भारत में महिला शिक्षा के अग्रदूत थे महात्मा ज्योतिबा फुले: डॉ. रामपाल सैनी
डीएवी पीजी कॉलेज में पत्रकारिता एंव जनसंचार विभाग के तत्वावधान में महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की पुन्यतिथि पर उनको नमन करते हुए पुष्प अर्पित किये। कॉलेज प्राचार्य डॉ. रामपाल सैनी ने महात्मा ज्योतिबा फुले के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए कहा कि वह भारत में महिला शिक्षा के अग्रदूत थे। उन्होंने कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले माली का काम करता था। वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करते थे। इसलिए उनकी पीढ़ी फुले के नाम से जानी जाती थी। ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने मराठी में अध्ययन किया। वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। 1840 में ज्योतिबा का विवाह सावित्रीबाई से हुआ था। महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आंदोलन जोरों पर था। जाति-प्रथा का विरोध करने और एकेश्वरवाद को अमल में लाने के लिए ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना की गई थी जिसके प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे। उस समय महाराष्ट्र में जाति-प्रथा बड़े ही वीभत्स रूप में फैली हुई थी। स्त्रियों की शिक्षा को लेकर लोग उदासीन थे, ऐसे में ज्योतिबा फुले ने समाज को इन कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। उन्होंने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था। उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला। लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा को दिया जाता है। इन प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन जारी थे जिसने सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त किया था। लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत हुई, जो आजादी की लड़ाई में उनके संबल बने। उन्होंने किसानों और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था। इस मौके पर जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विजय कुमार, राजनीति शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बलराम शर्मा, प्रो. गुरदेव सिंह व अन्य मौजूद रहे।
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