खरी खरी : पेच तो फंसा ही था ,अब तो इज्जत भी दांव पर लग गई है साहब की !
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“ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं” लगता है कि यह वाक्य बीजेपी का मूल मंत्र सा बन गया है और अब यही वाक्य भाजपा के गले की फांस बनता हुआ दिखाई दे रहा है। वैसे तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को चींटी समझकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मसला था मगर वो चींटी मरी नहीं बल्कि हाथी की सूंढ में घूसने के माफिक गुजरात लाॅबी की नाक में दम कर रही है वह भी तब जब धनखड़ से ही खाली हुई उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के लिए आज चुनाव होने जा रहा है। जिस तरह से देशी राजनीति के भीतर हलचल हो रही है वो इस बात को बताने के लिए काफी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह या कहें पूरी गुजरात लाॅबी अपनी कुर्सी और अपनी राजनीति को बचाने के लिए जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही है। एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें जिस समाजवादी नेता राजीव राय के घर पर 2022 के चुनाव के पहले इनकम टैक्स का छापा डलवाया गया है उसी राजीव राय को अमित शाह जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। जबकि बीमारी के चलते पद त्याग करने वाले धनखड़ की तबीयत का हालचाल जानने की फुर्सत न तो गृहमंत्री अमित शाह के पास है न प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। ऐसा ही एक वीडियो और वायरल हो रहा है जिसमें अमित शाह बाढ़ पीड़ितों से मिलने गए हैं लेकिन वहां पर एक भी आम नागरिक नहीं है तो अमित शाह कह रहे हैं कि अरे यार इस तरफ जाकर 4-5 लोगों को तो पकड़ लाओ। कैसी हालत हो गई है नरेन्द्र मोदी के सेनापति की या कहें भाजपा के चाणक्य की कि अब उन्हें खुद आगे आकर लोगों से व्यक्तिगत संबंध बनाने पड़ रहे हैं। वर्ना मोदी-शाह की जोड़ी तो बीते 11 सालों से रिंग मास्टर की तरह पार्टी और पंचायत से लेकर संसद तक के माननीयों को चाबुक से हांक रहे हैं।
जिस तरह से जिंदगी में पीछे लौटने का साधन नहीं होता भले ही गीतकार ये गाता रहे कि “ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी” ठीक इसी तरीके से राजनीति में भी कोई रिवर्स गेयर नहीं होता है। यदि होता तो वर्तमान परिस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और गुजरात लाॅबी जगदीप धनखड़ का चरणामृत पान करते हुए उन्हें फिर से उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा देती। जिस अहंकार से ग्रसित होकर पीएम और एचएम ने देश को जिस तरह का मैसेज देने के लिए जगदीप धनखड़ को चंद मिनटों के भीतर उपराष्ट्रपति की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर किया था वही मैसेज अब इनके गले की फांस बन गया है। राजनीतिक गलियारों में तो इस तरह की भी चर्चाओं का बाजार गर्म है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव परिणाम कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फेयरवेल पार्टी में तो तब्दील नहीं हो जायेगा। