खाएं तो खाएं क्या पिएं तो पिएं क्या? हाज़िर हैं सारे सवालों के जवाब
आजकल इंस्टाग्राम पर रील्स बनाकर या यूट्यूब पर चैनल बनाकर हर कोई हेल्थ का एक्सपर्ट बनता जा रहा है। ऐसे में आम आदमी कन्फ्यूज़ हो जाता है कि क्या खाना है? कैसे खाना है? लेकिन फिक्र न करें, खानपान आदि से जुड़े अपने ऐसे भ्रम यहां दूर करें। देश की 2 बड़ी संस्थाओं ICMR (Indian Council of Medical Research) और NIN (National Institute of Nutrition) ने हाल में इस पर विस्तार से 17 गाइडलाइंस जारी की हैं। इनमें कहा गया है कि गलत डाइट यानी खानपान की वजह से होने वाली बीमारियां जिन्हें हम नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज़ (ऐसी बीमारियां जो छूने आदि से नहीं फैलती) पहले नंबर पर हैं। पिछले हफ्ते हमने गाइडलाइंस की मुख्य बातें बताई थीं। इस बार उन्हें विस्तार से जानते हैं:
5 खास बातें
- हर दिन के खाने में करीब आधा हिस्सा सब्ज़ियों, सलाद और फलों का होना ही चाहिए। फलों से ज्यादा अहम सब्ज़ियां हैं।
- खाने में विविधता लाएं। सब्ज़ियां और फल तरह-तरह के खाएं। अनाज में गेहूं-चावल के साथ मिलेट्स भी ज़रूर खाएं।
- खाने से 1 घंटा पहले और खाने से 1 घंटा बाद तक चाय या कॉफी न पिएं। इस वजह से शरीर आयरन को ज़ज्ब नहीं कर पाता।
- विटामिन-C वाले फल (नीबू, संतरा, अमरूद, आंवला, अनन्नास) खाने से शरीर में आयरन को ज़ज्ब करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- एक्सरसाइज़, वॉक, योगासन आदि के बिना फिज़िकल फिटनेस की कल्पना भी मुश्किल है।
कैसे पकाएं दालें और सब्ज़ियां
- सब्जियों को उबालने से बेहतर है हल्का-सा स्टीम करना। इससे सब्ज़ियों में मौजूद पोषक तत्व खत्म नहीं होते।
- माइक्रोवेव में खाना पकाने के दौरान भी पोषण बना रहता है। हां, तब कांच या फिर माइक्रोवेव के लिए सुरक्षित सिरेमिक बर्तनों में ही पकाएं, न कि किसी प्लास्टिक के बर्तन में।
- सब्ज़ियों और खासकर पत्तेदार सब्ज़ियों को ढककर पकाने से भले ही उनका रंग कई बार बदल जाता है, लेकिन उनमें मौजूद पोषक तत्व अमूमन सलामत ही रहते हैं।
- भुनने के दौरान अक्सर हाई टेंपरेचर का प्रयोग किया जाता है। इससे पोषक तत्वों का नुकसान हो जाता है।
- सही तरीके से खाना पकाने से शरीर को सही मात्रा में न्यूट्रिशन मिलता है।
- चावल, दाल आदि को पानी से बार-बार धोने से उनमें मौजूद पोषक तत्व कम हो जाते हैं।
- सब्जियों और फलों को काटने से पहले ही धो लेना चाहिए। काटने के बाद धोने से इनके पोषक तत्व निकल सकते हैं।
- सब्ज़ियों और फलों को काटने के बाद फौरन ही खा लेना चाहिए।
- अंकुरित करने के लिए दानों को कमरे के तापमान पर पानी में 12 घंटों के लिए पूरी तरह डुबो दें। इन्हें फ्रिज में न रखें। इसके बाद पानी को हटा दें। फिर किसी सूती कपड़े को पानी में भिगोकर ढक दें। ध्यान यह रखना है कि यह कपड़ा इस तरह से ढकें कि हवा पास होती रहे।
- डीप फ्राई खाने से बचें। इससे भोजन में मौजूद पोषक तत्व अमूमन खत्म हो जाते हैं।
- सब्जियों और दालों को जल्दी पकाने के लिए बेकिंग सोडा अलग से न डालें। इससे इनमें सोडियम (नमक की तरह) की मात्रा में ही इज़ाफा होता है।
सब्ज़ियां खाने का सही तरीका
