यूं ही इंदिरा को ‘आयरन लेडी’ नहीं कहा जाता – ट्रंप के सामने फिर झुके मोदी!
आज देश पूछ रहा है – क्या हम फिर से एक आयरन लेडी की तलाश में हैं?
रितेश माहेश्वरी: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में आतंकवादियों ने 26 मासूमों की बेरहमी से हत्या कर दी। अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की चुनावी रैली में ऐलान किया था कि “हर एक बूँद का हिसाब लिया जाएगा, बदला जरूर लिया जाएगा।” इसके बाद देशभर में बैठकें हुईं – रक्षा मंत्रालय से लेकर गृह मंत्रालय तक, हर स्तर पर हाई अलर्ट घोषित किया गया।
भारत का जवाब – एयरस्ट्राइक में 100 आतंकी ढेर!
6-7 मई की रात भारत ने पाकिस्तान पर हवाई हमला किया। रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि इस हमले में पाकिस्तान में छिपे हुए लगभग 100 आतंकी मारे गए। यह कार्यवाही पहलगाम के हमले का प्रतिशोध मानी गई और देश भर में एक बार फिर राष्ट्रवाद की लहर दौड़ गई। लेकिन इसके बाद हालात बदले।
पाकिस्तान का जवाबी हमला और युद्ध जैसे हालात
7 मई की शाम पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों पर ड्रोन हमले किए, जिसमें पंजाब और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में हल्की क्षति की खबरें आईं। 8 और 9 मई को दोनों देशों के बीच सीमाओं पर जमकर गोलीबारी हुई। भारत ने अपने नागरिकों को सतर्क किया – सायरन बजाए गए, ब्लैकआउट अभ्यास करवाए गए और लोगों को युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाने लगा।
ट्रंप का ट्वीट और अचानक युद्धविराम!
लेकिन 10 मई की शाम 5:35 बजे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का व्हाइट हाउस से ट्वीट आया –
“Both India and Pakistan have agreed to an immediate ceasefire. Peace must prevail in South Asia.”
इसके कुछ ही मिनटों में भारत और पाकिस्तान की ओर से भी युद्धविराम की आधिकारिक पुष्टि हो गई।
सरकार के फैसले पर उठे सवाल
जैसे ही युद्धविराम की घोषणा हुई, देशभर में मोदी सरकार के खिलाफ सवाल उठने लगे। लोगों को यह कदम “कूटनीतिक झुकाव” लगा, खासकर तब जब माहौल इस तरह बनाया गया था जैसे भारतीय सेना लाहौर तक पहुँचने वाली है। लोगों ने सोशल मीडिया और चाय की दुकानों पर इंदिरा गांधी, सरदार पटेल और अटल बिहारी वाजपेयी की बात शुरू कर दी।
आयरन लेडी इंदिरा गांधी की बात क्यों हो रही है?
इंदिरा गांधी केवल एक प्रधानमंत्री नहीं थीं, बल्कि भारत की आयरन लेडी थीं – और यह उपनाम उन्होंने अपने फैसलों से साबित किया। उनके कार्यकाल में दो ऐतिहासिक युद्ध हुए:
1965 की जंग – लाहौर तक पहुंची भारतीय सेना
1965 का भारत-पाक युद्ध भारत की सैन्य क्षमता, रणनीतिक सूझबूझ और राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रतीक था। यह युद्ध 5 अगस्त 1965 को शुरू हुआ जब पाकिस्तान ने “ऑपरेशन जिब्राल्टर” के तहत जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की। पाकिस्तान की योजना थी कि वहां के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में विद्रोह भड़काकर भारत को कश्मीर खोने पर मजबूर कर देगा।
लेकिन भारतीय सेना ने इस योजना को नाकाम कर दिया। 6 सितम्बर को भारतीय सेना ने जबरदस्त जवाबी कार्रवाई करते हुए पंजाब सीमा से पाकिस्तान पर आक्रमण किया। भारत की सेना लाहौर के दरवाजे तक पहुंच गई। भारतीय सैनिकों ने बुरकी, खेमकरण, कासूर और सियालकोट जैसे महत्वपूर्ण मोर्चों पर जीत दर्ज की।

लाहौर सेक्टर में भारत की 15वीं कोर ने पाकिस्तान के हौसले पस्त कर दिए। सेना ने इच्छोगिल नहर को पार कर लाहौर से मात्र 10 किलोमीटर दूर तिरंगा फहरा दिया था।

अंततः 22 सितम्बर 1965 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्धविराम लागू किया गया। इस युद्ध ने इंदिरा गांधी को भारत की “आयरन लेडी” की छवि के रूप में स्थापित किया क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की आक्रामकता के विरुद्ध खड़े होकर सेना को खुली छूट दी।
1971 का युद्ध – पाकिस्तान के दो टुकड़े
1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया अब तक का सबसे निर्णायक युद्ध था। इसकी जड़ें बांग्लादेश की स्वतंत्रता आंदोलन में थीं, जहाँ पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा बंगाली जनता पर अमानवीय अत्याचार किए जा रहे थे।
3 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान ने भारत के 11 एयरबेस पर हवाई हमला किया, जिसका जवाब भारत ने उसी रात दिया। इंदिरा गांधी ने तत्काल युद्ध की घोषणा कर दी।
भारत ने तीन मोर्चों – पूर्व, पश्चिम और समुद्र से युद्ध लड़ा। पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी (बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानी) ने मिलकर पाकिस्तान के विरुद्ध निर्णायक बढ़त बनाई।
16 दिसम्बर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी ने 93,000 सैनिकों के साथ भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। यह विश्व युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है।


भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और बांग्लादेश नाम का नया देश अस्तित्व में आया।
इस युद्ध के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत को युद्ध रोकने की धमकी दी थी, USS Enterprise को बंगाल की खाड़ी में तैनात किया गया था, मगर इंदिरा गांधी नहीं झुकीं। सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया, और भारत ने पूरे आत्मविश्वास के साथ युद्ध लड़ा और जीता।
1998 के परमाणु परीक्षण – वाजपेयी का साहस
भारत ने 1974 में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के नाम से पहला परमाणु परीक्षण किया था, लेकिन पूरी तरह से परमाणु शक्ति संपन्न देश बनने के लिए वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में 1998 में राजस्थान के पोखरण में 11 और 13 मई को पांच परमाणु परीक्षण किए गए।
इससे पहले अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA ने भारत को चेताया था कि यदि भारत परमाणु परीक्षण करता है तो उसे आर्थिक और सामरिक प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं। अमेरिका, जापान और कई यूरोपीय देशों ने इस पर भारत को रोकने की कोशिश की थी।
अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया की परवाह किए बिना “पोखरण-2” परीक्षण करवाया, जिसमें 3 परमाणु हथियारों और 2 सब-कन्वेंशनल डिवाइसेस का परीक्षण हुआ।
तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने स्वीकार किया कि हम भारत को रोकने में असफल रहे।

अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध भी लगाए, लेकिन भारत की जनता और सेना का आत्मबल और सरकार की नीति अडिग रही। भारत अब एक घोषित परमाणु शक्ति बन चुका था।
वाजपेयी ने संसद में खड़े होकर कहा – “अब हम सिर झुकाकर नहीं, सिर उठाकर बात करेंगे।”
1999 की कारगिल लड़ाई – दुनिया के विरोध के बावजूद भारत का पराक्रम
कारगिल युद्ध मई-जुलाई 1999 के बीच लड़ा गया। यह युद्ध तब शुरू हुआ जब पाकिस्तान के सैनिकों और आतंकवादियों ने भारतीय नियंत्रण रेखा (LoC) को पार कर कारगिल सेक्टर में ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय सेना ने दुर्गम इलाकों में पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने का अभियान चलाया।
भारत ने पूरी लड़ाई नियंत्रण रेखा के भीतर लड़ी और किसी भी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन नहीं किया, जबकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को खराब करने की कोशिश करता रहा।

अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों ने शुरू में भारत को युद्ध रोकने की सलाह दी, लेकिन जब भारत ने सबूतों के साथ बताया कि घुसपैठ पाकिस्तान सेना द्वारा की गई थी, तब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान की निंदा की।
अंततः 26 जुलाई 1999 को भारत ने ‘टाइगर हिल’ समेत सारे पोस्ट वापस जीत लिए।
तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने स्वीकार किया कि हम भारत को रोकने में असफल रहे।
इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए, पर भारत ने पाक की साजिश को पूरी तरह नाकाम कर दिया।
अब बात मोदी सरकार की: क्या तीन हमलों के बाद भी एक भी निर्णायक कार्यवाही नहीं?
उरी हमला (2016):
उरी में सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ। इसके बाद मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक का दावा किया, लेकिन पाकिस्तान को किसी गंभीर नुकसान की जानकारी सामने नहीं आई।
पुलवामा हमला (2019):
CRPF के 40 जवान शहीद हुए। भारत ने एयर स्ट्राइक की, मगर पाकिस्तान ने तुरंत कहा कि इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ। सरकार ने न तो कोई सबूत दिखाया और न ही पाक पर कोई निर्णायक दबाव बना।
अब पहलगाम हमला (2025):
26 मासूमों की हत्या के बाद भी नतीजा वही – पहले देशवासियों को युद्ध के लिए तैयार किया गया, फिर अमेरिका के एक ट्वीट के बाद युद्धविराम मान लिया गया। ट्रंप के एक संदेश से पूरा आक्रामक रुख ठंडा हो गया।
सवाल उठता है – क्या अब भारत किसी की आँखों में आँखें डालकर बात नहीं करता? क्या अमेरिका की बात भारत के लिए सर्वोपरि हो गई?
‘गोदी मीडिया’ की भूमिका – लाहौर, कराची सब जीत लिया था टीवी पर!
भारतीय मीडिया, जिसे पहले ही ‘गोदी मीडिया’ कहा जाता है, ने तो 7 मई को ही भारत को विजेता घोषित कर दिया। टीवी चैनलों ने लाहौर, कराची, इस्लामाबाद और रावलपिंडी तक भारतीय सेना के झंडे फहरा दिए – जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।
न दर्शकों को ज़मीनी सच्चाई बताई गई, न ही यह स्वीकार किया गया कि युद्ध नहीं बल्कि केवल “तैयारी” चल रही थी। मीडिया ने एक बार फिर अपनी गैरजिम्मेदाराना पत्रकारिता से देश की भावना को भड़काया, और फिर एक ट्वीट पर चुप्पी साध ली।
यूं ही नहीं कहा जाता इंदिरा गांधी को आयरन लेडी
जहां एक ओर इंदिरा गांधी ने अमेरिका और ब्रिटेन जैसी शक्तियों की परवाह किए बिना निर्णय लिए, वहीं आज की सरकार बार-बार अंतरराष्ट्रीय दबाव में झुकती दिखाई देती है। तीन बड़े आतंकी हमले, तीन बड़ी घोषणाएं – लेकिन कोई ठोस या निर्णायक कदम नहीं।
आज देश पूछ रहा है – क्या हम फिर से एक आयरन लेडी की तलाश में हैं?
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