रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, 90 के पार पहुंचा: डॉलर की मजबूती, विदेशी निवेश की निकासी और राजनीतिक घमासान तेज
भारतीय रुपया बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इतिहास के अपने सबसे कमजोर स्तर पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा बाजार में शुरुआती कारोबार के दौरान रुपया 9 पैसे टूटकर 90.05 प्रति डॉलर पर खुला। इससे पहले मंगलवार को यह 89.96 पर बंद हुआ था। लगातार विदेशी निवेश की निकासी, वैश्विक बाजारों में डॉलर की मजबूती और अमेरिकी टैरिफ नीतियों ने भारतीय मुद्रा पर दबाव को और बढ़ा दिया है।
साल की शुरुआत से अब तक रुपया 5.16% कमजोर हो चुका है। 1 जनवरी 2025 को यह 85.70 स्तर पर था, जो अब 90 के पार पहुंच गया है। यह केवल आर्थिक चिंता ही नहीं, बल्कि राजनीतिक बहस का भी बड़ा मुद्दा बन गया है।
महंगाई की आहट: इम्पोर्ट महंगा, जेब पर अतिरिक्त बोझ
रुपये की कमजोरी का पहला और सीधा असर भारत के आयात बिल पर पड़ता है। कच्चे तेल, सोना, मोबाइल पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक सामान और दवाइयों जैसे सेक्टर्स पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
रुपये के कमजोर होने का मतलब है कि भारत को समान मात्रा में डॉलर खरीदने के लिए अधिक रुपए खर्च करने होंगे।
- पेट्रोल-डीजल महंगा होने की आशंका
- मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, चिप-आधारित गैजेट्स की कीमतें बढ़ सकती हैं
- विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों का खर्च 10–15% तक बढ़ सकता है
- विदेश यात्रा, होटल, टिकट—सब महंगे
- कुल मिलाकर महंगाई पर सीधा दबाव
उदाहरण के तौर पर, एक छात्र जो पहले 1 डॉलर के लिए 50–60 रुपये खर्च करता था, अब उसे 90 रुपये से अधिक चुकाने पड़ते हैं, जिससे फीस से लेकर रहने-खाने तक हर खर्च बढ़ गया है।
रुपये के गिरने की प्रमुख वजहें
विशेषज्ञ तीन प्रमुख कारणों को रुपया टूटने के पीछे जिम्मेदार मानते हैं:
1. अमेरिकी टैरिफ का दबाव
US प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय आयात पर 50% टैरिफ लगाए जाने के बाद लगातार आशंका है कि भारत की GDP ग्रोथ पर 60–80 बेसिस पॉइंट का असर पड़ेगा।
कम निर्यात = कम डॉलर इनफ्लो = रुपए पर दबाव
2. विदेशी निवेश की तेज निकासी
जुलाई से अब तक विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) ₹1.03 लाख करोड़ से अधिक की बिक्री कर चुके हैं।
यह बिक्री डॉलर में कन्वर्ट होती है, जिससे बाजार में डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया कमजोर होता जाता है।
3. तेल-सोना कंपनियों की डॉलर खरीद
तेल और सोने के आयातक तथा बड़ी कंपनियां हेजिंग के लिए डॉलर की भारी खरीद कर रही हैं।
टैरिफ अनिश्चितता के माहौल में कंपनियां अतिरिक्त डॉलर स्टॉक कर रही हैं, जिससे स्थानीय बाजार में दबाव और बढ़ गया है।
रुपया कमजोर होना क्या होता है?
जब किसी देश की करेंसी डॉलर की तुलना में गिरती है, तो इसे डेप्रिसिएशन कहा जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास जितना अधिक डॉलर रिजर्व होगा— रुपए की स्थिति उतनी ही मजबूत होगी।
डॉलर रिजर्व कम होने या डॉलर की मांग बढ़ने से रुपया स्वाभाविक रूप से कमजोर पड़ता है।
राजनीतिक मोर्चे पर गर्मी: कांग्रेस ने PM मोदी का पुराना वीडियो साझा किया
रुपये की गिरावट ने राजनीतिक तापमान भी बढ़ा दिया है। कांग्रेस ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुराना वीडियो साझा करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा।
कांग्रेस ने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया:
“The way the dollar is strengthening, the rupee is weakening, in such a situation India will not be able to sustain in global trade.
Our traders will not be able to bear this burden, but the government in Delhi is not giving any response.
– Narendra Modi”
इसके साथ ही पार्टी ने तंज कसते हुए लिखा— “अबकी बार… रुपया 90 पार”
राजनीति में यह बयान बाज़ार की उथल-पुथल के साथ और भी तीखा हो गया है।
ऐतिहासिक तुलना: किस सरकार में कितना टूटा रुपया?
पिछले दो दशकों में रुपया लगातार दबाव में रहा है, लेकिन गिरावट की गति अलग-अलग रही:
मनमोहन सिंह सरकार (2004–2014)
- 2004: ₹43–45 प्रति डॉलर
- 2014: ₹62–63 प्रति डॉलर
➡ 10 साल में लगभग 18–20 रुपये की गिरावट
मोदी सरकार (2014–2025)
- 2014: ₹62–63 प्रति डॉलर
- 2019: ₹70–72 प्रति डॉलर
- 2025: ₹90+ प्रति डॉलर
➡ 11.5 साल में 27–30 रुपये की गिरावट
यह इतिहास बताता है कि वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और नीतिगत फैसलों का असर किस तरह भारतीय मुद्रा को लगातार प्रभावित करता रहा है।
आगे क्या?
अगर डॉलर की मजबूती और विदेशी फंड्स की निकासी जारी रहती है, तो आने वाले समय में—
- ईंधन
- इलेक्ट्रॉनिक गुड्स
- दवाइयां
- कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स
- विदेश यात्रा
सबकी कीमतों में और वृद्धि देखने को मिल सकती है।
सरकार और RBI के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसे नियंत्रित करने के लिए या तो बड़े पैमाने पर बाजार हस्तक्षेप करना होगा या नीतिगत बदलाव की ज़रूरत पड़ेगी।



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