“उपर वाला सब देख रहा है” ऑपरेशन सत्ता का “कायाकल्प”
अब दिल्ली के इशारे से चलेंगे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान
छत्रपों को एक झटके में किया दिल्ली दरबार ने “लावारिस”
हमारे आपके घर में जब कोई व्यक्ति गंभीर तौर से बीमार होता है तो ऐसी हालत में डॉक्टर उसका ऑपरेशन करने की सलाह देते हैं। कभी कभी स्थिति ऐसी होती है , की ऑपरेशन करना भी है या करवाना भी है और किसी को बताना भी नहीं है ऐसी स्थिति में बिना किसी को बताए हुए बीमार व्यक्ति का ऑपरेशन हो जाता है और बीमार व्यक्ति को तब पता चलता है जब ऑपरेशन हो जाता है। आरएसएस वा बीजेपी ने भी इस बार ऐसा ऑपरेशन किया है , जिसकी गूंज बहुत दूर तक सुनाई पड़ रही है । ऐसा ही कुछ बीते चंद दिनों में छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और राजस्थान के उन नेताओं के साथ हो गया जो नेता गुट बनाकर दिल्ली दरबार से टिकट लेकर आए थे और लगातार दिल्ली दरबार को अपनी गुटबाजी से परेशान कर रहे थे। दिल्ली दरबार भी मन मारकर उनकी गुटबाजियों को सहन कर रहा था। उसे सिर्फ इंतजार था उचित वक्त का और वह उचित वक्त भी आया जब विधानसभा के चुनाव हुए। विधानसभा के चुनाव के पहले किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री पद के नाम की घोषणा नहीं हुई। चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ा गया। चुनाव बीतने के बाद सभी छत्रप यह समझ बैठे कि अब तो दिल्ली दरबार को और ज्यादा आंखें दिखाएंगे । मगर दिल्ली दरबार तो कुछ और ही सोच बैठा था। दिल्ली दरबार ने अपने उन सभी लाडले और लाडली नेताओं के लिए कुछ अलग ही प्लान सोच रखा था जो इन क्षेत्रीय छत्रपो ने सपने में भी नहीं सोचा था। यहां यह मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे और वहां ऑपरेशन सत्ता कायाकल्प चल रहा था। इस सत्ता कायाकल्प के साथ ही भाजपा ने बाकी राज्यों के कार्यकर्ताओं को भी एक बड़ा संदेश दे दिया है। संदेश कुछ इस तरह है, इन तीनों राज्यों में राज्यों के छत्रप, संगठन पर धीरे-धीरे हावी हो रहे थे यहां तक की पन्ना प्रमुख किसको बनाया जाना है उसमें भी विधायक की पसंद ना पसंद जरूरी होने लगी थी। अगर कोई कार्यकर्ता विधायक का करीबी है तो वह पन्ना प्रमुख, मंडल अध्यक्ष जैसी पोस्ट पर विराजमान हो सकता था। दिल्ली दरबार इन्हीं सब चीजों को समझ भी रहा था और देख भी रहा था, कहने का तात्पर्य है कि क्षेत्रीय दल के छत्रप सर्वशक्तिमान होने लगे थे और उपकृत वह हो रहे थे जो बड़े नेताओं के संपर्क में थे। जमीनी कार्यकर्ता जमीन पर ही था। और अब वह सब लोग जमीन पर पहुंच गए हैं जिनके पांव जमीन छोड़ रहे थे।
