खरी खरी : अपना गला बचाने नायक को बनाया खलनायक
अपना गिरेबां भूल चिंटू भी लगाने लगे आरोप
सत्ता का चरित्र ही ऐसा होता है कि वह अपनी घिनौनी करतूतों का ठीकरा दूसरे के सिर पर फोड़ता है । और यही एक बार फिर लद्दाख में किया जा रहा है। लद्दाख के लोगों की जायज मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने के बजाय उन पर दमनात्मक रवैया अपनाया जा रहा है। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक पर हिंसात्मक आंदोलन के लिए देशद्रोह का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर जैन-जी को और हवा दी जा रही है जो कहीं सरकार पर ही भारी ना पड़ जाए ! सोनम वांगचुक के एनजीओ स्टूडेंट एज्युकेशन एंड कल्चरल मूवमेंट आफ लद्दाख का विदेशी फंडिंग लाइसेंस यह कह कर रद्द कर दिया गया है कि उन्होंने विदेशी दान लेने के लिए विदेशी अंशदान विनियमन एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है जिस पर वांगचुक का कहना है कि हमें विदेशी फंडिंग की जरूरत ही नहीं है तो हमने लाइसेंस नहीं लिया। है न कितनी हास्यास्पद बात कि जो लाइसेंस ही नहीं लिया गया सरकार उस लाइसेंस को रद्द कर रही है तो सरकार को बताना चाहिए कि वह कौन सा लाइसेंस रद्द कर रही है.? इसी तरह से सीबीआई ने वांगचुक की एक संस्था हिमालयन इंस्टिट्यूट आफ अल्टरनेट लद्दाख (HIAL) पर विदेशी चंदा लेने वाले कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए जांच शुरू की है। पहले ये जांच 2022 से 2024 तक की करनी थी लेकिन अब उसमें 2020 और 2021 भी जोड़ दिया गया है। कहा जा रहा है कि सीबीआई शिकायत से बाहर जाकर दस्तावेज मांग रही है। सरकार ने HIAL को दी गई जमीन की लीज को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि लीज की रकम जमा नहीं की गई है जबकि वांगचुक कह रहे हैं कि उनके पास दस्तावेजी साक्ष्य हैं जिसमें उन्हें जमीन बिना लीज के देने का उल्लेख है। लद्दाख में इनकम टैक्स नहीं लगने के बाद भी वांगचुक इनकम टैक्स भर रहे हैं इसके बाद भी उन्हें इनकम टैक्स के नोटिस दिये जा रहे हैं।
GEN – Z एक वैश्विक नामाकरण है। इसका मतलब है वह पीढ़ी जिसने डिजिटल युग में ही आंखें खोली हैं। इस पीढ़ी को यह पता नहीं है कि राजनीतिज्ञों का चरित्र ही जन्मजात दोगला होता है ! वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाकर झूठ बोल सकते हैं और बाद में बड़ी बेशर्मी के साथ किये गये वादों को जुमला करार भी देने से नहीं चूकते हैं । GEN-Z पीढ़ी नेताओं की कही गई बात को सच मानकर चलती है और जब वे पूरा नहीं होती हैं तो वह उसे वादाखिलाफी मानती है। उन वादों को पूरा कराने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। 2014 से बीते 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव दर चुनाव अपनी कुर्सी बरकरार रखने के लिए इस पीढ़ी को चांद से तारे तोड़कर लाने के सब्जबाग दिखाये। आज अब जब 11 बरसों में उनकी आकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाई। बेकारी बेरोजगारी चरम पर है जो कि सरकार की वादाखिलाफी का ही परिणाम है और सरकार अगर अपनी वादाखिलाफी का समाधान दमनात्मक रवैया अपना कर करेगी तो युवा पीढ़ी का आक्रामक होना स्वाभाविक है और वह भी तब जब सरकार गांधीवादी तरीके से किये जा रहे आंदोलनों पर अंध-मूक-बधिर बनी रहती है। लद्दाख, देहरादून, कर्णप्रयाग, बैंगलुरू में युवाओं ने सड़क पर उतर कर अपनी मांगों को लेकर आंदोलनात्मक रवैया अख्तियार कर लिया है। खबर है कर्नाटक की सिध्दारमैया सरकार को छोड़ कर बाकी सरकारें आंदोलनकारी युवाओं पर दमनात्मक कार्रवाई कर रही हैं जबकि कर्नाटक गवर्नमेंट ने युवाओं की मांगों से अपनी सहमति जताते हुए उसके समाधान की बात कही है। उत्तराखंड की गलियों में तो “वोट चोर गद्दी छोड़” की तर्ज पर “पेपर चोर गद्दी छोड़” के नारे लगा कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का इस्तीफा मांगा जा रहा है। लद्दाख की वर्तमान परिस्थितियों के लिए केन्द्र सरकार के साथ ही कुछ हद तक सुप्रीम कोर्ट भी जिम्मेदार है।
