खरी-खरी : जमूरों को है जादूगर के जादू पर भरोसा
साल के कम होते दिनों में नरेन्द्र भाई हथेली पर जमायेंगे 1.59 ट्रिलियन डालर की सरसों
2025 में 365 दिनों की अवनति शुरू होते ही 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दी गई भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डालर बनाने की डेडलाइन 31 दिसम्बर 2025 को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों , अर्थशास्त्रियों, बुध्दिजीवियों के बीच चर्चा शुरू हो गई है। जादूगरों के देश में भरोसा है अपने जादूगर के जादू पर कि वह 31 दिसम्बर 2025 तक भारत की इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन डालर और अमेरिका और चीन के बाद तथा जर्मनी और जापान को पीछे धकेलते हुए तीसरे पायदान पर भारत को खड़ा कर देगा ।
आईएमएफ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की जीडीपी 3.41 ट्रिलियन डालर है जबकि अमेरिका की जीडीपी 28.78 ट्रिलियन, चीन की 18.53 ट्रिलियन, जर्मनी की 4.59 ट्रिलियन और जापान की 4.11 ट्रिलियन डालर है। मतलब भारत को 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने के लिए अभी भी 1.59 ट्रिलियन डालर की जरूरत है, वह भी साल के घटते हुए दिनों के भीतर। हाल यह है कि प्रति व्यक्ति आय की तुलना वाले दुनिया के 100 देशों में भी भारत का नामोनिशान नहीं है। तो क्या यह मान लिया जाय कि भारत की इकोनॉमी चंद हाथों में सिमट गई है और जो इकोनॉमी बताई – दिखाई जा रही है उसका जनता से कोई लेना-देना नहीं है।
दिख भी रहा है कि एक तरफ देश के 80 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो अनाज की खैरात देकर जिंदा रखा जा रहा है और दूसरी ओर देश के टाप मोस्ट कार्पोरेट तथा सत्ता के सबसे करीबी कहे जाने वाले गौतम अडानी के खिलाफ़ न्यूयॉर्क की अदालत में दर्ज आपराधिक मुकदमे की सुनवाई शुरू होने की खबरें देश – विदेश में आम हो गई है। विश्व के मानचित्र पर बतौर अर्थव्यवस्था भारत को अमेरिका और चीन के बाद भारत को 5 ट्रिलियन डालर पर लाकर तीसरी सीढ़ी में खड़ा करने का अलाप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 के आम चुनाव के पहले 2018 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में किया था। उसके बाद जी – 20, ब्रिक्स, लालकिले की प्राचीर तथा अलग – अलग इकोनॉमी फोरम पर बोलते रहे हैं। बीते दस सालों से (2014 के बाद से) भारत के असंगठित क्षेत्र से जुड़े हुए मजदूरों की संख्या और कामगारों की संख्या का कोई आंकडा केंद्र सरकार ने नहीं बताया है। यानी भारत ने पिछले 10 सालों में दुनिया के सामने जो भी तस्वीर पेश की है वह संगठित क्षेत्र से जुड़ी हुई इकोनॉमी की पेश की है। देश के भीतर देशी मिजाज से चलने वाली राजनीति सत्ता और कार्पोरेट के घालमेल से बनने वाली अर्थव्यवस्था को देखती है।
जनसंख्या के हिसाब से भारत की भागीदारी 3.61 फीसदी की है जबकि अमेरिका की 26.46, चीन की 17, जर्मनी की 4.21 और जापान की भागीदारी 3.72 फीसदी की है। क्या दुनिया के अलग अलग मंचों पर भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन और तीसरे पायदान पर खड़े करने की तोता रटंत करने से सफलता मिल जायेगी जबकि अर्थव्यवस्था देश की सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों के समानांतर चलती है। नवम्बर 2020 पीएम नरेन्द्र मोदी ने मैला उठाने-ढोने वाले 3 पुरुषों और 2 महिलाओं के चरण पखारने के बाद ऐलान किया था कि अगस्त 2021 तक किसी भी हालत में मैला उठाने – ढोने की प्रथा का अंत कर दिया जायेगा। बजट में अच्छी खासी राशि एलाट की गई मगर राशि जारी की गई “जीरे” की माफिक। 