खुदीराम बोस: 18 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ने वाला भारत का सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी
भारत 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, और इस जश्न के पीछे कई महान क्रांतिकारियों की बलिदानों की कहानियाँ हैं। इन कहानियों में खुदीराम बोस का नाम विशेष स्थान रखता है। खुदीराम बोस, जिनकी उम्र मात्र 18 साल थी, ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी और ब्रिटिश राज के खिलाफ अपने साहसिक कदमों से इतिहास रचा।
जीवन की शुरुआत: खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। कम उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया और उनकी बड़ी बहन ने उनकी देखभाल की। जब वो केवल 11 साल के थे, तब उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेने का निर्णय लिया। 16 साल की उम्र में, 1905 में, खुदीराम ने सक्रिय स्वयंसेवक के रूप में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।
क्रांतिकारी कदम और गिरफ्तारी: 15-16 साल की उम्र में ही खुदीराम बोस को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े पर्चे बांटने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने बम बनाने की कला सीखी और पुलिस थानों के सामने बम लगाना शुरू कर दिया।
किंग्सफोर्ड पर हमला: 1908 में, खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस एच किंग्सफोर्ड को निशाना बनाया। 30 अप्रैल 1908 को, खुदीराम ने किंग्सफोर्ड की घोड़ा गाड़ी पर बम फेंका, लेकिन किंग्सफोर्ड उस समय गाड़ी में नहीं थे। इस हमले में किंग्सफोर्ड की पत्नी और बेटी घायल हो गईं।
फांसी की सजा और अंतिम क्षण: खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया और 11 अगस्त 1908 को फांसी की सजा दी गई। उनकी उम्र केवल 18 साल थी, और इस प्रकार वे सबसे कम उम्र के फांसी पर चढ़ाए जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी बने। जब उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया, तो वे मुस्कुराते हुए और गीता का पाठ करते हुए शहीद हो गए। उनके शव को जिस रास्ते से ले जाया गया, वहाँ भारी भीड़ जमा हो गई और लोगों ने फूलों की बारिश की।
खुदीराम बोस की कहानी न केवल उनकी साहसिकता और बलिदान की गवाही देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा कितनी कठिनाइयों और बलिदानों के बावजूद अपने देश की आजादी के लिए समर्पित थे।
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