युद्ध और मीडिया: एक जिम्मेदार दृष्टिकोण की आवश्यकता
युद्ध उत्सव नहीं, एक भयानक त्रासदी है। जब हम अपने घरों में सुरक्षित बैठे हैं, तब इसे त्योहार की तरह केवल वही लोग देख पा रहे हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य सेना में नहीं है। युद्ध की वास्तविकता उन परिवारों के लिए कितनी भयावह होती है, जिनके प्रियजन सीमा पर अपनी जान जोखिम में डालकर देश की रक्षा करते हैं लेकिन वर्तमान में मेंस्ट्रीम मीडिया की भूमिका सवालों के घेरे में है। आज का मीडिया परिदृश्य चिंताजनक है। आर्थिक संकट से जूझ रहे और टीआरपी की अंधी दौड़ में फंसे मीडिया संस्थानों के लिए कोई भी आपदा हमेशा से एक सुनहरा अवसर रही है। देश का मीडिया इस मुश्किल समय में खबरों को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए मिर्च-मसाला लगाकर परोस रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल आम लोगों में अनावश्यक भय और आतंक का माहौल पैदा करती है, बल्कि इससे भी गंभीर चिंता की बात यह है कि लाइव ऑपरेशंस की कवरेज से विरोधी देश को वह महत्वपूर्ण सूचनाएँ पहुंच रही हैं, जो ऐसे नाजुक समय में अत्यंत गोपनीय होनी चाहिए। सत्यापित सूचनाओं के स्थान पर महज प्रोपेगेंडा परोसा जा रहा है। एक दूसरे चैनल से आगे निकलने की अंधाधुंध होड़ में मीडिया अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुंह मोड़ चुका है और पूरी तरह तिलांजलि दे चुका है मीडिया के मूलभूत सिद्धांतों की, मेंस्ट्रीम मीडिया ने स्टूडियो को युद्ध के मैदान में बदल दिया है और अफवाहों को खबरों में, सोशल मीडिया और हमारे मेंस्ट्रीम मीडिया में अब कोई अंतर दिखाई नहीं देता क्योंकि मेंस्ट्रीम मीडिया से क्रेडिबिलिटी पूरी तरह गायब है। टीवी एंकर यह विचारणीय तथ्य है कि प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारतीय मीडिया 180 देशों की सूची में 168वें नंबर पर क्यों है। सूचनाओं के स्थान पर लोगों की भावनाओं को आंदोलित करने के लिए खबरों के स्थान पर महज अफवाहों को युद्ध के सायरन के साथ भरोसा जा रहा है। लोगों को टीवी स्क्रीन से बांधे रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बनाए गए वीडियो परोसे जा रहे हैं। टीआरपी की अंधाधुंध दौड़ में अपने आप को चमकाने के लिए टीवी एंकर स्टूडियो में ही युद्ध का पूरा माहौल क्रिएट कर रहे हैं और लोगों में पैनिक फैलाने का कार्य किया जा रहा है। हालांकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इस दौरान मीडिया से ऐसी कोई भी लाइव कवरेज करने से मना कर चुका है, जिससे मिलिट्री ऑपरेशंस की सूचना पड़ोसी मुल्क तक पहुंचे लेकिन एक दूसरे से आगे निकलने की दौड़ में पत्रकारिता और उसके सिद्धांत पीछे छूट चुके हैं। इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है, जब हम देखते हैं कि संकट के समय में भी मीडिया संस्थान अपनी व्यावसायिक हितों को राष्ट्रीय हितों से ऊपर रखते हैं। क्या मीडिया ऐसे गंभीर समय में भी अपनी जिम्मेदारी एक पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के अनुसार नहीं निभा सकता? संतुलित और जिम्मेदार पत्रकारिता की आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक है। मीडिया का प्राथमिक कर्तव्य सत्य को बिना किसी अतिरंजना के प्रस्तुत करना है, न कि दर्शकों के भावनात्मक शोषण के माध्यम से अपनी टीआरपी बढ़ाना। युद्ध जैसी संवेदनशील स्थितियों में, राष्ट्रीय सुरक्षा और सैनिकों की सलामती सर्वोपरि होनी चाहिए। हम आम नागरिकों से अपील करते हैं कि अपनी जानकारी के लिए विश्वसनीय और तथ्यात्मक माध्यम चुनें। कुछ भी कहने और लिखने से पहले, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर, गहराई से सोचें और तथ्यों की पुष्टि करें। इस मुश्किल घड़ी में, हमारे वीर जवानों पर भरोसा रखें और उनकी सलामती के लिए प्रार्थना करें। युद्ध की त्रासदी को समझें, इसका उत्सव न मनाएँ। मीडिया से हमारी अपेक्षा है कि वह राष्ट्रीय संकट के इस समय में अपनी भूमिका निभाते हुए देश के हित में कार्य करे, न कि केवल स्वयं के व्यावसायिक लाभ के लिए।
प्रदीप दलाल की कलम से….
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