2024 में मैला निकालने – उठाने – ढोने वाले 43 लोगों की काम के दौरान मौत हो गई। यही कहानी कुपोषित बच्चों को कुपोषण मुक्त कराने की है। कहां भारत को 2022 तक कुपोषण मुक्त करने का ढिंढोरा पीटा जा रहा था। यूएस से जारी एक मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के भीतर कुपोषित बच्चों की अच्छी खासी संख्या है। कुपोषण के मामले में भारत नाइजीरिया, पाकिस्तान, इथियोपिया, कांगो, बंग्लादेश, इजिप्ट, माली, सूडान, अंगोला जैसे देशों की कतार में खड़ा हुआ है। इस रिपोर्ट को तो बकवास बताते हुए सरकार ने खारिज कर दिया मगर संसद के भीतर इसी तरह के सवाल का जवाब देते हुए महिला बाल विकास मंत्राणी अन्नपूर्णा देवी ने सच उगल दिया। देश की संसद के भीतर भाटगिरी करने वाले मंत्रियों से लेकर संतरियों की अच्छी खासी जमात है। जिस बात को पीएम ने बोला सभी लोग भेड़ियों की माफिक हुआ – हुआ करने लग जाते हैं। देश के सड़क – परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने तो पीएम की मौजूदगी में तेलंगाना की चुनावी सभा में अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी के कहे को दुहराते हुए कहा कि “अमेरिका की सड़कें इसलिए अच्छी नहीं हैं कि अमेरिका रईस देश हैं बल्कि अमेरिका इसलिए रईस है क्योंकि अमेरिका की सड़कें अच्छी हैं”। मेरा मंत्रालय पीएम के सपने को साकार करने में बड़ा योगदान देगा।
सवाल इतना भर नहीं है कि देश के भीतर मजदूर किस स्थिति में काम करते हैं, किसानों के कैसे हालात हैं, बेरोजगारी की स्थिति कितनी विकट हो चली है, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर क्यों नीचे की ओर खिसक रहा है, इस दौर में लगातार आयात क्यों बढ़ रहा है, चाइना के साथ इम्पोर्ट की दिशा में भारत कैसे कदमताल करने लगा, अमेरिका नये टैरिफ लगायेगा तो उसके बाद कैसी परिस्थिति निर्मित होगी, इससे आगे का सवाल यह है कि क्या जो भी डाटा कलेक्ट होता है और नीति आयोग की जो भूमिका होनी चाहिए वो सब कुछ सरकार को बचाने के लिए है। गलत आंकड़ों के सहारे भारत चीजों को प्रस्तुत कर देगा और दुनिया मान लेगी ? भारत दुनिया के उन चंद देशों की कतार में शामिल है जहां असंगठित क्षेत्र से जुड़े हुए लोग तकरीबन 92 फीसदी हैं। इस बिरादरी के लोग सरकार द्वारा मुफ्त में दिए जाने वाले 5 किलो अनाज के भरोसे जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। यानि असंगठित क्षेत्र की इकोनॉमी इस दौर में गायब है। मतलब जो भी इकोनॉमी दिखाई व बताई जाती है वह आर्गनाइज सेक्टर की है।
क्या पिछले 6 सालों में देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में, निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। क्या देश तमाम डिग्रीधारी युवकों को रोजगार देने की स्थिति में आ पाया है। 6 वर्ष से 5 ट्रिलियन डालर की इकोनॉमी बनाने के अलापे जा रहे राग के बाद से युवकों को दिखाये गये सपने हर साल 2 करोड़ नौकरियां दी गई या फिर नौकरियां खत्म होती चली गई। बैंकों के विलीनीकरण ने बैंक कर्मियों की संख्या को कम कर दिया है। निजीकरण से लगातार रोजगार के अवसर पर ग्रहण लगता जा रहा है। नियमित रोजगार की लकीर को मिटाकर ठेके पर रोजगार देने की लकीर बड़ी खींची जा रही है। यानी एक ऐसी इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ई जा रही है जिससे देश की इकोनॉमी चंद हाथों में सिमट कर कैद हो जाय और उनके आसरे देश की इकोनॉमी 5 ट्रिलियन डालर की रेखा को छू ले और उसके भरोसे अलग अलग देशों के बड़े – बड़े बैंक कर्ज दे दें।
क्या ऐसी परिस्थिति के सामने भारत अन्तरराष्ट्रीय मंच पर आकर खड़ा हो गया है जहां पर भारत का असल डाटा सामने नहीं आ रहा है। भारत के भीतर का भृष्टाचार कार्पोरेट नैक्सस के जरिए न्यूयॉर्क की अदालत तक पहुंच गया और अब उसके चलने की शुरुआत होने वाली है। क्या ये ऐसी परिस्थिति है जिसमें सिर्फ चुनाव जीतने भर के लिए सारी चीजें रखी जाती है और उसके दायरे में भारत के भीतर दूसरों के साथ मीडिया भी कोई सवाल नहीं पूछना चाहता है। किसान सम्मान निधि, बेरोजगारी भत्ता, पेंशन, सब्सिडी, मजदूरों – बुजुर्गों को भी कुछ न कुछ दिया जा रहा है इस सबके बावजूद साल के कम होते जा रहे दिनों के भीतर 5 ट्रिलियन डालर की इकोनॉमी और अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नम्बर पर भारत का खड़ा होना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा और यह चमत्कार जादू के भरोसे ही हो सकता है और जादूगर हमारे पास है और एक तबके को उसके जादू पर भरोसा है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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