गुरु पूर्णिमा विशेष : जिनके चरणों में देश झुकता है, उनके गुरु कौन !
जानें आध्यात्मिक गुरुओं की शिक्षा-दीक्षा की कहानी
नई दिल्ली
गुरु पूर्णिमा, वह शुभ अवसर जब शिष्य अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह दिन सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि आत्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है—जिन्हें करोड़ों लोग गुरु मानते हैं, उन्होंने किससे दीक्षा ली? किस शिक्षण और तप ने उन्हें इस ऊंचाई तक पहुंचाया? आइए, आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जानते हैं आधुनिक भारत के कुछ प्रसिद्ध गुरुओं की जीवन यात्रा और उनके गुरुओं के बारे में।
प्रेमानंद जी महाराज: भक्ति की अद्वितीय साधना, गुरु से राधा प्रेम की दीक्षा
प्रेमानंद जी महाराज आज राधा भक्ति के सबसे बड़े प्रवक्ता माने जाते हैं। 13 वर्ष की उम्र में ही ब्रह्मचारी जीवन स्वीकार कर लिया। प्रारंभिक साधना वाराणसी में की, जहां गंगा किनारे दिन-रात तपस्या करते थे। बाद में वृंदावन में श्रीहित गौरांगी शरण जी महाराज के सान्निध्य में वर्षों तक सेवा और साधना की। गुरु के आशीर्वाद से वे सहचरी भाव में स्थित होकर राधा प्रेम के अद्वितीय उपदेशक बन गए।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य: अंधकार में मिला वेदांत का प्रकाश
जन्म के दो माह बाद ही आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन विद्या और साधना से उन्होंने संसार को आलोकित कर दिया। संस्कृत के प्रकांड विद्वान, 22 भाषाओं के ज्ञाता और 80 ग्रंथों के रचयिता। पंडित ईश्वर दास महाराज से गुरु दीक्षा ली और गुरु राम चरण दास जी से रामानंदी संप्रदाय में विधिवत प्रवेश प्राप्त किया। आज वह तुलसी पीठाधीश्वर और जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
योग गुरु स्वामी रामदेव: गुरुकुल से योगगुफा तक का सफर
हरियाणा के एक गांव से निकले रामकृष्ण यादव आज योगगुरु स्वामी रामदेव के नाम से दुनिया में पहचाने जाते हैं। गुरुकुल कालवा में शिक्षा के बाद स्वामी शंकर देव से योग की दीक्षा ली। उन्हीं के साथ मिलकर 1992 में दिव्य योग ट्रस्ट की स्थापना की। उनके योग और आयुर्वेद ने विश्व में भारतीय ज्ञान की छवि को पुनर्स्थापित किया।
श्री श्री रविशंकर: विज्ञान और वेदांत के समन्वय से जन्मा ‘सुदर्शन क्रिया’
तमिलनाडु में जन्मे रविशंकर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। महर्षि महेश योगी के शिष्य बने और उनसे भावातीत ध्यान की शिक्षा ली। उनके मार्गदर्शन में जीवन जीने की कला सीखी और 1981 में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना की। बाद में ‘सुदर्शन क्रिया’ का सूत्रपात कर दुनिया को तनावमुक्त जीवन का मार्ग दिखाया।
अनिरुद्धाचार्य जी: सोशल मीडिया के संत, गहराई से जुड़ा आध्यात्म
मध्य प्रदेश के रिंवझा गांव में जन्मे अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने अल्प आयु में ही श्रीमद्भागवत और रामचरितमानस का गहन अध्ययन कर लिया था। वृंदावन में संत गिरिराज शास्त्री महाराज से दीक्षा ली और रामानुज संप्रदाय में दीक्षित हुए। उनकी कथाओं में गहरी भक्ति के साथ आधुनिक प्रस्तुति शैली भी देखने को मिलती है।
शिव: आदि गुरु की परंपरा
भारतीय अध्यात्म में आदियोगी भगवान शिव को प्रथम गुरु माना गया है। उन्होंने सप्तऋषियों को ज्ञान देकर गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत की। महर्षि वेदव्यास से लेकर गुरु नानक, कबीर, संत तुकाराम और ओशो तक यह परंपरा आगे बढ़ती रही है। हर युग में गुरु अपने समय के अनुसार शिष्य को मार्ग दिखाते रहे।
गुरु सिर्फ मार्गदर्शक नहीं, जीवन निर्माता हैं
गुरु पूर्णिमा का यह पर्व सिर्फ परंपरा नहीं, वह चेतना है जो बताती है कि जीवन की सबसे बड़ी दौलत ज्ञान है, और ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत—गुरु। आधुनिक भारत के इन गुरुओं की जीवन यात्रा बताती है कि महानता संयोग नहीं, साधना और सही मार्गदर्शन का परिणाम है।
इस गुरु पूर्णिमा पर आइए हम अपने-अपने गुरु को नमन करें और उस परंपरा का सम्मान करें जिसने हमें अज्ञान से प्रकाश की ओर पहुंचाया।
रिपोर्ट: ख़बरी प्रसाद हिंदी दैनिक
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