28 फरवरी से शुरू होगा शीश के दानी का मेला ,तैयारियां जोरो शोरों पर
खाटूश्यामजी मेले के लिए नए दिशा-निर्देश: जयपुर से नया रास्ता, श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था
देश विदेश से करोड़ों लोगों आते है खाटू श्याम बाबा के दर्शन करने
सीकर केशव माहेश्वरी
खाटूश्यामजी के प्रसिद्ध लक्खी मेले की शुरुआत 28 फरवरी से होने जा रही है। यह मेला लगभग 12 दिन चलेगा, और इस दौरान दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु खाटूश्याम बाबा के दर्शन करने पहुंचेंगे। इस साल के मेले में पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित 10 से ज्यादा देशों से श्रद्धालु आएंगे। हर साल मेले में श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ प्रशासन ने इस बार के आयोजन के लिए विशेष तैयारियाँ की हैं।
नया रास्ता: सुरक्षा को प्राथमिकता
खाटूश्यामजी के मेले में जयपुर से सबसे ज्यादा श्रद्धालु पदयात्रा करते हुए पहुंचते हैं। अब तक इन श्रद्धालुओं को जयपुर से रींगस तक भारी ट्रैफिक के बीच लगभग 60 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। इससे कई बार सड़क हादसे भी हुए हैं। इस समस्या से निपटने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) द्वारा जयपुर से रींगस तक एक अलग पाथ-वे बनाया जा रहा है। इस 48 किलोमीटर लंबे पाथ-वे पर लगभग 7 करोड़ रुपये खर्च होंगे और यह 25 फरवरी तक पूरा हो जाएगा। यह पाथ-वे श्रद्धालुओं को सुरक्षित रूप से खाटू तक पहुंचने में मदद करेगा।
खाटू मंदिर के लिए नई गाइडलाइन्स
- दर्शन की व्यवस्था: खाटू में दर्शन के लिए इस बार 14 लाइन की व्यवस्था की जाएगी। 4 लाइन कबूतर चौक से, 2 लाइन गुवाड़ चौक से और 8 लाइन मेन एग्जिट से शुरू होंगी। साथ ही, मेला प्रशासन ने दर्शनों का समय और अन्य जरूरी जानकारी अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पेज पर उपलब्ध करवाई है।
- ई-रिक्शा और पदयात्रियों के रास्ते अलग: मेला प्रशासन इस बार ई-रिक्शा और पदयात्रियों के लिए अलग-अलग रास्ते तैयार कर रहा है। नए मार्ग के निर्माण में लगभग 7.40 करोड़ रुपये की लागत आ रही है। बिना लाइसेंस के चलने वाली ई-रिक्शा पर सख्ती बरती जाएगी ताकि जाम की स्थिति न बने।
- निशान, इत्र और फूलों पर कड़ी निगरानी: इस साल मंदिर परिसर में 8 फीट से ऊंचे निशान और कांच की बोतलें बेचने पर पाबंदी रहेगी। साथ ही, कांटों वाले गुलाब के फूल और इत्र की कांच की बोतलें बेचने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। भंडारे के लिए भी समय सीमा तय की जाएगी, और भंडारे के लिए एक निर्धारित शुल्क लिया जाएगा।
- क्यूआर कोड के जरिए दर्शन: श्रद्धालुओं के लिए क्यूआर कोड की व्यवस्था की जाएगी, जिससे वे आसानी से मंदिर परिसर तक पहुंच सकेंगे। सरकारी प्रोटोकॉल वाले वीआईपी को छोड़कर किसी भी श्रद्धालु के लिए वीआईपी दर्शन की व्यवस्था बंद रहेगी। साथ ही, रींगस रोड पर डीजे और शराब पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।
इन नए नियमों और व्यवस्थाओं के माध्यम से खाटूश्यामजी मेला अधिक सुव्यवस्थित और सुरक्षित तरीके से आयोजित किया जाएगा, जिससे श्रद्धालु बिना किसी परेशानी के बाबा के दर्शन कर सकेंगे।
कौन है खाटू श्याम बाबा और क्या है उनकी महिमा
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहां हर साल लाखों भक्त भगवान खाटू श्याम के दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर महाभारत के समय से जुड़ा हुआ है और खाटू श्याम को “हारे का सहारा” भी कहा जाता है। खाटू श्याम का विश्वास है कि वे अपने भक्तों को कभी अकेला नहीं छोड़ते और जीवन के संघर्षों में उनका सहारा बनते हैं।
खाटू श्याम का मंदिर हर साल फाल्गुन माह में आयोजित होने वाले मेले के दौरान विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्त उमड़ते हैं, जो यहां बाबा के दर्शन करने के साथ-साथ अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की उम्मीद लेकर आते हैं।
खाटू श्याम जी का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। वे भीम के पोते घटोत्कच के पुत्र और बर्बरीक के रूप में प्रसिद्ध हैं। बर्बरीक बचपन से ही एक वीर और निपुण योद्धा थे। उन्होंने शिवजी की घोर तपस्या करके तीन अमोघ बाण प्राप्त किए थे, जिनके बल पर उन्हें “तीन बाणधारी” के नाम से भी जाना गया।

महाभारत के युद्ध की शुरुआत में, बर्बरीक ने अपनी शक्ति और वीरता का परिचय देने का निश्चय किया। वह अर्जुन की तरह महान धनुर्धारी थे और उनका उद्देश्य था कि वह युद्ध में हिस्सा लेकर कौरवों और पांडवों के बीच निर्णायक भूमिका निभाएंगे। लेकिन, जब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से युद्ध के बाद की स्थिति का आकलन किया, तो उन्होंने बर्बरीक से उनकी शक्ति का त्याग करने का आग्रह किया। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की बलि लेकर उनकी आत्मा को शांति प्रदान की और बाद में खाटू श्याम के रूप में उनकी पूजा की जाने लगी।
खाटू श्याम जी के दर्शन करने से भक्तों को जीवन के हर क्षेत्र में आशीर्वाद और शांति मिलती है, और यही कारण है कि लाखों श्रद्धालु यहां अपनी आस्था और विश्वास के साथ पहुंचते हैं।
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