नोटबंदी की 8वी बरसी , आई और चली गई !
ना बैंड -ना शहनाई , नोटबंदी की यह कैसी आठवीं बरसी आई !
क्यों बनाई नोटबंदी की चर्चा से भाजपा नेताओं ने दूरी ?
खरी-खरी
पीएमओ से लेकर भाजपा कार्यालयों में सन्नाटा पसरा पड़ा है जबकि आज 8 नवम्बर है – आखिर क्यों ? आज की तारीख (8 नवम्बर 2016) को ही रात को 8 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक दूरदर्शन पर आकर विस्फोट अंदाज में घोषणा की थी कि रात बारह बजे से 500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण (नोटबंदी) किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस घोषणा से सारे देश को सांप सा सूंघ गया था। नोटबंदी करने के पीछे कालेधन पर नियंत्रण और जाली नोटों से छुटकारा पाना बताया गया था। क्योंकि नोटबंदी कर्ताधर्ताओं का मानना था कि जाली नोटों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में किया जाता है। कहा जाता है कि नोटबंदी की योजना पिछले 6 महीने पहले बनाई गई थी जिसकी भनक देशवासियों को छोड़कर मुख्य सचिव नृपेन्द्र मिश्रा, आरबीआई गवर्नर, वित्त सचिव अशोक लवासा, आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास और वित्त मंत्री अरुण जेटली को थी। नोटबंदी का ऐलान होते ही बीएसई सेंसेक्स में 2.36 फीसदी और निफ्टी में 2.64 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी। देशभर में चारों खूंट अफरातफरी मच गई थी। आयकर विभाग के छापों से डर कर अनेक बाजार बंद हो गये थे। देशभर में आयकर विभाग ने छापेमारी की थी। जिसमें दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, लुधियाना का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। व्यवसाय चलाने के लिए पैसा न हीं होने का हवाला देते हुए 18 नवम्बर को मणिपुर में अखबारों ने अपने कार्यालय में तालेबंंदी कर दी थी।
जहां एक खूंटे से बंधे लोगों में से कुछ खास एम वैंकैया नायडू, राज्यवर्धन राठौर, प्रकाश जावड़ेकर, महेश शर्मा, रघुवर दास, देवेन्द्र फण्वनीस, नितीश कुमार जैसों ने नोटबंदी के पक्ष में बयान जारी किये थे तो वहीं दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, एलडीएफ, सीपीएम, कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने 28 नवम्बर को भारत बंद तक किया था। कहने का मतलब नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने संसद से लेकर सड़क तक जमकर बबाल काटा था। नोटबंदी का असर भारत के अलावा विदेशों में भी देखा गया था। जिस कालेधन और फर्जी नोटों पर नकेल कसने के लिए नोटबंदी की गई थी वह पूरी तरह से असफल साबित हुई क्योंकि तकरीबन 99 फीसदी रुपया तो बैंक में वापस आकर जमा हो गया। हां आम आदमी जरूर नोट बदलने के लिए निर्धारित की गई समय सीमा में आहुरपीटा होता रहा। चलते पुरजों ने तो बिना लाइन में लगे सारे सफेद-काले-पीले नोटों को घर बैठे बदल लिया था। कहा तो यहां तक गया कि सरकारी मित्रों को पहले ही आगाह कर दिया गया था।
भाजपाई कह सकते हैं कि नोटबंदी कि अवधारणा तो 2014 में कांग्रेस लेकर आई थी। इस पर भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी जोरदार विरोध करते हुए जो कुछ कहा था वह गौर करने लायक है। मीनाक्षी लेखी ने कहा था कि “आम औरत और आदमी जो लोग अनपढ़ हैं और बैंकिंग सुविधाओं तक जिनकी पहुंच नहीं है ऐसे लोग इस तरह के उपायों से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। मुख्य रूप से कुछ समय के अंतराल में जनता स्वंय 2000 के नोट को चलन से बाहर कर देगी क्योंकि जहां कम मूल्य की वस्तु खरीदनी हो तब दुकानदार 2000 के नोट नहीं लेगा। परिणामस्वरूप 2000 रुपये के नोटों की जमाखोरी होगी अथवा कालेधन का सृजन होगा”।
अपनी हर गैर जरूरी उपलब्धियों पर भी कैबरे करने वाले भाजपाई नोटबंदी की 8 वीं बरसी पर कोपभवन पर बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। ना बैंड ना शहनाई। स्ट्रीम मीडिया भी सदमे में दिख रहा है ना कोई डिबेट ना चीख चिल्लाहट। यह भी नहीं बताया जा रहा कि नोटबंदी से देश को कितना नफा-नुकसान हुआ।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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