पार्टी ,विचारधारा बदलते ही नेताओं के क्यों बदल जाते हैं सुर ?
भगवा होते ही बिट्टू की बदली तान , बोले लोकसभा चुनाव बाद चली जाएगी मान सरकार
सियासत में कब क्या कुछ हो जाए कुछ पता नहीं होता ना ही कुछ कहा जा सकता है । नेता पार्टी बदलते रहते हैं और जैसे ही वह अपनी पुरानी पार्टी बदलकर नए वस्त्र धारण करते हैं उनको पुराने वस्त्र में बदबू आने लगती है । मगर यह बदबू उनको तब तक उनके नथुनों में नहीं चढ़ती , जब तक वह पुरानी पार्टी में रहते हैं ।
यहां पर बात किसी एक नेता की नहीं हो रही है यह एक शास्वत सत्य बनता जा रहा है । कई बार तो नेता एक साल में तीन-तीन परियां बदल लेते हैं और पता ही नहीं चलता ऐसी स्थिति में उनके समर्थक और वोटर दोनों कंफ्यूजन होते हैं कि आखिरकार नेताजी है कि पार्टी के ।
चंद दिनों पहले ही लुधियाना के सांसद रवनीत बिट्टू ने अपना चोला भगवा रंग में रंगने के साथ ही अब कहना शुरू कर दिया है कि लोकसभा चुनाव तक ही बस मान सरकार के दिन है लोकसभा चुनाव खत्म मान सरकार चली जाएगी । उनका कहना है कांग्रेस के कई बड़े नेता और विधायक भी उनके संपर्क में है ।
आम आदमी पार्टी के जालंधर विधायक ने भी कल पलटी मारी थी और भगवा वस्त्र धारण करने के साथ ही उनको भी आम आदमी पार्टी चुभने लगी और भाजपा की शान में कसीदे खड़े जाने लगे । उनका भी कहने का लव बोलवाब यही है की जल्दी ही कुछ और बड़े नेता आम आदमी पार्टी से किनारा कर सकते हैं ।
राजनीति की खत्म हो गई विचारधारा,ना अब पार्टी से मोह ,
नेता जी की चाहत सिर्फ कुर्सी और पावर ,सत्ता कोई भी हो
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उपरोक्त लाइन पूरी तरीके से सटीक बैठती है । नेता किसी भी पार्टी का हो किसी भी विचारधारा कहो आज के वक्त में ना तो उसे पार्टी से प्यार है ना ही विचारधारा से , उसे प्यार है तो सिर्फ कुर्सी से और कुर्सी के पीछे जुड़ी पावर से । ना किसी नेता को जनता की तकलीफों से मतलब है । न हीं इस बात से जब नेताजी को कोई जानता नहीं था तब इसी पार्टी ने उनको आगे बढ़ाया था और उनका नाम बड़ा किया गया था ।
और बात जनता की अगर करें तो जनता भी इस बात को जानती है समझ भी रही है । इसीलिए आजकल जब नेता धरना प्रदर्शन के लिए निकलते हैं तो उनके साथ सिर्फ उनके चंद लोग ही होते हैं जो उनके ही टुकड़ों पर पाल रहे होते हैं ना कि आम जनता होती है । बात अगर ज्यादा बुराई ना करके 25 30 साल पीछे के इतिहास में जाकर करें तो जब नेता जनता से जुड़े हुए किसी मुद्दे को लेकर आवाज बढ़ाते तो जनता उनके साथ होती थी । मगर आजकल जनता ने भी ऐसे नेताओं से दूरी बनानी शुरू कर दी है ।
चुनाव ही तोड़ते हैं ऐसे नेताओं का भ्रमजाल
ऐसे दल बदलू नेताओं को पता चुनाव के वक्त चल जाता है कि जनता उनके साथ कितना खड़ी है ऐसे कई वीडियो अक्सर देखने को मिल जाते हैं जब नेताजी चुनाव जीतने के बाद जनता के बीच जाते हैं और जनता उनको खदेड़ देती है । तब नेताओं का भ्रमजाल टूट जाता है ।
वर्तमान प्रदेश में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं और जनता को भी चाहिए कि ऐसे नेताओं को अच्छी तरीके से सबक सिखाएं जो ना पार्टी के हैं ना विचारधारा के तो आम जनता के कैसे होंगे । चुनाव के वक्त नेता बड़े-बड़े वादे करके जाते हैं मगर जब वह अपनी पार्टी के ही नहीं हो पाए तो जनता के तो क्या ही होंगे । यह सोचना आम जनता को भी चाहिए ।
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