ओजस अस्पताल पर आरोप , किया गलत ऑपरेशन , बिल भी ले लिया , डीसीपी पर शिकायत दर्ज
पंचकूला के नामी प्राइवेट अस्पताल का कारनामा
मरीज का आरोप, किया गलत ऑपरेशन
पंचकुला के ओजस अस्पताल पर गंभीर आरोप
हर कोई व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी बीमार होता है और जब बीमार होता है तो तो उसे बीमारी का इलाज करवाने के लिए वह अस्पताल की शरण लेता है या डॉक्टर की शरण में जाता है। लेकिन अगर मरीज जिस बीमारी का इलाज करवाने के लिए डॉक्टर या अस्पताल के पास गया है उसकी जगह पर दूसरी बीमारी का इलाज डॉक्टर कर दे और वह भी सारी जांच होने के बाद तो ऐसी स्थिति में आप उस डॉक्टर को या अस्पताल को क्या कहेंगे। कुछ ऐसे ही आरोप पिंजौर के रहने वाले एक शख्स विकास ने ओजस अस्पताल के डॉक्टर मुकेश गोयल पर लगाए हैं। विकास का कहना है कि वो 21 दिसंबर 2023 को ओजस अस्पताल में अपनी पीठ में हो रही एक फुंसी का इलाज करवाने के लिए गया था। जहां पर कि उसकी सारी जांच पड़ताल हुई और डॉक्टर मुकेश गोयल ने सारी जांच पड़ताल करने के बाद ऑपरेशन करने की सलाह दी। मुकेश आगे बताते है कि मेरा ऑपरेशन कर दिया गया। मगर मेरा ऑपरेशन जिस जगह पर, फुंसी थी, किया जाना था वहां पर ना करके डॉक्टर मुकेश गोयल ने दूसरी जगह पर कर दिया। जब अगले दिन सुबह विकास को फुंसी में दोबारा से दर्द महसूस हुआ तो उसने डॉक्टर मुकेश गोयल से बात की तो विकास का कहना है कि मुकेश गोयल ने अपनी गलती मानी और दोबारा से 23 दिसंबर को नए सिरे से ऑपरेशन कर दिया। ( इस संबंध में सारे के सारे कागजात और जांच रिपोर्ट खबरी प्रशाद अखबार के पास मौजूद है। ) दोनों ऑपरेशन का पूरा बिल बनाकर उनसे चार्ज कर लिया गया। जब विकास ने इस बात को लेकर विरोध जाहिर किया कि गलत ऑपरेशन अस्पताल की और डॉक्टर की गलती की वजह से हुआ है तो पूरा बिल क्यों और मेरे शरीर में जो नुकसान हुआ है उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। तब अस्पताल की तरफ से लीपापोती करते हुए पूरे बिल में से ₹3000 कम कर दिए गए।
आपको बता दें, पंचकूला का ओजस अस्पताल का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी इस तरीके के कई मामले आए हुए हैं जिसमें की गलत इलाज की वजह से या तो मरीजों की जान चली गई है या वह मामला कोर्ट में चल रहा है। ऐसा ही एक मामला पंचकूला के ही एक नामी वकील के पिता का था जो कोविड के दौरान गलत रिपोर्ट बना करके इलाज किया गया था। जिसमें वकील ने कोर्ट की शरण ली थी और उस मामले में ओजस अस्पताल के डॉक्टर के ऊपर एफआईआर भी दर्ज हुई थी। अभी कुछ एक-दो महीने पहले की ही बात है, अंबाला के एक मरीज की हार्ट अटैक से मौत होने के बाद भी अस्पताल प्रशासन के द्वारा मरीज के परिजनों को नहीं बताया गया था। जब हंगामा मचा तब मरीज के परिजनों को बताया गया कि आपके मरीज की मौत हो चुकी है। तो पंचकूला का ओजस अस्पताल लगातार विवादों में रहने वाला अस्पताल है।
डॉ मुकेश गोयल ने अपनी सफाई में क्या कहा
जब हमारी टीम ने डॉक्टर मुकेश गोयल से विकास द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर उनसे संपर्क किया तो पहले उनका कहना था कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है और मरीज के आरोप गलत है। जब संवाददाता ने उनसे कहा कि इस मामले की शिकायत डीसीपी दफ्तर में पहुंच गई है तब बोले कि अल्केमिस्ट अस्पताल से ही सारी जानकारी आपको मिल जाएगी। मगर लगभग 20 मिनट के बाद दोबारा से डॉक्टर मुकेश गोयल ने खुद उसी नंबर पर फोन करके कहा शिकायत किए जाने के बाद हमने सारी जानकारी पुलिस के साथ साझा कर दी है। डॉक्टर मुकेश गोयल की पूरी बातचीत का ब्योरा भी हमारे पास मौजूद है।
इस मामले पर क्या बोली मुख्य चिकित्सा अधिकारी मुक्ता कुमार
जब हमारी टीम ने इस मामले को लेकर पंचकूला की मुख्य चिकित्सा अधिकारी मुक्ता कुमार से संपर्क किया तो उनका कहना था कि उनके पास इस संबंध में कोई शिकायत नहीं आई है। अगर मरीज की तरफ से कोई शिकायत आएगी तो वह पूरे मामले में मेडिकल बोर्ड की कमेटी गठित करेंगे और कमेटी ही सारी बात का फैसला देगी, तभी वह कुछ कर पाएंगे। लेकिन उसके पहले उनके पास शिकायत आना जरूरी है।
पंचकूला सेक्टर 25 चौकी इंचार्ज ने क्या कुछ बताया
पीड़ित मरीज द्वारा डीसीपी कार्यालय में इस संबंध में शिकायत दी गई थी जो की संबंधित एरिया की चौकी सेक्टर 25 में जांच के लिए भेजी गई थी। वहां के चौकी इंचार्ज सिंह राज से हमने इस मामले को लेकर जानकारी मांगी तो उन्होंने कहा कि हमारे पास डीसीपी कार्यालय से शिकायत आई थी और हमने डॉक्टर मुकेश गोयल से बात की थी। हम इस मामले की पूरी जांच करने के लिए सीएमओ मुक्ता कुमार को लिख रहे हैं। जैसे ही सीएमओ की तरफ से जो जानकारी आएगी उसके मुताबिक बनती कार्रवाई की जाएगी।
मतलब इतना तो तय है कि इन नामी बड़े अस्पतालों के ऊपर किसी प्रकार का कोई भी अंकुश आज की तारीख में पंचकूला प्रशासनिक अधिकारियों का नहीं है। लगातार बड़े अस्पतालों की शिकायतें होती हैं मगर नतीजा जीरो है क्योंकि यह सभी बड़े अस्पताल सत्ता के बड़े मठाधीशों के साथ जुड़े हुए होते हैं। इसलिए प्रशासनिक अमला भी सीधे तौर पर इन पर किसी प्रकार की कोई भी कार्रवाई करने से बचता है। आपको याद होगा कोविड के दौरान भी खुद विधानसभा स्पीकर ने कई प्राइवेट अस्पतालों से लगभग 50 लाख रुपए से ज्यादा मरीजों के वापस करवाए थे जो की बिलों में ज्यादा वसूले गए थे। अब देखना यह होगा कि पीड़ित व्यक्ति के द्वारा जो शिकायत दी गई है उस पर न्याय पूर्ण कार्यवाही कब और कितने दिनों में होती है और होती भी है या नहीं होती है।
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