कथावाचक : कहां से मिलती है डिग्री और कौन करता है रेगुलेट ?
परंपरा, प्रोफेशन और पढ़ाई , क्या दे सकती है कथा से कमाई
भारत में कथावाचन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, एक गहरी सांस्कृतिक परंपरा है। समय के साथ यह एक प्रभावशाली सार्वजनिक संप्रेषण का माध्यम बन गया है, और अब कथावाचक बनना एक पेशेवर करियर की तरह देखा जाने लगा है। लेकिन हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में कथावाचकों को लेकर उपजा विवाद न केवल सामाजिक विमर्श को छू गया, बल्कि एक बुनियादी सवाल खड़ा कर गया – क्या कथावाचक बनने के लिए कोई डिग्री जरूरी है? यह डिग्री कहां से मिलती है? क्या इस पेशे को कोई रेगुलेट करता है?
कथावाचन: परंपरा से पेशे तक
कथावाचन का इतिहास भारत में हजारों वर्षों पुराना है। वेदों की ऋचाओं से लेकर पुराणों की कथाओं तक, इसे गुरुकुलों और मठों में मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित किया जाता रहा है। परंतु वर्तमान में जब कथावाचन एक जनमाध्यम बन चुका है, जिसमें ग्लैमर, पैसा और प्रसिद्धि भी जुड़ चुकी है, तब इसके अकादमिक और कानूनी स्वरूप पर भी चर्चा जरूरी हो गई है।
क्या कथावाचन के लिए कोई संवैधानिक नियम हैं?
इस विषय में प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के निदेशक और संस्कृत विद्वान डॉ. जीतराम भट्ट कहते हैं कि भारत में फिलहाल कथावाचन के लिए कोई संवैधानिक रेगुलेटरी बॉडी नहीं है। यह पूरी तरह सामाजिक और परंपरागत संरचना पर आधारित है। हालांकि, भारत के चार शंकराचार्य पीठ – शृंगेरी, द्वारका, पुरी और ज्योतिर्मठ – परंपरागत रूप से कथावाचकों को मार्गदर्शन देने वाले संस्थान माने जाते रहे हैं।
डॉ. भट्ट के अनुसार, जैसे हिंदी साहित्य में ‘कहानी पाठ’ होता है, वैसे ही धर्म और पुराणों में ‘कथा पाठ’ है। लेकिन धर्म से जुड़ा होने के कारण इसमें आस्था और भावनाओं का गहरा मिश्रण होता है, जिससे मर्यादा और उत्तरदायित्व की अपेक्षा बढ़ जाती है।
कथावाचन में डिग्री: कहां से और कैसे?
भारत में कई संस्कृत विश्वविद्यालय कथावाचन या संबंधित विषयों में औपचारिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। विशेषकर निम्न संस्थानों द्वारा संबंधित कोर्स चलाए जा रहे हैं:
● संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
यह विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा संस्थान है जिसने “पुराण प्रवचन प्रवीण” नामक ऑनलाइन कथावाचक सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया है। यह कोर्स न केवल पुराणों की समझ विकसित करता है, बल्कि कथावाचन की शैली, शास्त्रीय अनुशासन और मंचीय प्रस्तुति पर भी जोर देता है। कोर्स पूरी तरह से ऑनलाइन है और इसे कोई भी जाति, धर्म या उम्र का व्यक्ति कर सकता है।
● राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (नई दिल्ली, श्रीनगर, त्रिवेंद्रम आदि)
यह संस्थान वैदिक साहित्य, कर्मकांड, पुराण, व्याकरण, नाट्य और शास्त्रों में डिप्लोमा, ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन स्तर पर कोर्स कराता है, जो एक कथावाचक की बुनियादी शैक्षणिक नींव रख सकता है।
● कर्मकांड/धर्मशास्त्र कोर्स
देश की विभिन्न संस्कृत शिक्षण संस्थाएं कर्मकांड, संहिता पाठ, भागवत अध्ययन जैसे कोर्स कराती हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से कथावाचन से जुड़े होते हैं। इन कोर्सेस में श्लोक उच्चारण, भावाभिव्यक्ति, व्याख्या कौशल, और धर्मशास्त्रीय ज्ञान की शिक्षा दी जाती है।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और डिजिटल युग में कथावाचन
तकनीक के इस युग में कथावाचन भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्थान बना चुका है। YouTube, Zoom और अन्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म पर कई कथावाचक नियमित रूप से कथा का प्रसारण कर रहे हैं। इससे न केवल उनकी पहुंच वैश्विक हुई है, बल्कि अब यह एक पूर्णकालिक डिजिटल करियर बन चुका है।
ऑनलाइन कोर्स कराने वाले विश्वविद्यालय अब कथावाचकों को मंचीय और मीडिया व्यवहार भी सिखा रहे हैं, ताकि वे पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक रूप में प्रस्तुत कर सकें।
कथावाचकों के चयन और आलोचना के सामाजिक आयाम
उत्तर प्रदेश में हालिया विवाद कथावाचकों की जाति और उत्पत्ति से जुड़ी चर्चा को भी जन्म दे चुका है। इस संदर्भ में यह स्पष्ट करना जरूरी है कि कथावाचन सिर्फ एक जाति विशेष का कार्य नहीं है। वर्तमान में सभी समुदायों के लोग इस विद्या में आगे बढ़ रहे हैं और यह भारतीय संस्कृति के समावेशी स्वरूप को दर्शाता है।
क्या होना चाहिए आगे?
भारत में कथावाचन को एक विधा के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है। इसके लिए एक नियामक परिषद (Regulatory Body) का गठन होना चाहिए जो प्रशिक्षित कथावाचकों को प्रमाणपत्र दे और मंचीय आचरण, भाषा शुद्धता और धार्मिक मर्यादाओं की निगरानी कर सके। साथ ही, इस कला को जातीय और राजनीतिक विवादों से ऊपर उठाकर भारतीय संस्कृति की साझा विरासत के रूप में देखा जाना चाहिए।
कथावाचक बनना अब केवल आस्था का विषय नहीं, एक प्रोफेशनल कॉलिंग है – जिसके लिए ज्ञान, अभ्यास और मर्यादा, तीनों का समन्वय आवश्यक है।
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