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि अपने 11 वर्षीय शासनकाल में बीजेपी को अंगुली पर नचाने वाले नरेन्द्र मोदी को इतने बुरे दिन देखने पड़ेंगे जैसे उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखा रहा है। पहले तो एनडीए के सहयोगियों को लेकर माथे पर चिंता की लकीरें थीं कि कहीं चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान, महाराष्ट्र की दल तोडू पार्टियां बिदग ना जायें लेकिन ये तो नरेन्द्र मोदी सहित किसी ने भी सपने में भी कल्पना नहीं की होगी कि भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी बगावती स्वर सुनाई दे सकते हैं। बीजेपी के सांसद अपनी अंतरात्मा की आवाज पर उपराष्ट्रपति चुनने के लिए वोट कर सकते हैं। इसमें उन सांसदों की संख्या सारी बाजी पलटने के लिए पर्याप्त है जो कहीं न कहीं पीएम मोदी और एचएम शाह से गाहेबगाहे अपमानित होते रहे हैं या कहें जिनके साथ मोदी – शाह ने हाथ में छड़ी लेकर हेड मास्टर की तरह बर्ताव किया है।
बीजेपी के अंदर से जो कहानी निकल कर आ रही है वह यही कहती है कि दोनों मास्टर तो अंबानी अडानी की यारी से अपने आर्थिक हित साधते रहते हैं लेकिन बाकी को हरिश्चन्द्र की औलाद बनने को मजबूर करते हैं। कांग्रेस के इस व्यक्तव ने देश के भीतर कुछ इस तरह का मैसेज दिया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी के माध्यम से भारत की हैसियत चपरासी से भी बदतर कर रखी है। “अमेरिका वालों अपने कान और आंख खोल कर सुन देख लो ये अलग बात है कि हमारे प्रधानमंत्री ट्रंप के सामने कमजोर पड़ते हैं लेकिन भारत बहुत ताकतवर राष्ट्र है। दो महीने में तो आप ही माफी मांगेंगे। भारत न किसी के दबाव में झुका है न झुकेगा। भारत अपनी अर्थव्यवस्था को स्वयं देख सकता है। अपनी सैन्य शक्ति के दम पर विजय प्राप्त कर सकता है। ये तो बीजेपी के नरेन्द्र मोदी की सरकार है जो आप ऐसा कह रहे हैं। काश आज कांग्रेस की सरकार होती तो आपको मुंह की खानी पड़ती। जिस तरह से आपका सातवां बेड़ा वापस कर जबाब दिया गया था वैसा ही करारा जबाब आज भी दिया जाता”। भारत ने पहले भी पाबंदियां झेली हैं। सवाल यह है कि क्या देश अपने आत्मसम्मान को छोड़ कर अमेरिका के सामने सरेंडर कर देगा ? क्या हमारा स्वाभिमान खत्म हो जायेगा ? लगता है कि नरेन्द्र मोदी का कोई पर्सनल मामला डोनाल्ड ट्रंप के पास फंसा हुआ है। सोशल मीडिया पर भी कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के पास नरेन्द्र मोदी की कोई खुफिया जानकारी है। अब यह कहां तक सही और गलत है ये तो मोदी और ट्रंप ही बता सकते हैं। वैसे कुर्सी बचाये रखने के लिए नरेन्द्र मोदी बहुत बड़ा दिल रखते हैं उसका सबसे बड़ा उदाहरण आप से भाजपा हो चुके कपिल मिश्रा है। कपिल मिश्रा ने आप पार्टी का विधायक रहते हुए दिल्ली विधानसभा में आन रिकार्ड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का किस तरीके से चरित्र चित्रण किया था उसे भूल कर बीजेपी ज्वाइन करा लिया गया। और अब वही कुर्सी उपराष्ट्रपति चुनाव में आकर फंस गई है।
कुछ दिनों पहले ही आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। इस बात की बहुत चर्चा है कि नारा लोकेश ने साफ तौर पर मांग की है कि केन्द्र में चंद्रबाबू नायडू को गृह या रक्षा मंत्रालय तथा खुद के लिए आंध्र प्रदेश की राजगद्दी के साथ ही प्रदेश को भारी भरकम पैकेज दिया जाय। इसे एक प्रकार की राजनीतिक ब्लैकमेलिंग ही कहा जा सकता है। कहा जाता है कि आज की तारीख में चंद्रबाबू नायडू से बड़ा कोई दूसरा राजनीतिक ब्लैकमेलर नहीं है। जब भी मोदी की कुर्सी डांवाडोल होती दिखती है वह दिल्ली आकर अपना हिस्सा बसूल कर ले जाते हैं। तो क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ब्लैकमेल कर रहे हैं। जिस तरह से पीएम मोदी पर चौतरफा प्रहार