इंटरनेट के दौर में कम हो रही है पठनीयता
आज सोशल मीडिया का दौर है। सूचना क्रांति के इस दौर में आज पठनीयता का अभाव हो गया है। आज से दस-बीस बरस पहले लोग जितने अखबार और पत्र-पत्रिकाएं पढ़ा करते थे, आज शायद उतना कोई नहीं पढ़ता है। पुस्तकालय में जाकर तो आज कोई व्यक्ति पुस्तक, पत्रिका या अखबार इश्यू करवाकर तो शायद ही पढ़ता होगा, क्यों कि आज विभिन्न पठनीय सामग्री इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है।आज के जमाने में विभिन्न ई-बुक्स, ई-पत्रिकाएं, ई-अखबार आसानी से कहीं भी, कभी भी उपलब्ध हो जाते हैं, बशर्ते कि वहां इंटरनेट की उपलब्धता हो। पढ़ना बहुत ही जरूरी है, क्यों कि पढ़ने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और किसी लेखन सामग्री को हार्ड कापी के रूप में पढ़ने का आनंद और अनुभूति तो कुछ अलग ही होती है। आज हम लाइब्रेरी में पुस्तकें देखते हैं लेकिन बुक इश्यू करवाकर पढ़ना पसंद नहीं करते। सबकुछ इंटरनेट पर ही पढ़ना चाहते हैं। टीवी और मल्टीप्लेक्स युग के कारण भी आज पत्र-पत्रिकाओं पर खतरा पैदा हुआ है। यहां तक कि आज विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं, पुस्तकें आडियो रूप में भी हमें उपलब्ध होने लगीं हैं, लेकिन जो आनंद की अनूभूति किसी पत्र-पत्रिका, अखबार, पुस्तक को हाथ में लेकर पढ़ने से होती है, वह शायद इंटरनेट पर कभी नहीं हो सकती है। आज ई बुक, फ्लिप फॉर्मेट, पीडीएफ में सॉफ्ट स्वरूप में विभिन्न सामग्री पढ़ने को मिल जाती है, लेकिन कोई भी लगातार इंटरनेट पर इन सामग्रियों को उस रूप में नहीं पढ़ पाता है, जितना कि उन्हें हाथ में फिजिकल रूप से अपने समक्ष लेकर पढ़ता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले कुछ सालों में लेखन और अभिव्यक्ति की शैली बहुत ही तेजी से बदली है। आज लेखकों द्वारा माइक्रो ब्लागिंग की जा रही है। लेखक आज लेखन के लिए इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, ई-मेल का प्रयोग करने लगे हैं। कोई भी लेखक आज काग़ज़ कलम हाथ में लेकर नहीं लिखता, क्यों कि लेखन को इंटरनेट, ई-मेल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने काफी आसान बना दिया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज नई पीढ़ी में पठनीयता का तेजी से ह्रास हुआ है। आज मुद्रण भी एक चुनौती है, क्यों कि मुद्रण के लिए अर्थ यानी कि धन या वित्त की भरपूर आवश्यकता होती है। सच तो यह है कि आज पत्र-पत्रिकाओं के ई-वर्जन आ चुके हैं। आज शायद ही पहले की तरह हस्त लिखित और सायक्लोस्टाईल पत्रिकाएं आतीं हैं। आज की युवा पीढ़ी तो वैसे भी हाथ से लिखने और किसी पुस्तक को प्रत्यक्ष अपने हाथों में लेकर पढ़ने की आदी नहीं रही, क्यों कि उन्हें इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स से ही फुर्सत नहीं है। समय के साथ पठनीयता में बहुत बदलाव आ चुके हैं।वास्तव में, पठनीयता शब्द से तात्पर्य उन सभी कारकों से है जो किसी पाठ को पढ़ने और समझने में सफलता को प्रभावित करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पठनीयता को पाठक की रुचि और प्रेरणा, प्रिंट की पठनीयता (तथा किसी भी चित्र की), पाठक की पठन क्षमता के संबंध में शब्दों और वाक्यों की जटिलता जैसे कारक खासतौर पर प्रभावित करते हैं। आज पाठकों में पढ़ने के प्रति रूचि का अभाव है, क्यों कि आज मनोरंजन के अनेक साधनों का विकास हो चुका है। टीवी, मल्टीप्लेक्स, सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने कहीं न कहीं पठनीयता पर व्यापक