मतलब था ? दुनिया भर के देशों ने आतंकवाद की निंदा तो की लेकिन किसी ने भी देश ने सीधे तौर पर आतंकवाद से पाकिस्तान को कनेक्ट नहीं किया। यहां तक कि क्वार्ड और ब्रिक्स की बैठक में भी आतंकवाद के साथ पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया गया। हद तो तब हो गई जब यूनाइटेड नेशनसं में आतंकवाद पर बनी कमेटी में पाकिस्तान को वाइस प्रेसीडेंट चुन लिया गया है। मामला पराकाष्ठा तब लांघ गया जब भारत की नरेन्द्र मोदी की सरकार आपरेशन सिंदूर की सफलता पर अपनी पीठ थपथपाने की तैयारी कर रही थी और पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष असीम मुनीर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के न्यौते पर जाकर व्हाइट हाउस में बैठकर ट्रम्प के साथ लंच कर रहा था। और राष्ट्रवाद की बातें करने वाली मोदी सरकार लब बंद किए टिकुर-टिकुर देखती रही।
यह आजाद भारत में नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति (जिसे वे मोदी नीति में तब्दील कर चुके हैं) और भारतीय कूटनीति की सबसे बड़ी असफलता है। क्या इसकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लेने को तैयार हैं या फिर इस असफलता के लिए जिम्मेदार नेहरू और गांधी को ठहराया जायेगा ? आपरेशन सिंदूर में यह बात भी खुलकर सामने आई कि भारत को जो नुकसान उठाना पड़ा उसके पीछे चीन का हाथ था। जिस पर विपक्ष ने साफ तौर पर कहा कि भारत के लिए पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन है। एक वक्त मुलायम सिंह यादव, जार्ज फर्नांडिस ने भी पार्लियामेंट के भीतर चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था। लेकिन मोदी सरकार चाइना से प्रगाढ़ रिश्ते बना रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगस्त में चाइना यात्रा प्रस्तावित है। विपक्ष की चुनौती के बाद पीएम नरेन्द्र मोदी और उनके सिपहसालारों की हिम्मत नहीं हुई कि वे चीन और डोनाल्ड ट्रम्प का नाम लेकर कह सकें कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है और डोनाल्ड ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं। अपनी आदत के मुताबिक मोदी सरकार ने 1971 का जिक्र कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पलटवार करते हुए कहा कि तब की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को दो टूक जवाब दे दिया था कि आप सातवां बेड़ा भेजो या आठवां बेड़ा भारत अपने मकसद को अंजाम देकर रहेगा और उन्होंने जनरल मानेकशॉ को खुली छूट दी थी कि आपको जितना समय चाहिए लीजिए मगर मकसद को अंजाम तक पहुंचाइये। मगर मौजूदा वक्त में मोदी सरकार अमेरिका के आगे नतमस्तक है।
भरी संसद में लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुली चुनौती देते हुए कहा कि अगर उनमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जैसा फिफ्टी परसेंट भी साहस है तो वे पार्लियामेंट में खड़े होकर इस बात का ऐलान करें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगातार 29 बार बोली गई बात कि सीजफायर उन्होंने कराया है झूठ हैं, डोनाल्ड ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं। मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद के भीतर इतना साहस नहीं जुटा पाये कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का नाम लेकर यह सकें कि वे झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने अपनी सुविधानुसार बहस की दिशा मोड़ते हुए अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस का नाम लिया और उनसे हुई बातचीत का ब्यौरा बताया। इसी