किया जा रहा है उसमें एक कड़ी अमेरिका की भी भारत के सबसे बड़े कार्पोरेट घराने में से एक मुकेश अंबानी के जरिए जुड़ती हुई दिख रही है। जबसे मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट वनतारा की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी गठित की है जिसने वनतारा पर ताला लटकने तक का अंदेशा पैदा कर दिया है तबसे नरेन्द्र और मुकेश के बीच दरार पैदा होने की खबरें हैं और 12 तारीख को अमेरिका में मुकेश अंबानी की राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मुलाकात होना तय बताया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि उपराष्ट्रपति चुनाव के पूर्व मुकेश अंबानी की कंपनी ने बीजेपी के 140 सांसदों से सम्पर्क भी किया है। दर्शन शास्त्र कहता है कि धुआँ वहीं उठता है जहाँ आग होती है। तो क्या ये माना जाय कि आग चंद्रबाबू, नितीश की तरफ से नहीं बल्कि अमेरिका की तरफ से लगाई गई है और मोदी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मुकेश अंबानी इसका बड़ा आधार बन गये हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान आदि पर नजर रखने के लिए इंटेलिजेंस लगाने तथा फोन टेपिंग किये जाने तक की चर्चाएं हैं। कहते हैं कि इसी समय एक ऐसी रिपोर्ट निकल कर आई जिसने पूरी गुजरात लाॅबी को झकझोर कर रख दिया है। कहा जाता है कि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि सहयोगी दलों के सांसद तो एक रह सकते हैं लेकिन बीजेपी के बहुत सारे सांसद टाटा टाटा-बाय बाय करने वाले हैं। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र होना भी बताया जाता है कि इसकी पटकथा संघ प्रमुख मोहन भागवत के कहने पर लिखी गई है। उस अपमान का बदला लेने के लिए जो 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कह कर किया था कि अब बीजेपी बहुत मजबूत हो गई है, वह अपने फैसले खुद कर सकती है अब हमें संघ के साथ की जरूरत नहीं है। तो क्या इस नाजुक घड़ी में जब उपराष्ट्रपति के चुनाव का पेंच फंसा हुआ है तब संघ बीजेपी को अपनी हैसियत का अह्सास कराना चाह रहा है। अपनी पृष्ठभूमि बताना चाहता है कि अगर हम पर कोई नकारात्मक कमेंट करता है तो हम उसको कैसे निपटाते हैं। इस रिपोर्टात्मक खबर की शुरुआत राजस्थान की सबसे बड़ी कद्दावर नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सरसंघचालक मोहन भागवत के बीच हुई गुफ्तगू से होने की खबर है। इसी बीच बीजेपी के संस्थापक सदस्य वयोवृद्ध मुरली मनोहर जोशी की भी संघ प्रमुख के साथ गुफ्तगू हुई है। स्वाभाविक है इस खबर से मोदी-शाह की नींद उडनी ही थी। आनन-फानन तय किया गया कि राजस्थान के सभी सांसदों को दिल्ली बुलाया जाय। बताते हैं कि इसकी जिम्मेदारी एक प्रभावशाली अफसर को यह कहते हुए दी गई कि एक चार्टर्ड प्लेन को हायर कर सभी सांसदों को दिल्ली लाया जाय।
नरेन्द्र मोदी को भी यह बात समझ में आ गई कि मामले को सुलझाना वजीर के बस में नहीं रह गया है इसलिए लगाम अब वजीरेआजम को ही संभालनी होगी। इसीलिए तय किया गया कि पहली डिनर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर होगी तथा दूसरा डिनर पीएम मोदी ने आवास पर आयोजित किया जायेगा जहां पर खुद पीएम मोदी सांसदों से रूबरू होकर चर्चा कर उनकी नाराजगी दूर करेंगे। लेकिन कहते हैं न कि “जब दुर्दिन आते हैं तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है” । यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसने बेड़ा