5 अगस्त 2019 की सुबह संसद से एक ऐसा ऐलान किया गया जिसने एक पूरे राज्य की पहचान और लोकतांत्रिक संरचना को बदल कर रख दिया। 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पारित करते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य के दो टुकड़े कर उन्हें यह कहते हुए केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया कि इससे आतंकवाद खत्म होगा, विकास की रफ्तार बढ़ेगी, जनता मुख्यधारा से जुड़ेगी लेकिन इन 6 सालों में ना तो इस क्षेत्र में आतंकवाद खत्म हो पाया है न विकास रफ्तार पकड़ पाई है और ना ही जनता को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सार्थक पहल की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार कहा कि दोनों केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा उचित समय पर बहाल कर दिया जायेगा लेकिन 6 बरस में भी प्रधानमंत्री का उचित समय अभी तक नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आर्टिकल 370 हटाये गये मामले की सुनवाई करते हुए आर्टिकल 370 हटाये जाने को न्याय संगत माना साथ ही जम्मू-कश्मीर में सितम्बर 2024 विधानसभा चुनाव कराने तथा जल्द राज्य का दर्जा दिये जाने का आदेश दिया लेकिन इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य का दर्जा दिये जाने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की और यही वह वजह है जहां न्यायपालिका की भूमिका सवालों के घेरे में आती है तथा यही केन्द्र सरकार को अनंतकाल तक मामले को लटकाये रखने का औजार बन गया। लद्दाख को तो उसकी विधानसभा भी नहीं मिली।
eiting the said direction the application states : even after passing of 10 months the order dated 11.12.2023 till date the status of statehood of Jammu and Kashmir has not yet been restored which is gravely affecting the rights of the citizens of Jammu and Kashmir and also vailating the idea of federalism. Court has been further told that this issue is of grave urgency and importance as Jammu and Kashmir held the Legislative election in three phases to elect 90 members of the Jammu and Kashmir Legislative Assembly after a period of 10 years. The results of the said elections are to be pronounced on 8.10.2024.
केंद्र सरकार द्वारा गठित की गई डी-लिमिटेशन कमेटी ने भी मार्च 2022 में अपनी रिपोर्ट सम्मिट कर दी फिर भी वही ढाक के तीन पात होने से लोगों का केंद्र सरकार से भरोसा उठता चला गया। कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी पार्टी भी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने में की जा रही हीलाहवाली करने पर मोदी सरकार पर जानबूझकर टालने का यह कहकर इल्जाम लगा रही हैं कि दिल्ली लम्बे समय तक अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहती है।
Congress President Mallikarjun Kharge at a presser in Pune said ‘Amit Shah claims the Congress wants to bring back Article 370, but who in the Congress ever states this ? Seconding Mr. Kharge’ s position, J&K PCC President Tariq Hamid Karra said the only thing left to demand after the Supreme Court verdict on Arctic 370 was statehood for J&K. The top court had in December 2023 upheld the abvogation of Article 370, which had given special status to the erstwhile state. Former Chief Minister and peoples Democratic Party (PDP) President Mehbooba Mufti said ‘People reposed faith in this government and gave it a huge mandate. People’s sentiments are attached to Article 370. The resolution passed by NC was vague and not clear on the restoration of Article 370. The NC and Congress government should clarity their stand. Indian Express 2025 January – The Prime Minister said that he fulfils the promises he makes and that one should simply believe in him he even referred to the z-morth tunnel as an example of his dedication to the people.
