खरी-अखरी : अविश्वसनीय जनादेश
खरी-अखरी ने लिखा था कि वोटिंग पर्सेंटेज में बड़ा उतार चढ़ाव होने पर कोई सत्ता बरकरार रह जाये ऐसा कोई उदाहरण फिलहाल तो इतिहास में दर्ज नहीं है जब तक उसमें चुनाव आयोग का छौंक न लगा हो। बिहार की जनता ने तो अपनी चाल दी है आखिरी पांसा तो चुनाव आयोग को ही फेंकना है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार गुप्ता ने पत्रकारों से बिहार के कुल मतदाओं की संख्या साझा करते हुए कहा था कि मतदाताओं की संख्या लगभग 7.42 करोड़ करोड़ है जिसमें पुरुष मतदाता 3.92 करोड़ और महिला मतदाता 3.5 करोड़ हैं। बिहार में हुए मतदान के आंकड़े जारी करते हुए चुनाव आयोग ने बताया कि पहले चरण में 17677219 (69.04%) महिलाओं ने तथा 19835325 (61.56%) पुरुषों ने मतदान किया है। यानी पहले चरण में कुल 37513302 (65.08%) मतदान हुआ है। इसी तरह से दूसरे चरण में 17468572 (74.03%) महिलाओं ने तथा 19544041 (64.09%) पुरुषों ने मतदान किया है। यानी दूसरे चरण में कुल 37013556 (68.76%) मतदान हुआ है। यानी बिहार के भीतर 35145791 (71.6%) महिलाओं ने तथा 39379366 (62.8%) पुरुषों ने यानी कुल 74526858 (66.91%) लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। अब एक बार फिर से मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार गुप्ता की बातों पर गौर किये जाने की जरूरत है जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार में कुल 7.42 करोड़ मतदाता है और अब जब चुनाव आयोग ने बिहार में पड़े मतों के आंकड़े देश से साझा किये हैं वह 7.45 करोड़ का है और प्रतिशत 66.91 बताया है। यहां पर स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है कि 0.01 करोड़ महिलाओं ने तथा 0.02 करोड़ पुरुषों ने यानी चुनाव आयोग द्वारा बताये गये कुल वोटरों से ज्यादा यानी 0.03 करोड़ लोगों ने मतदान किया है। इसके साथ यह भी लिखा है कि ये आंकड़े अस्थाई हैं इसमें सेना के मतदाताओं टीजी वोटर का प्रतिशत और पोस्टल बैलेट शामिल नहीं है। यानी वोटों की संख्या और पर्सेंटेज में इजाफा होगा। दुनिया भर के किसी भी देश में ऐसी कोई गणित नहीं है जो टोटल यानी शतप्रतिशत से ज्यादा आंकड़े पेश करे और उसका प्रतिशत तीन चौथाई से भी कम हो। यह करिश्माई गणित केवल भारत में और वह भी भारत के निर्वाचन आयोग तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस विषय में मास्टरी डिग्री हासिल की है उसमें हो सकती है।
आरजेडी को पिछले चुनाव 2020 में मिले मतों में से इस बार 2025 में 0.35 फीसदी की कमी आती है लेकिन उसकी पिछली सीटों 75 में सीधे तौर पर 50 सीटों की कमी हो जाती है और वह 25 सीटों पर सिमट जाती है। बीजेपी का 1 फीसदी वोट बढ़ता है और उसकी सीटों में 28 सीटें बढ़ जाती हैं। इसी तरह जेडीयू के वोट भी तकरीबन 3 फीसदी बढ़ते हैं और उसकी पिछली सीटों पर 40 सीट का उछाल हो जाता है। कुछ इसी तरह से कांग्रेस के वोट में 1 फीसदी की कमी हो जाती है और वह 10 से ज्यादा सीटें गवां देती है। जो इस बात की ओर इशारा करतें हैं कि आरजेडी और कांग्रेस ने जितनी भी सीटें जीती हैं वह बड़े अंतर से जीती हैं जबकि बीजेपी और जेडीयू ने जो सीटें जीती हैं उनमें अधिकांश सीटें काफी नजदीकी फासले से जीती हैं। जो कहीं न कहीं चुनाव आयोग, प्रशासनिक लाॅबी की सांठगांठ की ओर ईशारा करती है। बिहार का चुनाव परिणाम हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव परिणाम से भी ज्यादा चौंकानेवाला और अविश्वसनीय है। शायद इसीलिए लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों के गले नहीं उतर रहा है। क्या बिहार के चुनाव परिणामों ने एक झटके में बिहार की गरीबी, बेरोजगारी, मुफलिसी को खारिज कर दिया है ? 2014 जैसी स्थिति जो लोकसभा में कांग्रेस के सामने देश की जनता ने पैदा कर दी थी ठीक वैसी ही परिस्थितियों में बिहार की जनता ने आरजेडी को लाकर खड़ा कर दिया है। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस 10 फीसदी सीटें भी जीत नहीं पाई थी और उसे विपक्ष के नेता पद से हाथ धोना पड़ा था। ठीक वही स्थिति आज आरजेडी के सामने खड़ी हो गई है कि उसके पास भी 10 फीसदी सीटें नहीं है। यानी इस बार बिहार की विधानसभा विपक्षी नेता विहीन रहने वाली है।