गर्क करके रख दिया। खबर आई कि डिनर पार्टी में बीजेपी के दो दर्जन से ज्यादा सांसद नहीं आ रहे हैं। जिसने नरेन्द्र मोदी को साफ – साफ मैसेज दे दिया कि अब आपके रिटायर्मेंट प्लान को लागू करने का समय आ गया है। अमित शाह को भी यही संदेश था कि आप भी किताबें पढ़ने और पेड़ लगाने के लिए तैयार रहिये। इसलिए तत्काल नड्डा और मोदी आवास पर तय डिनर पार्टी को केंसिल कर दिया गया। जिसके लिए बहुत ही हास्यास्पद कारण बताया गया जिसे देश ने तत्काल खारिज भी कर दिया ! पंजाब और दूसरे सूबों में आई भीषण बाढ़ के कारण डिनर का आयोजन केंसिल किया गया है। हकीकत यह है कि यदि डिनर पार्टी होती और उसमें दो दर्जन से अधिक पार्टी सांसदों की भागीदारी नहीं होती तो एनडीए के भीतर यही संदेश जाता कि बीजेपी के भीतर बगावत हो चुकी है और एनडीए के प्रमुख सहयोगी चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान एवं अन्यों को पल्टी मारने में दस मिनट भी नहीं लगता और इंडिया एलायंस के उम्मीदवार का जीतना तय हो जाता। वैसे भी चंद्रबाबू नायडू पर बहुत दबाव है क्योंकि इंडिया एलायंस का उम्मीदवार आंध्रप्रदेश का है। जिसके साथ आंध्रप्रदेश की अस्मिता भी जुड़ी हुई है। अब आंध्र और आंध्र के लोगों का सवाल है। नायडू को लगने लगा है कि यदि वे खुलकर आंध्रप्रदेश की अस्मिता को बचाने मैदान में नहीं आते हैं तो फिर उनकी भविष्य की राजनीति मुश्किल भरी हो जायेगी। यानी उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बीजेपी का संकट बड़ा तो है।
नरेन्द्र मोदी के दिमाग में ये बात बखूबी दर्ज होगी कि जब 2024 में लोकसभा के चुनाव परिणाम आये थे और पार्टी 240 पर सिमट कर रह गई थी तो उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने का संकट आकर खड़ा हो गया था। तय था कि अगर बीजेपी संसदीय दल की बैठक में नेता चुना जाता तो नरेन्द्र मोदी आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नहीं होते इसीलिए रणनीति के तहत एनडीए की बैठक बुलाकर अपने नाम पर मोहर लगवाई गई। बीजेपी संसदीय दल की बैठक तो आज तक नहीं बुलाई गई। जैसे ही ये खबर सामने आई कि राजस्थान सांसदों के साथ ही दो दर्जन से ज्यादा सांसद डिनर करने नहीं आ रहे हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तत्काल राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करना उचित समझा। मोदी की राष्ट्रपति से मुलाकात को गोदी मीडिया ने भाटगिरी करते हुए चीन यात्रा से जोड़ कर सौजन्य भेंट बताया है। राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि न तो नरेन्द्र मोदी इतने भोले हैं न ही उनमें राष्ट्रपति पद का इतना लिहाज है कि वे विदेश यात्रा से लौटकर राष्ट्रपति को ब्रीफिंग करने जायें, वह भी डिनर छोड़ कर। वैसे भी प्रधानमंत्री उसी दिन चीन से लौटकर तो आये नहीं। वे तो चीन से लौटकर बिहार हो आये। वहां जाकर रुदन कर आये। हां बाढ़ पीडित सूबों में जरूर नहीं गए ठीक उसी तरह जैसे वे मणिपुर, पहलगाम नहीं गये थे। जैसे उनके मुखारबिंद से मणिपुर का म नहीं निकला था वैसे ही बाढ़ का ब भी नहीं निकला है। हां कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जरुर पंजाब गये मगर वे भी नागरिक उड्डयन मंत्री और रेल मंत्री की तरह रील बनाने में लग गए। लगता है जैसे मोदी सरकार रीलबाज सरकार बन गई है।