Supreme Court seeks Union’s reply in plea seeking statehood for Jammu and Kashmir – solicitor General Tushar Mehta has told court that peculiar considerations emerge from Jammu and Kashmir that have to be considered by the government. The Supreme Court while hearing an application seeking appropriate devections to the Union of India for restoration of the statehood of Jammu and Kashmir in a time bound manner told the applicants before it that ground rectifies cannot be ignored. You cannot ignore what has happened in pahalgam ground realities have to be considered. CJI BR Gavai has said.
इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन राज्यपाल के जरिए केंद्र के द्वारा चलाया जाता है। यहां पर भी बिहार जैसे राज्यों की तरह बेकारी बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। विकास के नाम पर बड़े प्रोजेक्ट घोषित तो होते हैं लेकिन जमीन पर कुछ नहीं दिखाई देता है। इंटरनेट आये दिन बंद कर दिया जाता है। नेताओं की नजरबंदी भी आम है। पत्रकारों पर नियंत्रण रहता है। यानी लोकतांत्रिक अधिकारों पर पाबंदी रहती है। सरकार के कथन राज्यों को चिढ़ाते रहते हैं कि शांति बहाल हो रही है क्योंकि हर महीने सुरक्षाकर्मियों, नागरिकों की मौत की खबरें आती रहती हैं। लगता तो यही है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा एक रणनीति के तहत चुनावी जुमला भर है। एक तो बिना किसी सहमति के एक राज्य को दो टुकड़ों में बांट कर अपने अधीन कर लिया गया ऊपर से यह भी कह दिया गया कि फिर से पूर्ण राज्य की बहाली की जायेगी और एक लम्बे इंतजार के बाद भी वादापरस्ती न हो और जनता गांधीवादी तरीके से सरकार को याद दिलाये फिर भी सरकार कुंभकर्णी निद्रा में बनी रहे तो जनता क्या करे.? लद्दाख की जनता अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत ही तो मांग रही है कि उसे संविधान की 6 वीं सूची में शामिल किया जाय। पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाय जिससे वह अपने शासक को चुन सके।
Does the Prime Minister have any intention of upholding his “MODI KI GUARANTEE” it not, why did he make the promise in the first place ? Ten years after he first took office, why is this issue still pending he asked. Ramesh also said that since the dissolution of the BJP. PDP government in the erstwhile state of Jammu and Kashmir in 2018, the people of Ladakh have had no representative government at the state level. On August 5, 2019, by converting Ladakh into a separate Union Territory without a legislative assembly, the MODI Sarkar closed the possibilities of any self government for the people of Ladakh. What vision did the Prime Minister have for Ladakh when he declared it a separate Union Territory ? Were the people of Ladakh ever consulted during the development of this vision, be asked. Ramesh also alleged that under Prime Minister Modi’s governance, India has lost prime pasture land in the ehangthang plains in the north of Ladakh to Chinese encroachment. In addition to a hational security erisis this is also a serious socio-economic issue for the nomads of Ladakh. The Prime Minister, however, gave a clean chit to China on June 19 th 2020, at the all-party meet on China, when he declared that “not a single Chinese soldier had crossed over into Indian territory” he said, asking whether the people of Ladakh are lying while claiming that their lands had been encroached upon by the Chinese PLA. Ramesh elaimed that the proposed Ladakh lndustrial land allotment policy 2023 has suggested single window elearance committees that have only government official and Industry representative. There are no council members, civil society groups and panchayat representatives in these committees, he claimed. The document does not even layout the environmental or cultural criteria for considering an Industrial project nor does it provide for any public consultation…. In a sensitive ecosystem such as Ladakh in a region populated by nomadic tribes and other sensitive demographic groups. What is the cynical motive that underlines this proposed Land Allotment policy ? Is it yet another attempt by the Prime Minister to favour his Industrilist friends at the cost of the people, Ramesh asked. Using the hashtag (chuppi todo pradhan mantriji)
