खरी खरी : ईरान ने किया इजराइल का औरा ध्वस्त और अमेरिका की चौधराहट पर करारा प्रहार !
इजराइल और ईरान के बीच चल रहे संग्राम में हर पल कुछ न कुछ नया घट रहा है। ऊंट किस करवट जाकर बैठेगा कहना बहुत मुश्किल है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कनाडा में चल रहे G7 समिट को बीच में ही छोड़ कर जिस तर्ज और रूतवे के साथ अमेरिका लौटे तो यही लगा कि अगली सुबह अमेरिकी फौज ईरान पर टूट पड़ेगी। मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं । अभी भी जिस तरह की खबरें आ रही हैं वो बताती हैं कि देर सबेर अमेरिका इजराइल के पक्ष में युद्ध में ऐंट्री कर सकता है तथा ईरान के साथ रशिया और चाइना भी खड़े हो सकते हैं। तो क्या इजराइल और ईरान के बीच चल रहा युद्ध विश्व युद्ध में तब्दील हो जायेगा ? सातवें दिन जब इजराइल ने ईरान के एटमी रिएक्टर पर हमला किया तो ईरान ने भी पलटवार करते हुए इजराइल के चार शहरों बीर्शेबा, रमतगान, तेल अवीव और होलोन पर मिसाइलों की बौछार कर डाली। ईरान ने इजराइली स्टाक एक्सचेंज और अस्पताल को ही उड़ा दिया। ईरान ने असामान्य मानी जा रही बैलिस्टिक मिसाइल हाइपरसोनिक फतह-1 और सजील का पहली बार इस्तेमाल किया है । इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एकबार फिर वही राग अलापा है जिसको सुन-सुन कर लोगों के कान पक गये हैं – ईरान को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। दुनिया भर में सालों से इजराइल ने जिस आकाशीय ताकत आयरन डोम का औरा खड़ा किया था कि दुनिया की कोई भी मिसाइल उसे भेद कर इजराइल की धरती तक पहुंच ही नहीं सकती ईरान की मिसाइलों ने इजराइल के उस भरम को तोड़ कर रख दिया है। ईरानी मिसाइलों ने इजराइल के आयरन डोम को तहस नहस करते हुए इजराइली हवाई ताकत की भी हकीकत दुनिया के सामने उजागर कर दी है।
इजराइल के सबसे बड़े मददगार अमेरिका ने जिस तरह से ईरान को बिना शर्त सरेंडर करने और तत्काल तेहरान खाली करने की चेतावनी दी उस पर भी ईरानी सुप्रीमो अयातुल्ला अही खामेनेई ने पलटवार करते हुए अमेरिका को ही चेता दिया है कि अगर युद्ध में अमेरिका कूदा तो उसे भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगा। ईरानी जनता के लिए ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अही खामेनेई का राष्ट्र के नाम संदेश पढ़ा गया उसका लब्बोलुआब यही है कि अमेरिका सुन ले कि हम सरेंडर नहीं करेंगे, इजराइल के खिलाफ चल रही जंग में अगर अमेरिकी सेना दखलंदाजी करती है तो अंजाम बहुत बुरा होगा। जो लोग ईरान का इतिहास जानते हैं उनको पता है कि ईरान न तो किसी भी धमकी से डरता है न ही झुकता है। अमेरिका धमकी उसे दे जो अमेरिका की धमकी से डरते हों। इजराइल ने बहुत बड़ी गलती की है जिसकी सजा उसे मिलेगी। ईरान थोपी गई शांति या युद्ध को नहीं मानेगा। दरअसल खामेनेई का ये बयान तब आया जब ट्रम्प ने एक्स पर लिखा कि हमें अच्छी तरह पता है कि सुप्रीम लीडर कहां छिपे हैं लेकिन हम उन्हें अभी हटाने (मारने) नहीं जा रहे, कम से कम अभी नहीं। यह ईशारा इराकी सद्दाम हुसैन को जिस तरह से अमेरिका ने मौत के घाट उतारा था उस ओर था। ईरान का ऐ पलटवार यह बताने के लिए काफी है कि दुनिया के पटल पर अमेरिका अपनी चौधराहट खोता जा रहा है।
इजराइल ने जिस ताकत के साथ ईरान पर लगातार मिसाइलों पर मिसाइलें दागी और ईरान ने पलटवार करते हुए इजराइल के भरम को तोड़ कर रख दिया उससे इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को इतना तो समझ में आ ही गया है कि उनके सैन्य साजो-सामान की मारक क्षमता इतनी व्यापक, इतनी तीक्ष्ण नहीं है कि वह ईरान को डिगा सके। ईरान के परमाणु संयंत्र जिन पहाड़ों के नीचे सुरक्षित रखे हैं उन तक पहुंच पाने के लिए इजराइल के हथियार और उसकी टेक्नोलॉजी इतनी सक्षम नहीं है। इसके लिए उसको अमेरिका के सहयोग की जरूरत है क्योंकि अमेरिका के पास वो बंम हैं जो वहां तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं, पहुंच पायेंगे या नहीं यह अलग मसला है। इजराइल ने बेवजह ईरान से जो पंगा लेकर आ बैल मुझे मार का खेल खेला है उसके पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का इजराइल पर वरदहस्त होना माना जा रहा है। मगर अब खुद डोनाल्ड ट्रम्प अपने ही बुने जाल में फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प की पार्टी रिपब्लिकन के भीतर ही ट्रम्प का विरोध शुरू हो गया है। रिपब्लिकन्स खुद उपापोह की स्थिति में है जिसका पता टेलीग्राफ, इकोनामिस्ट, बीबीसी, न्यूयार्क टाइम्स में छ्प रही खबरों से चलता है। ट्रम्प मनमर्जी करके इजराइल और ईरान के बीच चल रहे संग्राम में नहीं कूद सकते हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकन संविधान से ऊपर नहीं हैं। यह सब तय तब होगा जब संविधान मुताबिक कांग्रेस की मोहर और अमेरिका के भीतर पूरी तरह से सहमति बन जायेगी।
जनता पोस्टरों के जरिए ट्रम्प के विरोध में सड़कों पर उतरने लगी है। NO NEW WARS IN THE MIDDLE EAST. DONALD TRUMP – ANALYSIS – REPUBLICAN HAWKS VS MAGA ISOLATIONISTS, THE INTERNAL WAR THAT COULD DECIDE TRUMP’S IRAN RESPONSE. BBC – TRUMP’S IRAN DILEMMA EXPOSES BITTER SPLIT AMONG MAGA FAITHFUL. Iran’s Supreme Leader’s defiance comes against the backdrop of Donald Trump seemingly shaking off his ambivalence and firmly backing the Israeli offensive against Tehran. डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव के दौरान यह वादा किया था कि अब अमेरिका मिडिल ईस्ट में होने वाले किसी भी युद्ध में भाग नहीं लेगा और ट्रम्प अपने उसी वादे से मुकर कर इजराइल के पक्ष में खड़े होकर ईरान से युद्ध करने के मंसूबे पाल रहे हैं तो ट्रम्प द्वारा युद्ध में भाग नहीं लेने के इसी वादे को लेकर अब पार्टी के कुछ सांसद, नेता ट्रम्प का विरोध कर रहे हैं परन्तु उपराष्ट्रपति जेडी वेंस जरूर ट्रम्प की पैरवी करते दिख रहे हैं। रिपब्लिकन का एक धड़ा बकायदा विधेयक लाकर कह रहा है कि इजराइल का युद्ध अमेरिका का युद्ध नहीं है और अगर वह अमेरिका का युद्ध भी होता तो भी संविधान के अनुसार ही पहल करनी होगी। कांग्रेस में इस पर बहस होगी, बाद में वोटिंग होगी और उसके बाद ही युद्ध में जाने या न जाने का फैसला होगा। अफगानिस्तान, ईराक के तर्ज पर अमेरिका को युद्ध में झोंका नहीं जा सकता है। खबर है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने G7 की बैठक बीच में ही छोड़ कर अमेरिका पहुंचते ही व्हाइट हाउस में जो मीटिंग करी उससे दो रिएक्शन निकल कर सामने आए। एक तरफ व्हाइट हाउस के प्रेस सेक्रेट्री ने कहा कि मध्य पूर्व में जो चल रहा है उसकी वजह से राष्ट्रपति ट्रम्प को G7 की बैठक को बीच में छोड़ कर अमेरिका आना पड़ा जबकि दूसरी ओर व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने ईरान पर हमला नहीं किया है। अमेरिका की सेना अपनी रक्षात्मकता बनाये हुए है और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। यानी मैसेज उलझन भरा है। इस उलझन में यह सवाल भी छिपा हुआ है कि अब इजराइल का क्या होगा क्योंकि चुनाव प्रचार के पुराने पम्पलेट हवा में तैरने लगे हैं जिसमें ऐलान है कि अमेरिका मिडिल ईस्ट के बेवकूफी भरे युध्दों का हिस्सा नहीं बनेगा। रिपब्लिकन तो यहां तक कह रहे हैं कि हम जल्द ही मध्य पूर्व में स्थिरता बहाल कर देंगे, दुनिया को शान्ति की ओर वापस ले आयेंगे।
