उठो द्रोपदी वस्त्र सम्हालो अब गोविंद ना आयेंगे , औपचारिकता बनकर रह गई है रामनवमी और कृष्णजन्माष्टमी
कहाँ तो तय चिरागां हरेक घर के लिए कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
खरी खरी
देश की सबसे बड़ी पंचायत हो राज्यों की बड़ी पंचायत सभी जगह कब्जा है रेपिस्टों और मर्डरों का। देश की कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसमें बलात्कारियों और हत्यारों की भरमार ना हो। देश का एक भी राज्य अछूता नहीं है बच्चियों – उम्रदराज महिलाओं के यौन उत्पीड़न से। जनता, समाजसेवी संस्थाएं यहां तक कि अदालतें और सरकारें भी तभी संज्ञान लेती हैं जब किसी हाई-प्रोफाइल तबके की महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न होता है वरना सभी कब्र में मुरदों की माफिक पड़े रहते हैं। गरीब-गुरबों की बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कार में तो पुलिस रिपोर्ट लिखने के बजाय भडुओं (दलाल) की माफिक पीड़िता और उसके परिजनों को सुलह करने का दबाव बनाती रहती है। जहां तक मीडिया की बात है तो वह तो अपने राजनीतिक आकाओं और चंद सिक्कों की खनन के आगे मुजरा करते दिखाई देता है।
जहां राज्यों में ममता बनर्जी का राज्य पश्चिम बंगाल महिला यौन उत्पीड़न के मामले में सिरमौर है तो वहीं नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी बलात्कारियों-हत्यारों के मामले में पहले पायदान पर खड़ी है। मोदी सरकार की बैसाखी बने चंद्रबाबू नायडू का राज्य आंध्र प्रदेश दूसरे और भाजपा का नया राज्य उडीसा तीसरे नम्बर पर है। नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल की दिल्ली और टैम्पो सरकार वाला राज्य महाराष्ट्र एक दूसरे से आगे बढ़ने के लिए संघर्षरत हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश से भी प्रायः हररोज रेप-मर्डर की खबरें आ ही जाती हैं। बतौर राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के पास जनप्रतिनिधि बलात्कारियों का अच्छा खासा कुनबा इकट्ठा है। कांग्रेस, तेलगू देशम, आम आदमी पार्टी (आप), तृणमूल-कांग्रेस के पास भी दहाई के अंको में रेपिस्ट – मर्डरों का जमघट है। कह सकते हैं कि देश की सबसे बड़ी पंचायत (संसद) और राज्य की बड़ी पंचायतें (विधानसभा) दुशासनों से भरी पड़ी है। पुष्पमित्र उपाध्याय की कविता आज के संदर्भ में सटीक बैठती है । जिसमें उन्होंने बिकाऊ मीडिया, लज्जाहीन अंधे-बहरे-गूंगे राजाओं के दुशासनी दरबारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि “उठो द्रोपदी वस्त्र सम्हालो अब गोविंद ना आयेंगे।
अदालतों की भूमिका सबसे दयनीय है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में मेडिकल कॉलेज की प्रशिक्षु लेडी डाक्टर के साथ रेप फिर हत्या के मामले में तथा महाराष्ट्र के बदलापुर में स्कूली बच्ची के साथ हुई यौन दरिंदगी अखबारों की सुर्खियां तब बनी जब दोनों जगह की जनता सड़कों पर उतरी। दोनों जगह पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में हद दर्जे की लापरवाही दिखाई। लगता तो यही है कि यदि जनसैलाब सड़कों पर नहीं होता तो पुलिस मामले को रफा-दफा करने के लिए दलाली कर चुकी होती। कोलकाता और बंबई हाईकोर्ट की भूमिका पर उंगलियां उठाई जा रही है। जहां कोलकाता हाईकोर्ट पश्चिम बंगाल में रेप-हत्या कांड को लेकर ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ भाजपा द्वारा किए गए धरना – प्रदर्शन – मार्च को लेकर आंखें मूंद लेता है वहीं बंबई हाईकोर्ट बदलापुर के यौनाचार को लेकर विपक्ष द्वारा धरना – प्रदर्शन – मार्च की मांग को अवैधानिक बताकर अनुमति नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट भी केवल कोलकाता के मेडिकल कॉलेज के रेप-मर्डर पर संज्ञान लेता है।