असर डाला है। पहले की तुलना में अब काग़ज़ के इस्तेमाल पर भी जोर कम हो गया है। विभिन्न कार्यालयों में, कंपनियों में आज सभी काम इंटरनेट के माध्यम से सम्पन्न होते हैं। ई-आफिस, ई-फाइल का कंसेप्ट आज आ चुका है। मुद्रण, टाइपिंग का अब जमाना लगभग लगभग जा चुका है और हम लगातार पुस्तकों, अखबारों, पत्रिकाओं के ई-वर्जन, आडियो वर्जन की ओर बढ़ने लगे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के जमाने में साहित्यिक किताबों, अखबारों की मुद्रण संख्या में अभूतपूर्व कमी हुई है। आज आडियो बुक्स सुनीं जातीं हैं, हार्ड नहीं बल्कि साफ्ट कापियां आज आदमी के जीवन का अहम् और महत्वपूर्ण हिस्सा होती चली जा रहीं हैं। पुस्तकों के किंडर वर्जन आज उपलब्ध हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि समय के साथ पढ़ने-लिखने के तरीकों में आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं। कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है और आदमी को जमाने के साथ चलना पड़ता है। निश्चित ही इससे हमारे पर्यावरण की रक्षा, संरक्षण की ओर एक कदम जरूर बढ़ा है, लेकिन यह भी सत्य ही है कि आज पहले के जमाने सी पठनीयता पाठकों में नहीं रही। स्क्रीन हमारे मन-मस्तिष्क, हमारे स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव डालतीं है,यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। सूचना क्रांति के इस दौर में हम लेखन-पाठन के क्षेत्र में निश्चित ही बहुत आगे बढ़ गये हैं, हमें ऐसा लगता है। लेकिन जो ज्ञान हमें किताबों, अखबारों, पत्रिकाओं को हार्ड कापी में लेकर पढ़ने से मिलता है, वह मेरे विचार से हमारे मन-मस्तिष्क में अधिक समय तक स्थाई रहता है। इससे हमें आनंद की कहीं अधिक अनुभूति होती है। साथ ही साथ पुस्तकों, अखबारों, पत्रिकाओं से हमारा एक आत्मीयता का रिश्ता भी जुड़ता है।हार्ड कापी में कोई किताब, अखबार, पत्रिका पढ़कर हम कहीं अधिक चिंतन-मनन में डूबते हैं, स्क्रीन पर पढ़ना थोड़ा ऊबाऊ सा होता है और कोई भी अधिक देर तक स्क्रीन पर नहीं पढ़ सकता। साफ्ट कापी(स्क्रीन पर) में हम अक्सर पढ़ते तो हैं, पठनीय सामग्री भी बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध रहतीं हैं, इंटरनेट से कोई भी साहित्यिक सामग्री को पल में खंगाला जा सकता है, लेकिन मेरे विचार से ऐसा करने से इन साहित्यिक सामग्री से पाठक का वह आत्मीयता का रिश्ता नहीं जुड़ पाता है, जो कि प्रत्यक्ष रूप से किसी साहित्यिक सामग्री को पढ़ने से जुड़ पाता है। यह भी एक तथ्य है कि महंगाई के इस दौर में आज किताब खरीदना पाठकों की जेब पर भारी पड़ रहा है, ई-बुक्स, ई-पत्रिकाएं, ई-अखबार आसानी से और कम कीमत में उपलब्ध हो जाते हैं।यह एक विडंबना ही है कि आज के समय में विरले ही किसी घर में पुस्तकों और पत्रिकाओं के लिए जगह बची है, क्यों कि रूचि का अभाव हो गया है। सबकुछ एंड्रॉयड मोबाइल की गिरफ्त में आ चुका है, पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं, अखबार तक उसमें शामिल हैं। हमें आज जरूरत इस बात की है कि हम पढ़ने के प्रति रूचि पैदा करें, विशेषकर पुस्तकालयों में जाकर, घर में, सफर के वक्त हार्ड कापी में चीजों को पढ़ें, स्क्रीन संस्कृति से दूर। बहरहाल,सच यह है कि आज साहित्य की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पठनीयता के अभाव को समाप्त करने के लिये पाठक व लेखक के बीच बड़ी होती जा रही खाई को पाटना बहुत ही जरूरी व आवश्यक हो गया है।
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