शादी के बाद लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती मुस्लिम महिला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नहीं दी मुस्लिम महिला को सुरक्षा
खबरी प्रशाद, लखनऊ: एक जमाना था जब महिला और पुरुष को एक साथ एक ही छत के नीचे बिना शादी किए रहने का समाज मान्यता नहीं देता था । मगर यह बीते जमाने की बात होती जा रही है । आज कल महानगरों मे दफ्तरों में काम करने वाले जोड़े लिव इन रिलेशन शिप मे रहते है । उसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं । हिंदू समाज में लिव इन रिलेशनशिप को तो फिर भी मान्यता दे दी गई है । मगर मुस्लिम समाज में आज भी यह इलीगल माना जाता है ।
मुस्लिम महिला मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
इस्लाम में लिव इन रिलेशनशिप को हराम बताया गया है और शादीशुदा महिला का तो लिव इन रिलेशनशिप में रहने का सवाल ही नहीं उठता । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसी ही एक याचिका को खारिज कर दिया है जो कि एक मुस्लिम महिला के द्वारा दायर की गई थी ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के द्वारा एक ऐसी मुस्लिम महिला की याचिका को खारिज कर दिया गया है जो लिव इन रिलेशनशिप के लिए थी । जिसमें एक मुस्लिम महिला जो कि शादी के बाद लिव ईन रिलेशनशिप मे रहना चाहती थी । इलाहाबाद हाईकोर्ट में जान का खतरा बताते हुए यह महिला सुरक्षा की मांग को लेकर पहुंची थी हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की और यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि मुस्लिम लॉ के मुताबिक मुस्लिम महिला किसी के साथ लीव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती । लिव इन को इस्लाम में हराम बताया गया है
दरअसल महिला द्वारा इस उम्मीद से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि उन्हें वहाँ से सुरक्षा मिल जाएगी । आवेदिका की इस हरकत को इलाहाबाद हाई कोर्ट के द्वारा आपराधिक कृत्य बताया गया न्यायालय के द्वारा बड़े ही स्पष्ट एवं कड़े शब्दों में कहा गया है कि महिला के इस आपराधिक कृत्य को न्यायालय के द्वारा समर्थन और संरक्षण नहीं दिया जा सकता महिला अपने माता-पिता और पति से जान का खतरा होने को लेकर सुरक्षा के लिए पहुंची थी ।
विवाहित पत्नी बाहर जाकर नहीं कर सकती शादी
इलाहाबाद हाई कोर्ट के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि मुस्लिम कानून के प्रावधनों का उल्लंघन करते हुए याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ संबंधों में रह रही हैं जिसमें कानूनी रूप से विवाहित पत्नी बाहर जाकर शादी नहीं कर सकती है और मुस्लिम महिलाओं के इस कृत्य को “जीना” और “हराम” के रूप में परिभाषित किया गया है अगर हम याचिकाकर्ता नंबर 1 के कृत्य की आपराधिकता पर जाएं तो उस पर आईपीसी की धारा 494 और 495 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है क्योंकि ऐसा रिश्ता लिव इन रिलेशनशिप या विवाह की प्रकृति के रिश्ते के दायरे के बाहर नहीं आता है इसी के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महिला को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया|
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