नारी दिवस पर समाजसेवी आर पी मल्होत्रा की सुंदर कविता
मैं नारी हूँँ
न समझो सोंदर्य की मूर्त
न अबला न आभारी हूँ
एम्पावरमेंट की हद से परे
अनंत सामर्थ्य से भरपूर
लाचार नहीं मैं नारी हूँँ।
नहीं कोई अलंकार
जो परिभाषित कर सके मुझको
न मर्दानी न नारायणी
नारी तो स्वयं सम्पूर्ण है
अरे क्या धरती
क्या बृह्मंड
शक्ति के बिना
त्रिदेव भी अपूर्ण है।
कैसा नारी सशक्तिकरण?
क्यों लेडीज फस्ट का फरमान?
क्यों हमदर्दी का अहसान
नहीं शोकेश का पीस कोई
मैं तलवार हूँँ
मैं कटार हूँँ।
मैं तो बस एटपार हूँ।
क्योंकि मै एक नारी हूँँ।
गया जमाना कन्यादान का
क्यों कोई जुए में हारे
नहीं बेटी कोई पराई मैं
मायका हो या ससुराल
मैं अधिकारी हूँ
अपने अस्तित्व की
स्वयं निर्माता
मैं नारी हूँँ।
मां बनना मेरी विवशता
मेरा कर्तव्य नहीं
अहसान है सृष्टि पर
न मैं अर्धांगिनी न परछाई
मर्द मेरी वैसाखी नहीं, साथी है
मैं मर्द की प्रेरणा
सहचरी सहकारी हूँ
मैं नारी हूँ
नहीं ड्राइंग रुम का
सामान कोई
फखत बच्चे पैदा करने का
इंतजाम कोई
मां बहन बेटी सहचरी
हर हाल में नर पर भारी हूँ
मुझे गर्व है मैं नारी हूँँ।
मैं आधी आबादी
मैं व्यर्थ नहीं
सशक्त हूँ समर्थ हूँ
बांध न पाएगी
कोई बेड़ी मुझको
पूरे आसमान में
छा जाने को सज हूँँ
मेरी ऐक ही पहचान
मैं एक नारी हूँँ।
अब न खून से सनेगी
कोई निर्भया
न एसिड में जलेगी
कोई लक्ष्मी
और न ही पेट्रोल से
जलेगी कोई दामिनी
अगर रच सकती हूँ
सृष्टि अपने रक्त से तो,
संहार भी कर सकती हूँँ
मैं नारी हूँँ।
आर पी मल्होत्रा
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