पूर्वी अजरबैजान के खमानेह शहर से आने वाले खामेनेई परिवार में आमतोल्लाह सय्यद अली होसैनी खामेनेई का जन्म 19 अप्रैल 1939 को मशहद में हुआ था। ईरान में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने ब्रिटेन के साथ मिलकर (1953 में) तख्तापलट कराया था और ईरान की सत्ता शाह मोहम्मद रजा पहलवी के हाथ में आई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति डी आइजनहावर ने जब पहलवी की मदद की तो उसका विरोध अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने किया था। 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति ने न केवल पहलवी को सत्ताच्युत किया बल्कि ईरान को मुस्लिम देश में भी तब्दील कर दिया इसके पहले यहां पर जोरोस्ट्रियन-पारसी धर्म था। इसी बीच खामेनेई खुमैनी के करीब आते हैं। खामेनेई का सियासी सफर 1960 के दशक में शुरू होता है। खामेनेई 9 अक्टूबर 1981 से 16 अगस्त 1989 तक ईरान के राष्ट्रपति भी रहे। अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी के इंतकाल के बाद 1989 में ही खामेनेई को ईरान का सुप्रीम लीडर चुन लिया गया। 4 नवम्बर 1979 को खुमैनी के अनुयायियों ने तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास पर जो हमला किया था उसकी अगुवाई खामेनेई ने ही की थी। तो कहा जा सकता है कि खामेनेई का अमेरिका के साथ पहले से ही छत्तीस (३६) का आंकड़ा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जिस तर्ज पर अपरोक्ष रूप से सद्दाम हुसैन का जिक्र किया था तो खामेनेई ने भी अपने संदेश में उसका जबाब देते हुए कहा कि हम अतीत की तमाम परिस्थितियों को झेल चुके हैं और ईरान झुकता नहीं है। जो यह बताता है कि अब ईरान और अमेरिका के बीच वैसे संबंध नहीं रह सकते जैसे पहले कभी पुराने अमेरिकी और पुराने ईरानी शासकों के बीच रहे हैं। खामेनेई को बेहद जिद्दी और सतर्क माना जाता है। उन्होंने 1989 के बाद कोई विदेश यात्रा नहीं की है। ईरान में लोकतंत्र नहीं है। पत्रकारिता पर पहरा है, सेंसरशिप है । मानवाधिकारों का हनन आम बात है।
इजराइल और अमेरिका का मूल मकसद ईरान में तख्तापलट कराना है जो फिलहाल संभव नहीं दिखाई दे रहा है। खुमैनी परमाणु हथियारों के खिलाफ थे। खामेनेई ने भी 2003 में बकायदा परमाणु हथियारों के विरोध में फतवा जारी कर कहा था कि परमाणु हथियार इस्लाम के खिलाफ और उनका निर्माण, दुरुपयोग हराम है। लेकिन उन्होंने अपने डिफेंस सिस्टम को मजबूत करने में कोई कोताही नहीं बरती। जिसमें रशिया और चाइना का बहुत बड़ा योगदान है। सवाल यह भी है कि क्या इजराइल या यूं कहें बेंजामिन नेतन्याहू इस पूरी प्रक्रिया के भीतर फंस गए हैं क्योंकि अमेरिका फिलहाल खामेनेई की हत्या के खिलाफ है, इजराइल के पास ईरान के सुरक्षित परमाणु संयंत्रों को टार्गेट करने वाली मिसाइलें नहीं हैं और ईरान अपने तौर पर कह रहा है कि ये सारी कवायद ईरान में सत्ता परिवर्तन और सोशल वार के भीतर ले जाने के लिए की जा रही है। ईरानी सुप्रीम लीडर खामेनेई की धमकी इजराइल से ज्यादा अमेरिका के लिए समझ में आ रही है क्योंकि अमेरिका के भीतर इन दिनों जो राजनीतिक परिदृश्य है वह फिलहाल डोनाल्ड ट्रम्प के अनुकूल नहीं दिख रहा है। ट्रम्प को सत्ता में आने के पहले वाले नारों को याद दिलाया जा रहा है कि अब आप इस दृष्टिकोण को नहीं बदल सकते वर्ना दुनिया भर में अमेरिका की साख कमजोर होगी। ट्रम्प के जन्मदिन पर की गई सेना की परेड के खिलाफ जिस तरह से डेमोक्रेट्स सड़कों पर उतरे उससे तो यही लगा कि मौजूदा सत्ता में सत्ता के साथ खड़े दलों के नेता ट्रम्प के साथ नहीं हैं। तो क्या अमेरिका की पुरानी ताकत और अमेरिका की नई बार्गेनिंग परिस्थिति के बीच खुद ट्रम्प ही खड़े हो गए हैं ? ईरान, इजराइल और अमेरिका के बीच जिस तरीके से शब्दभेदी बाण चल रहे हैं तो क्या ये परिस्थितियां युद्ध की दिशा में जा रही हैं या फिर एक मनोवैज्ञानिक युद्ध की परिस्थितियों को, रास्तों को खोल रही हैं। दुनिया के सामने बहुत साफ नजर आ रहा है कि इस वक्त ना तो कोई वर्ल्ड लीडर है तथा ना ही दुनिया में सबसे ताकतवर देश के तौर पर भी कोई देश है और अन्तरराष्ट्रीय तौर पर बनी अमेरिका की साख भी डांवाडोल हो चुकी है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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