मोदी को जैसे ही ये बात समझ में आई कि जरा सी चूक भी राजनीति की आखिरी पारी साबित हो सकती है तो उन्हों अपने मित्र गौतम अडानी को इंडिया एलायंस के संकटमोचन कहे जाने वाले शरद पवार को साधने के लिए भेजा कारण गौतम अडानी का शरद पवार से भी याराना है। बंद कमरे क्या बातें हुईं पता नहीं मगर समझा जा सकता है कि बीजेपी को बहुत करीब से समझ चुके शरद पवार ने किस तरह से उनकी पार्टी को तोड़ा, किस तरह से उस बाला साहब ठाकरे की शिवसेना का दो फाड़ किया जिसने महाराष्ट्र में बीजेपी को पैर रखने के लिए जमीन दी। जबकि नागपूर में आरएसएस का हेडक्वार्टर होने के बाद भी वह महाराष्ट्र में खड़ी नहीं हो पा रही थी। बीजेपी ने कैसे पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन करने के बाद अकाली दल को ही निगल लिया। तो सवाल यही है कि क्या शरद पवार मैनेज हो पायेंगे ? चंद्रबाबू नायडू भी समझ गये हैं कि अमित शाह द्वारा हाल ही में लाया गया बिल उन्हें ही आईना दिखाने के लिए लाया गया है क्योंकि उन्हें पता है कि उनके कई मामले बहुत ही संवेदनशील हैं। विपक्ष तो समझ ही गया है कि मोदी-शाह पूरा गेम विपक्ष की राजनीति खत्म करने के लिए ही खेल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात आने वाले संभावित राजनीतिक खतरों, मसलन पीएम की कुर्सी से बेदखल करना, से बचने के लिए बी प्लान तैयार की संभावना तलाशने के लिए हुआ होगा। सवाल है कि बी प्लान क्या हो सकता है? क्या देश में एक बार फिर से सत्ता बरकरार रखने के लिए इमर्जेंसी लगाई जायेगी? इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी न तो इतने परिपक्व हैं न ही उनमें इतना साहस कि वे इमर्जेंसी लागू करा सकें।
बीजेपी के भीतर ही अमित शाह को छोड़ कर कोई दूसरा नेता नहीं है जो नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा हो सके। अब तो बीजेपी के भीतर से ही ये आवाज आने लगी है कि नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक क्षमता खत्म हो गई है। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक पारी का दि एंड होने की कगार पर है इसलिए उन्हें 17 सितम्बर 2025 को स्वयं ही ससम्मान पीएम पद को छोड़ कर उन्हीं वरिष्ठ जनों की कतार में जाकर बैठ जाना चाहिए जहां उन्होंने 11 साल पहले 75 पार कर चुके पार्टी के वरिष्ठ जनों को बैठाया था। वहां पर रखी खाली कुर्सी आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है। उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देने के बाद अदृश्य हो चुके जगदीप धनखड़ के 10 सितम्बर को प्रगट होने की खबर आ रही है। हो सकता है वे इस्तीफा दिये जाने की परिस्थितियों का खुलासा करें। इस बात की भी खबर मिल रही है कि 10 सितम्बर को ही राहुल गांधी द्वारा एक बार फिर वोट चोरी जैसे किसी कांड का खुलासा किया जायेगा जिसमें हरियाणा और उत्तर प्रदेश की बनारस (पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र) शामिल हो सकता है। देश के भीतर राजनीतिक दलों द्वारा अमेरिका को छोड़ कर उस चीन के साथ, जो पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक है, पीएम द्वारा दोस्ती का हाथ बढ़ाने को लेकर आलोचना की जा रही है।यानी “आंधियों से इतने बदहवास हुए लोग, जो तने खोखले थे उनसे ही लिपट कर रह गए” । उत्तर प्रदेश में संघ और बीजेपी की छात्र विंग विद्यार्थी परिषद के लोग सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नारे लगा रहे हैं – “जब जब योगी डरता है पुलिस को आगे करता है” ।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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