तरीके से जब कांग्रेस को घेरते हुए सत्ता पक्ष ने मुंबई कांड़ का जिक्र किया तो कांग्रेस की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने पलटवार करते हुए कहा कि मुंबई कांड़ के दोषियों को तत्काल मार गिराया गया था, एक जो बचा था उसे भी फांसी पर लटका दिया गया। घटना के तत्काल बाद केन्द्रीय गृहमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था। मगर मोदी सरकार के गृह मंत्री अमित शाह आज भी मंत्री बने हुए हैं ये इस्तीफा कब देंगे? कल तक तो पीएम नरेन्द्र मोदी नेहरू को सामने रखकर अपनी बात कहते थे लेकिन आज गृहमंत्री अमित शाह भी नेहरू के पीछे खड़े होकर अपनी बात कहते नजर आये।
यह कल्पना करना कितना भयावह है कि 11बरस से जो पालिटिकल पार्टी सत्ता में है, जो नेता पिछले 11 बरस से देश का प्रधानमंत्री बना बैठा है, जो नेता मौजू वक्त में देश का गृहमंत्री है उसे आजादी के ठीक बाद की परिस्थितियों या कहें 70 साल पुरानी परिस्थितियों को याद करके मौजूदा समय में अपनी ताकत का अह्सास उस लोकतंत्र के मंदिर के भीतर कराने की जरूरत पड़ रही है जहां सिर्फ और सिर्फ 16 घंटे का वक्त था आपरेशन सिंदूर को लेकर जो किया उसे बताने का। वो कैसे किया, कैसे अंजाम दिया। मगर सरकार ने इतने चक्रव्यूह बनाये कि जो सुन रहे थे खास तौर पर वे लोग जिन्होंने पहलगाम में अपने प्रियजनों को खो दिया है उनके दिल पर क्या बीती होगी नरेन्द्र मोदी और उनके सिपहसालारों को सुन कर। शायद एक मलहम प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह कह कर लगाने का प्रयास किया है कि पहलगाम में आतंकवादियों ने जिन्हें मारा है उन्हें सत्ताधारी इंसान माने या ना माने मगर वो इंसान हैं, वे सत्तापक्ष की राजनीतिक बिसात के प्यादे नहीं हैं। उन्होंने बकायदा उन 25 भारतीय शहीदों के नाम पार्लियामेंट के भीतर पढ़े जिनकी शहादत पहलगाम में हुए आतंकी हमले में हुई है, बकायदा उन्हें भारतीय कहते हुए जबकि सत्तापक्ष वहीं मनुवादी सोच से ग्रसित होकर बीजेपी सांसद हिन्दू – हिन्दू चिल्ला रहे थे। जिन 25 शहीदों के नाम पार्लियामेंट के भीतर कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा ने पढ़े कायदे से उन नामों का उल्लेख सरकार को करना चाहिए था मगर मोदी सरकार ये साहस नहीं जुटा पाई।
16 घंटों में चीन, अमरिका, पाकिस्तान, आतंकवाद, कूटनीति, विदेश नीति इन सबसे होते हुए एक नया सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि प्रधानमंत्री ने सच बोला है या सेना ने सच कहा है.? कहीं इन दो सचों की टकराहट में लोकतंत्र के मंदिर के भीतर देश का सच तो गायब नहीं हो गया है ? प्रधानमंत्री की इमेज बचाने के लिए सेनाओं का प्रयोग देश और सेना दोनों के लिए खतरनाक है। भारत की सेना किसी प्रधानमंत्री की इमेज को बचाने का साधन नहीं है। ऐसी परिस्थिति भारत के सामने इस रूप में कभी नहीं रही। देश को भविष्य की ओर देखने की शुरुआत करनी होगी वरना वर्तमान सत्ता तो अतीत के आसरे सारी परिस्थितियों को एक झटके में गुम कर ही रही है और निशाने पर भारतीय सेना तक को लेने से नहीं चूक रही है। चलते-चलते अखबारों की हेडलाइन पर नजर डालते चलें। एक अखबार लिखता है. – – कांग्रेस के छिछोरेपन ने देश का मनोबल गिराया, पहलगाम हमले में भी वो राजनीति तलाश रहे थे – पीएम मोदी। तो दूसरे अखबार की हेडलाइन है – – प्रधानमंत्री के भाषण के बीच खड़े हुए राहुल तो पानी पीने लगे मोदी। कैमरे ने बचाई इज्जत ओम बिरला की तरफ मुंह करके।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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