राजस्थान में 3 साल की बच्ची के साथ बलात्कार – हत्या, 63 वर्षीय महिला के साथ गैंग रेप, जालौन में तो पुलिस ने 2 माह तक दुष्कर्म पीड़िता की रिपोर्ट ही नहीं लिखी जब तक कि पीड़िता के बाप ने शर्मिंदगी से आत्महत्या नहीं कर ली, यूपी में नर्स के साथ डाक्टर द्वारा रेप, उत्तराखंड के देहरादून में युवती के साथ गैंग रेप, उडीसा में बच्ची के साथ बलात्कार, हरियाणा के रोहतक में मेडिकल छात्रा के साथ खौफनाक हैवानियत, मध्यप्रदेश के शहडोल में नाबालिक का बलात्कार, सागर में 7 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म, अरुणाचल प्रदेश में युवती का अपहरण कर 5 दिन तक रेप, बिहार के मुजफ्फरपुर में 14 वर्ष की दलित युवती का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार और दुर्दांत तरीके से हत्या, दिल्ली के मशहूर पार्क में गैंग रेप । ये सभी मामले हाल ही में घटित हुए हैं। मगर ना सरकारों की सेहत पर कोई फर्क पड़ ना ही अदालतों के कानों में जूं रेगीं।
महिला सुरक्षा और अपराधियों को कड़ सजा दिलाने की डींगें हांक कर लबर-लबर भाषण देने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी की भाजपा का भाजपाई टूल किट पश्चिम बंगाल की घटना पर तो विधवा विलाप करते हुए छाती पीटता है मगर भाजपा शासित प्रदेशों में हुई घटनाओं पर शुतुरमुर्ग की तरह जमीन के भीतर मुंह गडा़ लेता है। ऐन चुनाव के पहले ही बलात्कारी – हत्यारे राम रहीम सिंह को पैरोल दी जाती है। हाल ही में राम रहीम सिंह को सातवीं बार पैरोल पर रिहा किया गया है। रहीम के बाहर आते ही चुनाव आयोग हरियाणा में विधानसभा के चुनाव की तारीख घोषित कर देता है। देखने में तो यही आ रहा है कि बीजेपी की डबल इंजन सरकारें बलात्कारी दरिंदों के लिए सुरक्षित ऐशगाह बन गई हैं ठीक उसी तरह जैसे भाजपा गुनहगारों की शरण स्थली बनी हुई है।
यूपी, मध्यप्रदेश, राजस्थान में तो अदालतों के दरवाजे ताला जड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि इन प्रदेशों में अदालती न्याय का स्थान बुलडोजर न्याय ले चुका है और अदालतों ने सांसें लेना बंद कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट तक ने आंखों पर पट्टी बांध ली है। सुप्रीम कोर्ट भी समय-समय पर देशवासियों को न्याय की बाजीगरी दिखाता रहता है। बाबा रामदेव, बालकृष्ण व पतंजलि आयुर्वेद ने दवाइयों के भ्रामक प्रचार (विज्ञापन) से अरबों – खरबों में कमाई की, उन दवाइयों के सेवन से लाखों मरीजों पर दुष्प्रभाव पड़ा उस पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई कार्रवाई नहीं की उल्टे माफी मांग लेने पर अवमानना कार्रवाई बंद कर दी। गजब है सुप्रीम कोर्ट का न्याय – आर्थिक अपराध में फंसने के बाद भी धन्नासेठों, दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं। क्या सुप्रीम कोर्ट और मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट स्वयं संज्ञान लेकर इन प्रदेशों की सरकारों द्वारा न्यायलयीन न्याय को ध्वस्त कर किये जा रहे बुलडोजर न्याय को रोकने के लिए प्रदेश सरकारों पर आपराधिक मामला दर्ज करने का साहसिक आदेश देंगी और प्रदेश में कानून का राज स्थापित करेंगी।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता, स्वतंत्र पत्रकार
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