ड्रॉपआउट से बचने के लिए फीनलैंड से प्रेरणा की जरूरत
आज देश में स्कूल ड्रॉपआउट की संख्या में इजाफा हो रहा है। इस संबंध में हाल ही में ‘शिक्षा हेतु एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली, यू-डाइस यानी कि यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफोर्मेशन सिस्टम फोर एजुकेशन ने भारत में स्कूली बच्चों की ड्रॉपआउट यानी समय से पहले स्कूल छोड़ने की दर के आंकड़े जारी किए हैं।एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022-23 और 2023-24 के बीच जहां प्री-प्राइमरी पंजीयन संख्या 1.01 करोड़ से बढ़कर 1.30 करोड़ रही, वहीं स्कूल स्तर पर यह संख्या 25.17 करोड़ से घटकर 24.80 करोड़ हो गई। यहां यह बहुत चिंताजनक है कि एक साल में मिडिल और सेकंडरी स्तर तक जाते-जाते ड्रॉप-आउट रेट क्रमश 5.2 और 10.9% बढ़ गया। हालांकि,राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को रोकने और वर्ष 2030 तक माध्यमिक स्तर तक 100% सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) हासिल करने पर संकल्पित है, और इस दिशा में एक उल्लेखनीय प्रगति भी हासिल की है। मसलन, वर्ष 2014 में, 59.25 लाख बच्चे (6-14 वर्ष) और 255.81 लाख बच्चे (14-18 वर्ष) ड्रॉपआउट हुए। गौरतलब है कि वर्ष 2022-23 तक, 6-14 वर्ष आयु वर्ग में स्कूल छोड़ने की दर में 50% और 14-18 वर्ष आयु वर्ग में 16.3% की कमी आई।ये आंकड़े दर्शाते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में अनूठे और परिवर्तनकारी प्रयासों को बल दिया गया है और यह सुनिश्चित हुआ है कि हर बच्चा स्कूल में रहे। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारे देश में स्कूलों में उच्च ड्रॉपआउट दर के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें क्रमशः गरीबी, बुनियादी ढांचे(इंफ्रास्ट्रक्चर) की कमी, स्कूलों में अपर्याप्त शिक्षण स्टाफ, शिक्षा में रुचि की अभाव और बाल श्रम का प्रचलन। आज माता-पिता,अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं, लेकिन पढ़ाई में उनकी ग़रीबी कहीं न कहीं आड़े आ जाती है। वास्तव में एक गरीब व्यक्ति की यह आम सोच होती है कि वह अपने बच्चों को किसी काम या आजीविका कमाने में लगा दे, ताकि परिवार का खर्च आसानी और सरलता से चलाया जा सके। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चों को छोटी उम्र में ही या स्कूल जाने की उम्र में ही आजीविका में लगाना उनकी मजबूरी हो जाती है और बच्चों का ड्राप आउट होता है। ऐसा भी नहीं है कि आज देश में स्कूलों की संख्या में कोई कमी है। आज गांव-गांव, ढाणी-ढाणी तक में स्कूल खुल चुके हैं। यहां तक कि हाई राइज सोसाइटी में भी आज अनेक किंडरगार्टन स्कूल तक खुल गए हैं। भारत में आज तीन तरह के स्कूल हैं, जिनमें सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त (एडेड) और निजी स्कूल शामिल हैं।
आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में 2021-22 में हुई गणना के मुताबिक, 10,22,386 सरकारी और 3,35,844 प्राइवेट स्कूल हैं। आंकड़े बताते हैं कि सरकारी स्कूलों की संख्या 10,22,386, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की संख्या 82,480 तथा निजी स्कूलों की संख्या 3,40,753 है। यू-डाइस की साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 14,08,115 स्कूल हैं, लेकिन आज भी स्कूलों में अपर्याप्त शिक्षण स्टाफ, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमियां ड्रापआउट का कारण बन रहें हैं। शिक्षा के प्रति रूचि का अभाव, उदासीनता भी ड्रापआउट का एक बड़ा कारण है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यदि हमें स्कूलों से ड्रापआउट को कम करना है तो हमें स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर (बुनियादी ढांचे) को और अधिक मजबूत करना होगा। अभिभावकों को व छात्रों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना होगा। बेरोजगारी और ग़रीबी को दूर करने के संबंध में प्रयासों को और अधिक बल देना होगा। शिक्षा में नवाचार और नई रणनीतियों की ओर बल देना होगा। स्कूलों में पर्याप्त शिक्षण स्टाफ की व्यवस्था करनी होगी।
बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरक योजनाएं जैसे मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, यूनिफॉर्म और मिड-डे मील की गुणवत्ता में सुधार करना उपयोगी हो सकता है।छात्रों और अभिभावकों को स्कूल से जोड़ने की दिशा में यथेष्ट प्रयास करने होंगे। स्कूलों में लर्निंग को और अधिक प्रभावी व प्रासंगिक बनाना होगा।शिक्षा की लागत को भी कम करना होगा। शैक्षणिक स्तर को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के प्रयास करने होंगे। सामुदायिक योजनाओं को विकसित करना होगा। सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समुदाय आधारित कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं। स्कूल ड्रापआउट से बचने के लिए हम फिनलैंड जैसे देश से भी प्रेरणा ले सकते हैं। गौरतलब है कि फिनलैंड देश ने स्कूल ड्रॉप आउट को रोकने के लिए बहुत ही प्रभावी व शानदार नीतियां बनाई हैं। पाठकों को बताता चलूं कि वहां की शिक्षा प्रणाली व्यक्तिगत विकास और समग्र शिक्षा पर जोर देती है। फिनलैंड में मुफ्त शिक्षा, व्यक्तिगत शिक्षण सहायता और कक्षाओं में कम छात्र संख्या जैसी विशेषताएं शामिल हैं। अंत में, यही कहूंगा कि स्कूल ड्रॉप आउट की समस्या कहीं न कहीं बच्चों के व्यक्तिगत और सामाजिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, हमें यह चाहिए कि हम फिनलैंड से प्रेरणा लेते हुए अपने देश को शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक ऊंचाइयों की ओर ले जाएं।
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