बिहार के भीतर जब पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ था तब 42.5 पर्सेंटेज वोट पड़े थे और कांग्रेस सत्ता में आई थी। 1967 में 51 फीसदी वोट पड़े तो कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और उसकी जगह जनक्रांति दल ने ले ली और महामाया बाबू मुख्यमंत्री बन गये। कांग्रेस गायब हो गई। इमर्जेंसी के बाद जब श्रीमती इंदिरा गांधी सत्ता में लौटी और 1980 में जब बिहार में चुनाव हुए तब लगभग 7 फीसदी वोटों का इजाफा हुआ और जनता पार्टी की सरकार को पलटाते हुए जनता ने कांग्रेस को कुर्सी पर बैठा दिया। मंडल कमंडल की राजनीति ने केन्द्र के साथ ही बिहार में भी असर दिखाया और जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने सत्ता की बागडोर सम्हाली। 2005 में 2000 की तुलना में पहली बार 16 पर्सेंटेज कम होकर 62 के मुकाबले 46 पर्सेंटेज हो गया। जोड़तोड़ कर सरकार बनी। 6 महीने बाद फिर चुनाव हुए तब भी 1 फीसदी वोट कम 45 फीसदी पड़ा। पहली बार जेडीयू और बीजेपी ने सरकार बनाई। 2010 में जेडीयू और बीजेपी ने बड़ी जीत के साथ सरकार बनाई। 2010 में जेडीयू आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है और सत्ता में आती है। 2020 में जेडीयू आरजेडी का साथ छोड़कर बीजेपी से गठबंधन करती है और फिर सरकार बनाती है। यानी पिछले 20 साल से जेडीयू सत्ता में है चाहे उसने किसी के साथ भी मिलकर चुनाव लड़ा हो। और जेडीयू का मतलब नितीश कुमार है यानी नितीश कुमार को साथ लिए बिना कोई भी राजनीतिक दल बिहार में सरकार नहीं बना सका। मगर इस बार 2025 में जो जनादेश आया है उसमें नितीश कुमार की वो महत्ता नहीं है जो इसके पहले हुए चुनाव में हुआ करती थी। आज बीजेपी नितीश कुमार के बिना भी सरकार बना सकती है और नितीश कुमार पलटी मार कर भी सरकार नहीं बना सकते हैं।
यह अलग बात है कि एआईएमआईएम सुप्रीमो ओवैसी ने बिहार में लगातार दूसरी बार 5 सीटें जीतने के बाद नितीश कुमार को 2029 के आम चुनाव में वेटिंग प्राइम मिनिस्टर का आफर यह कहते हुए दिया है कि हम जोड़ने की राजनीति करते हैं तोड़ने की नहीं। इसीलिए अभी मौका है। एआईएमआईएम का सीएम, जेडीयू के दो डिप्टी सीएम और 20 मंत्री, आरजेडी के 6 मंत्री, सीपीआई एमएल 1मंत्री, सीपीआई एम 1मंत्री बराबर सरकार । ओवैसी के फार्मूले के अनुसार वो सरकार बनाने के करीब का जादुई आंकड़ा इस तरह छूने की बात कर रहे हैं कि जेडीयू के 85 प्लस आरजेडी 25, कांग्रेस 6, एआईएमआईएम 5 कुल 121। एक दो दोपाये का जुगाड़ बीजेपी की तर्ज पर निर्दलियों को मंत्री पद का आफर देकर किया जा सकता है। वैसे ये सब ख्याली पुलाव से ज्यादा कुछ नहीं है। कुछ राजनीतिक पंडतों का मानना है कि बिहार के जनादेश से देश की राजनीति में कोई बड़ा परिवर्तन आयेगा जबकि कुछ का मानना है कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार जैसे हालात दिख रहे हैं और जिस तरह का गठबंधन दिल्ली सल्तनत और चुनाव आयोग के बीच बना हुआ है और तमाम शिकायतों के बावजूद जिस तरह का संरक्षण देश की सबसे बड़ी अदालत घुमा फिराकर कर रही है उससे तो इतना कहा ही जा सकता है कि फिलहाल मोदी शाह की भाजपा को हरा पाना विपक्ष के बस में दिख नहीं रहा है।
