पॉलीग्राफी टेस्ट को लेकर मचा हंगामा, क्या सच और झूठ बोलने वाली मशीन से कोलकाता केस में मिलेगा कोई सुराग?
कोलकाता रेप केस जिसने फिलहाल पूरी दुनिया को हिला दिया है, उसमें अब मुख्य आरोपी समेत 7 लोगों का पॉलीग्राफी टेस्ट होने जा रहा है। केस ने यह मोड़ ले लिया है कि अब कई सारे सवाल खड़े होने लगे हैं। फिलहाल कोलकाता रेप मर्डर केस में सीबीआई जांच कर रही है और केस की गुत्थी को सुलझाने की कोशिश मैं लगी हुई है, सीबीआई ने ही पॉलीग्राफी टेस्ट का फैसला किया है। इसके बाद माना जा रहा है कि केस को लेकर बहुत सी चीजें साफ हो जाएंगी।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में रेप और हत्या मामले को लेकर पूरा देश गुस्से में है। इस केस के बाद हिमायत का एक ऐसा चेहरा सामने आया है जिसने इंसानियत पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। पहले गैंग रेप उसके बाद बेरहमी से हत्या कर देना बेटियों की सुरक्षा पर भी सवाल उठा रहा है। सीबीआई केस की जांच के बाद भी कई सारे सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिले हैं। जैसे सबसे बड़ा सवाल अभी भी यही है कि इस केस की सच्चाई क्या है? अब इस गुत्थी को सुलझाने के लिए अहम फैसला लिया जा रहा है। सीबीआई ने आरजी कर रपे केस के 7 लोगों का पॉलीग्राफी टेस्ट करने की मांग रखी है, उसमें मेडिकल कॉलेज के 4 कर्मचारियों भी शामिल है- 2 फर्स्ट ईयर पीजीटी डॉक्टर (अर्का और सौमित्र), 1 हाउस स्टाफ (गुलाम) और 1 इंटर्न (सुभदीप)। सबसे पहला सवाल यह है कि इन चार कर्मचारियों का टेस्ट क्यों करवाया जा रहा है?
जानिए क्यों होने जा रहा है मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों का पॉलीग्राफी टेस्ट
- इंटर्न का टेस्ट इसलिए होने जा रहा है क्योंकि उस समय वह तीसरी मंजिल पर था और उसने पीड़िता से बातचीत की थी।
- अगर डॉक्टर की बात की जाए तो सेमिनार रूम में 2 डॉक्टरों के फिंगरप्रिंट मिले हैं।
- हाउस स्टाफ को सीसीटीवी में पहली मंजिल की इमरजेंसी से तीसरी मंजिल पर जाते हुए देखा गया है।
आपको बता दे की पॉलीग्राफी टेस्ट का रिजल्ट कोर्ट में मान्य नहीं होगा है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब पॉलीग्राफ टेस्ट का रिजल्ट कोर्ट में मन ही नहीं जाता तो फिर सीबीआई इस टेस्ट को क्यों करवाना चाहती है? इसके लिए सबसे पहले जाना होगा कि पॉलीग्राफी टेस्ट का अर्थ क्या है।
पॉलीग्राफी टेस्ट क्या होता है?
लाई डिटेक्टर टेस्ट को ही पॉलीग्राफ टेस्ट कहा जाता है। इसमें शरीर को कार्डियो-कफ या सेंसेटिव इलेक्ट्रोड से मॉनिटर से जोड़ दिया जाता है, उसके बाद पूछताछ होती है और झूठ बोलने पर पसीना आने लगता है, दिल की धड़कन तक तेज हो जाती है। यहां तक की रक्त प्रवाह में भी बदलाव देखने को मिलता है। इससे ये पता लग जाता है कि सामने वाला झूठ कह रहा है या सच कह रहा है। इस टेस्ट में तीन तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। फर्स्ट न्यूमोग्राफ, सेकेंड र्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर और फिर तीसरा गैल्वेनोमीटर। टेस्ट के दौरान व्यक्ति की उंगली कर और शरीर के कई अंगों को मशीन से कनेक्ट किया जाता है। फिर सवाल पूछना शुरू कर देते हैं, इसके बाद मशीन में एक ग्राफ बनकर सामने आता है। साफ शब्दों में इसे झूठ और सच का पता चलता है। पॉलीग्राफ टेस्ट के परीक्षण में लगभग 4 घंटे का समय लगता है। जांच के लिए केवल कोर्ट की मंजूरी नहीं चाहिए होती। कोर्ट के सामने आरोपित इसके लिए सहमति देता है तो ही उसकी जांच कराई जा सकती।
पॉलीग्राफी टेस्ट कैसे होता है?
- न्यूमोग्राफ में डिवाइस व्यक्ति की सांस लेने की पल्स रेट और गहराई को मापता है। यानी जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी सांस लेने में बदलाव आ जाता है और मशीन उसे पकड़ लेती है।
- कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर में मशीन व्यक्ति की दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर को मेजर करता है। यानी जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है।
- गैल्वेनोमीटर में व्यक्ति की त्वचा की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी को चेक किया जाता है। यानी जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी स्किन की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी बढ़ने लगती है।
कोर्ट में मान्यता नहीं फिर भी टेस्ट क्यों करवाना चाहती है सीबीआई?
यह इसलिए करवाना जरूरी है ताकि जांच एजेंसी को केस में मदद मिले। पूरी घटना को समझने के लिए टेस्ट काफी हद तक काम आ सकता है। इसके जरिए जांच एजेंसियां यही पता लगाती हैं कि आरोपित या अपराधी जो कुछ भी कह रहा है, वह सच है या झूठ? हालांकि, यह सच है पॉलीग्राफी टेस्ट के दौरान अभियुक्त से लिए गए बयान की कोई कानूनी वैधता नहीं होती है। कानून के तहत कोई भी किसी भी तरह से और किसी भी व्यक्ति को गवाही देने पर मजबूर नहीं कर सकता। पर सीबीआई बस यह जानना चाहती है कि उनकी करवाई सही दिशा में जा रही है या नहीं। इस टेस्ट जे जरिए उन्हें किसी तरीके का कोई सुराग मिल सके।
पॉलीग्राफी टेस्ट से क्या पहुंचता है शारीरिक नुकसान?
वैसे तो इस टेस्ट से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। फर्स्ट झूठ बोलने वाले की हार्टबीट और ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। जिसके कारण ग्राफ से सच्चा झूठा का पता लगाया जाता है। यह टेस्ट ना तो 100% करेक्ट माना गया है क्योंकि कई बार तनाव की वजह से भी ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है और हार्ट बीट तेज हो जाती है। इस टेस्ट का नतीजा हमेशा सटीक नहीं होता।
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