ऑपरेशन सत्ता कायाकल्प से दिल्ली दरबार ने कई निशाने साध दिए हैं। एक तो दूसरी पार्टी को छोड़कर भाजपा में आए उन नेताओं को बड़ा झटका लगा जो सत्ता के शिखर पर बैठने का सपना देख रहे थे। प्रहलाद पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राकेश सिंह, गोपाल भार्गव जैसे बड़े नेताओं को इस बात का सपने में भी गुमान नहीं था कि संघ का ऑपरेशन सत्ता कायाकल्प चल रहा है जबकि यह सभी दिल्ली दरबार के बिल्कुल नजदीकी नेताओं में से एक है। मगर इस ऑपरेशन की भनक किसी को कानों कान तक ना हो पाई और अब इस कड़ी पर बड़े नेताओं की हालत ऐसी हो गई है की ना तो नेतृत्व को हां कहते बन रहा है ना ही ना । अगर किसी पद के लिए हां कहते हैं तो अपने अधीनस्थ रहे नेता के अधीन काम करना पड़ेगा और अगर नेतृत्व पद दे भी दे तो, मना करें भी तो किस मुंह से मना करें। अब सभी नेता किसी तरह से अपनी इज्जत बचाने में लग गए हैं कि हमें किसी तरीके से कोई पद का ऑफर ना किया जाए। तीन राज्यों के हुए चुनाव में मध्य प्रदेश में ही भाजपा की सरकार थी और वह भी किस तरह बनी थी यह तो भाजपा के दिल्ली दरबार से लेकर राज्य के छत्रप भी जानते हैं। मध्य प्रदेश को लेकर बहुत पहले से केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा थी, यहां पर नेतृत्व का परिवर्तन किया जाए। मगर छत्रपों के हावी होने की वजह से वह यह हिम्मत संभवत: नहीं जुटा पा रहे थे। मगर जैसे ही समय मिला ऑपरेशन सत्ता का कायाकल्प आरएसएस के द्वारा कर दिया गया और इसकी कानों कान भनक किसी को भी नहीं लगने दी गई। जिन भी नेताओं को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी मिली है सभी दिल्ली दरबार के रहमों करम पर ही अपनी सरकार चलाएंगे क्योंकि उनको पता है दिल्ली दरबार को जरा सी भी आंख दिखाना भारी पड़ सकता है और दिल्ली दरबार अब किसी भी छत्रप की आंख देखना चाहेगा भी नहीं। तो यूं समझा जाए जैसे एक मशहूर सीसीटीवी कैमरे की कंपनी की टैग लाइन है “ऊपर वाला सब कुछ देख रहा है” तो एक तरीके से इन सभी छत्रपों पर यह लाइन पूरी तरीके से फिट बैठती है।
दूसरे राज्यों के भाजपा नेताओं में बैठा अघोषित डर
ऑपरेशन सत्ता कायाकल्प के बाद में वह राज्य जहां बीजेपी की सत्ता है और जहां नहीं भी है वहां के उन छत्रपो में एक अघोषित डर का माहौल पैदा हो गया है । जिस तरीके के हालात उन्होंने इन तीन राज्यों में देखे हैं । अब उनको भी यह समझ में आने लगा है कि अगर ज्यादा उछल कूद की तो आने वाले वक्त में टिकट मिलने की संभावना तो कटेगी ही कटेगी संभावित जो पद को वह शोभायमान कर रहे हैं उससे भी हाथ धो बैठेंगे । इस ऑपरेशन कायाकल्प में विपक्ष के लिए भी एक संदेश छिपा हुआ है जिस तरीके से कांग्रेस की आज हालत आज क्षेत्रीय छत्रपो के हस्तक्षेप की वजह से हो गई है , अगर कांग्रेस को भी सत्ता में दोबारा से वापसी करनी है तो क्षेत्रीय छत्रपो पर कुछ भाजपा की तरह से ही कैंची उसी तरह चलानी पड़ेगी , कि किसी को कानों कान खबर भी ना हो और ऑपरेशन हो भी जाए । हालांकि कांग्रेस के लिए जितना यह लिखना आसान है उतना कर पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि कांग्रेस आज के दौर में इतनी ज्यादा गुटबाजी में नजर आ रही है कि चुपचाप कोई भी काम करना कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए फिलहाल मुश्किल नजर आता है ।
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