देश में दो ही ऐसे अछूते राज्य हैं जहां ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी गुजराती जोड़ी बीजेपी की सरकार बनाने के लिए तरस रही है। ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल और स्टालिन का तमिलनाडु। आने वाले समय में बीजेपी ज्ञानेश के ज्ञान के भरोसे पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में कब्जा करने की हर संभव कोशिश करेगी। यह ममता बनर्जी और स्टालिन के लिए भी बहुत बड़ा चेलैंज है कि वो अपनी सत्ता बरकरार रख पाते हैं या फिर बाजी हार जाते हैं। आज की स्थिति में बिहार चुनाव जीतने से बीजेपी अपर हैंड में है जिसके तले वह अपनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही जगहंसाई को भी ढक लेगी। फिलहाल एनडीए में शामिल किसी भी दल में इतना साहस नहीं है कि वह मोदी गवर्नमेंट को कमजोर करने के बारे सोच भी सके फिर चाहे वह चंद्रबाबू नायडू हों या फिर नितीश कुमार। अब तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनने के लिए आरएसएस भी कुछ नहीं कर पायेगा वैसे भी मोदी गवर्नमेंट ने आरएसएस प्रमुख को सरकारी सुख-सुविधाओं का लहू चटाकर अपने कदमों में सरेंडर कर ही लिया है। अब तो बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी अमित शाह की पर्ची से निकलेगा जैसे भाजपाई राज्यों के मुख्यमंत्री निकल रहे थे और बिहार में भी निकलने के पूरे पूरे चांस हैं।
बिहार चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया अखिलेश यादव ने की है फिलहाल तो वह खुद को तसल्ली देने ज्यादा कुछ नहीं है। अखिलेश यादव ने अपने ट्यूटर अकाउंट पर लिखा है कि बिहार में जो खेल एसआईआर ने किया है वो पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर अब नहीं हो पायेगा क्योंकि इस चुनावी साजिश का अब भंडाफोड़ हो चुका है। हम आगे यह खेल इनको नहीं खेलने देंगे। सीसीटीवी की तरह हमारे पीपीटीवी मतलब पीडीए प्रहरी चौकन्ना रह कर भाजपाई मंसूबों को नाकाम करेंगे। भाजपा दल नहीं छल है। विपक्ष के सामने सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अगर वह कि अगर वह देश के भीतर लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया का बहिष्कार करेगा तो फिर उसके पास क्या बचेगा और अगर वो शामिल होता है तो भी उसके पास कुछ भी नहीं बच रहा है। तो क्या इसका मतलब ये निकाला जाय कि आने वाले समय में देश बेहतरीन राजनीतिक ट्रांसफार्मेशन की दिशा में बढ़ेगा। बिहार के चुनाव से फिलहाल तीन बातें तो साफ तौर पर दिखाई दे रही है कि आज की तारीख में केन्द्र की राजनीति के भीतर नरेन्द्र मोदी को डिगा पाने की स्थिति में कोई नहीं दिख रहा है। जो परिस्थिति बिहार के भीतर पैदा की गई है वैसी ही स्थिति आने वाले समय में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु में भी पैदा की जायेगी। राज्य दर राज्य जिस तरह से छत्रपों ने केवल और केवल अपनी राजनीति बचाये रखने के लिए राजनीति की है वह खतरे में है। आने वाले समय में परंपरागत नैरेटिव खारिज होंगे। राजनीति साधने के लिए नये तरीके से नए नैरेटिव गढ़ने होंगे। बिहार के जनादेश से साफ है कि बीजेपी माइनस नितीश कुमार सरकार बना सकती है लेकिन फिलहाल ऐसा होगा नहीं क्योंकि नितीश कुमार की मौजूदगी बीजेपी को राष्ट्रीय स्तर पर मुफीद है। जहां तक चुनाव और चुनावी प्रक्रिया को लेकर उठते सवाल हैं उनका जबाब न तो जनता के पास है न ही देश की सबसे बड़ी अदालत के पास है क्योंकि जनता की आवाज की कोई अहमियत नहीं है और अदालत की आवाज रिटायर्मेंट के बाद मुहैया कराये जाने वाली चकाचौंध में दबा दी गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ट्यूटर अकाउंट पर ईसीआई पर भरोसा और पक्का लिखकर रिश्तों को और प्रगाढ़ता प्रदान कर दी है जिसका नजारा पश्चिम बंगाल के चुनाव में दिखाई देगा ही देगा!
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार




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