इसी मांग को लेकर ही पर्यावरणविद सोनम वांगचुक क्लाइमेट फास्ट कर रहे हैं जिसमें वह 15 दिनों से 15 डिग्री तापमान में बर्फ पर बैठकर केंद्र सरकार से लद्दाख को संविधान की 6 वीं अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की गुजारिश कर रहे हैं। इसके पहले भी वांगचुक ने 21 दिन और 15 दिनों की भूख हड़ताल की थी। देखा जाय तो लद्दाखवासियों की मांग संविधान सम्मत है क्योंकि यहां की 95 फीसदी आबादी जनजातीय है इसीलिए वे संविधान की 6 वीं अनूसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं ताकि विशेष स्वायत्तता मिल सके और वहां की संस्कृति, पारिस्थितिक और जनजातीय पहचान अक्षुण्ण रह सके। मगर वादा करने के बाद भी मोदी सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी और बकौल जयप्रकाश नारायण “जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करती” और जैन-जी तो बिल्कुल भी नहीं करता तो फिर वही हुआ जिसका अंदेशा था । वांगचुक ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी तो नहीं दी गई जिससे दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। यह लोकतंत्र पर भी सवाल खड़ा करता है। मोदी सरकार की टालमटोल वाली नीति से लद्दाखवासी खासतौर पर युवा पीढ़ी खुद को लोकतंत्र से बाहर समझने लगी है जबकि वहां का युवा केवल वोटर भर नहीं बल्कि नीति निर्माण में भागीदारी चाहता है।
Vilent protests breakout at BJP office in Ladakh’s Leh amid shutdown seeking statehood. Violent protests erupted outside the BJP office in Leh town during a shutdown call issued by the Leh Apex Body (LAB) in the Union Territory (UT) of Ladakh over the Centre’s delay to holl result oriented talks over several long pending demands, which include granting statehood and Sixth Schedule status to the region. Leh’s District Magistrate has imposed restrictions under section 163 of the Bhartiya Nagrik Suraksha Sanhita (BNSS) 2023…… which bars assembly of more than four people in the region–citing possible disturbance to public peace and danger to human life. Preliminary reports a suggested that supporters of LAB, an amalgam of religious social and political organisations, assembled outside the BJP office in Lah to register their protest over the centre not resuming talks with representatives of Ladakh over a series of demands, with statehood and sixth schedule status topping the list.
केंद्र सरकार जिस तरह से लद्दाख और लद्दाख की आवाज उठाने वालों पर क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर रही है वह राष्ट्रीय सुरक्षा, पारिस्थितिक और सामाजिक न्याय तीनों के लिए खतरनाक संकेत है। लद्दाख में लम्बे समय से चल रहे संवैधानिक संघर्ष का निष्कर्ष यही है कि भारत के लोकतंत्र में जनता की राय के बिना किसी भी राज्य का दर्जा छीना जा सकता है, संविधान बदला जा सकता है। अदालत भी बिना समय सीमा तय किये आदेश देकर न्यायालय होने का बस अह्सास करा सकती है। जनता को अगर अपने हक के लिए भूख हड़ताल-आमरण अनशन आदि करना पड़े तो इसे लोकतंत्र नहीं बल्कि इसे एक तरह का धीमी गति का प्रशासकीय आपातकाल कहा जा सकता है । मोदी सरकार जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विदेश नीति, कूटनीति में लगातार फेल हो रही है। अमेरिका टेरिफ वार के जरिए चौतरफा हमला कर रहा है। भारत के पड़ोसी देशों में जिस तरह की उठापटक हो रही है। भारत के अपने पड़ोसियों से जिस तरह के संबंध हैं उसने मोदी सरकार की नींद तो उड़ाई हुई है ही उसमें तड़के का काम कर रही है भारत की अंदरूनी राजनीति। माना जा रहा है कि इसी सबसे पार पाने के लिए मोदी सत्ता किसी भी हद तक जा सकती है। उसका नजारा एकबार फिर लद्दाख में दिखाई दिया जहां मोदी सत्ता ने अपनी कुर्सी को बनाये रखने के लिए सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया है। और सोनम वांगचुक को बदनाम करने के लिए ना जाने क्या – क्या ट्रोल किया जा रहा है। जबकि मोदी सत्ता के दौरान ही सोनम वांगचुक को 2016 में रोलेक्स अवाॅर्ड फाॅर एंटरप्राइज, 2017 में ग्लोबल अवाॅर्ड फाॅर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर तथा 2018 में रमन मेग्सेसे अवाॅर्ड से सम्मानित किया गया है इसी तरह से कांग्रेस सत्ता के दौरान भी उन्हें 2008 में रियल हीरोज अवाॅर्ड एवं 2002 में अशोक फेलोशिप फार सोशल एंजरप्रेन्योरशिप दिया गया था। सोनम वांगचुक की सोच पर ही 3 इडियट्स फिल्म बनाई जा चुकी है। इंजीनियर, इनोवेटर और समाजसेवी के तौर पर भी वांगचुक का बेमिसाल योगदान है।
2019 में जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था तब सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा था कि लद्दाख की जनता द्वारा एक लम्बे वक्त से देखा गया सपना पूरा हो गया है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि 30 साल पहले अगस्त 1989 में लद्दाख के नेताओं ने लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत की थी। यह भी बड़ा गजब का संयोग है कि जब 1989 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए सोनम वांगचुक के पिता सोनम वांगयाल की अगुवाई में आंदोलन हुआ था तब पुलिस की गोली से 3 लोग मारे गए थे और 36 साल बाद जब केंद्र शासित प्रदेश को पूर्ण राज्य बनाने के लिए सोनम वांगचुक के नेतृत्व में आंदोलन हुआ तो 24 सितम्बर 2025 को एकबार फिर से पुलिस की गोली ने 4 लोगों की इहलीला समाप्त कर दी। यह एक ऐसी परिस्थिति है जो आंदोलन की दिशा और लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन को लेकर जब वो हिंसा में प्रवेश कर जाता है तो आंदोलन भारत में चल नहीं पाता है वो खत्म हो जाता है तो क्या एक लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन का पटाक्षेप ऐसी हिंसा से हो सकता है या फिर एक लम्बे वक्त से चले आ रहे आंदोलन में हिंसा के जरिए ही उस जैन-जी के संघर्ष को पनपाया जा सकता है जो नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में नजर आया। ये दो बिल्कुल अलग – अलग रास्ते हैं आंदोलन को खत्म करने की दिशा में ले जाने की और आंदोलन को आगे बढ़ाने की दिशा में।
मौजूदा परिस्थितियों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तौर पर पडोसी देशों, अमेरिका को लेकर जिन मुश्किल हालातों से भारत गुजर रहा है उससे क्या अब राजनीतिक सत्ता किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है ? इसीलिए लद्दाख (लेह) का पूरा ठीकरा सोनम वांगचुक पर फोड़ा गया है। यह भी कहा गया कि यहां पर नेपाली, सोशल एक्टिविस्ट और एडवोकेट सक्रिय हैं। पैसा भी बाहर से आ रहा है। यानी पडोसी देशों में हो रही तमाम परिस्तिथियों को लद्दाख (लेह) से जोड़ने की कोशिश मोदी सत्ता ने अपने तौर पर की है। लद्दाख को लेकर भारत की अंदरूनी राजनीति उबाल पर है इसीलिए लद्दाख में इंटरनेट को रोक दिया गया है, कर्फ्यू लगा देने से सन्नाटा पसरा पड़ा है। इस सन्नाटे के बीच से सवाल निकलता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट के तहत जो गिरफ्तारी सोनम वांगचुक की हुई है क्या वह पहली और अंतिम गिरफ्तारी है या यह एक शुरुआत है ? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका को लेकर भारत की जो विदेश नीति और कूटनीति चल रही है वो आखिरी मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है क्या ? भारत की अंदरूनी राजनीति जो छात्र, युवाओं और जैन-जी के जरिए देश के राजनीतिक घटनाक्रमों को प्रभावित करने की दिशा में बढ़ने के लिए चल तो रही है लेकिन अभी तक सड़कों पर नजर नहीं आ रही है क्या घरेलू राजनीति उसे आगे बढ़ायेगी या फिर राजनीतिक सत्ता उसे रोक देगी ?
इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारत की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों ने भारत के भीतर उस आंदोलन की शक्ल को ही बदल डाला है जो इससे पहले राजनीतिक दलों के जरिए चला करते थे । क्या उसकी कमान कहीं और है, रास्ते कहीं और से निकल रहे हैं, मदद कहीं और से आ रही है ? यही वो परिस्थिति है जो ताकतों और डीप स्टेट को लेकर दुनिया भर में बहस का हिस्सा बन रही है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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