- हर दिन 4 मीडियम या छोटी कटोरी (ज़रूरत के हिसाब से) मौसमी और स्थानीय हरी सब्जी ज़रूर खाएं। लंच में 2 कटोरी तो 2 कटोरी सब्जी डिनर में खाएं।
- इनमें से एक वक्त हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल हों तो और भी बढ़िया।
- सब्ज़ियों को पकाते समय यह ध्यान रखें कि ज्यादा तेल का इस्तेमाल न हो।
- ये सब्जियां फाइबर का बेहतरीन सोर्स हैं। ये भी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को पूरा करती हैं। आयरन के बेहतरीन सोर्स होती हैं।
- मौसमी और स्थानीय सब्ज़ियां, पत्तेदार सब्ज़ियां, जड़ वाली सब्ज़ियां (गाजर, मूली), ट्यूबर्स (आलू आदि) सभी हों।
- इन्हें बदल-बदलकर खाने से अमूमन हर तरह के विटामिन, मिनरल, ऐंटिऑक्सिडेंट और फाइबर मिल जाते हैं।
- हर दिन की कुल डाइट में सब्जी, सलाद का हिस्सा 45 फीसदी यानी 400 ग्राम तक होना चाहिए।
किस बर्तन में पकाएं-खाएं
- मिट्टी के बर्तन सबसे बढ़िया: मिट्टी से बने बर्तनों में बहुत कम तेल की ज़रूरत होती है। ये न सिर्फ पर्यावरण के दोस्त हैं बल्कि भोजन के पोषक तत्वों को बनाकर रखते हैं।
- स्टेनलेस स्टील: ज्यादातर घरों में इसका उपयोग होता है। अमूमन यह किसी भी तरह के फूड आइटम्स से कोई रिऐक्शन नहीं करता, इसलिए इसे सेफ माना जाता है।
- मेटल यानी धातु के बर्तन: हम कई तरह के बर्तनों में भोजन पकाते हैं। इनमें अल्यूमिनियम, आयरन, ब्रास या कॉपर नाम अहम हैं। इनमें एसिडिक फूड (अचार, चटनी, सांभर और सॉस) स्टोर करने पर ये नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- टेफ्लॉन कोटेड बर्तन: अगर इन बर्तनों को 170 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गर्म किया जाए तो ये नुकसान पहुंचा सकते हैं। खासकर तब, जब खाली बर्तन को गर्म किया जाए तो इससे ज़हरीला धुआं निकलता है।
किस हिसाब से खाएं
- अनाज और मिलेट्स से हमें किसी भी हाल में 45% से ज्यादा ऊर्जा (कैलरी) नहीं लेनी चाहिए। अभी आमतौर पर हम अनाज से 50 से 70 फीसदी ऊर्जा लेते हैं। यह ज्यादा है।
- दालों, नॉनवेज़ आदि से हम 14 से 15% तक ऊर्जा (कैलरी) लें। दाल, मीट, अंडे आदि से 6 से 9 फीसदी तक ऊर्जा प्राप्त करते हैं, यह काफी कम है। हमें हर दिन कम से कम 14 फीसदी तक तो प्रोटीन के सोर्स से लेना ही चाहिए।
- तेल, घी आदि से हमें 30% तक ऊर्जा (कैलरी) लेनी चाहिए।
- वहीं दूध, दही, ऑयल सीड्स, नट्स से हम 8 से 10 फीसदी तक ऊर्जा (कैलरी) पा सकते हैं।
- अगर हमारी डाइट में हरी साग-सब्ज़ियों की कमी हो तो एनीमिया हो सकता है।
- अगर डाइट में सलाद यानी फाइबर कम हो तो कब्ज़ हो सकती है। साथ ही कई तरह के विटामिंस, मिनरल्स की कमी हो सकती है।
- अगर डाइट में फैट, मिठाई, पैक्ड फूड आइटम्स आदि की मात्रा ज्यादा हो तो कलेस्ट्रॉल, बीपी आदि की परेशानी मुमकिन है।
- हमें हर दिन किसी भी हाल में 20 से 25 ग्राम तक ही शुगर लेनी चाहिए।
- ऐसे पैक्ड आइटम्स से बचना चाहिए जिनमें ऊपर से शुगर या फैट आदि डाला गया हो।
- अगर नट्स, ऑयल सीड्स, मछलियां, चिकन, अंडे आदि खाने हों तो इनमें से किसी 1 या 2 चीज़ों को ही न चुनें। बदल-बदल कर खाएं ताकि हर तरह के प्रोटीन, फैट्स, विटामिंस और दूसरे पोषक तत्व मिल सकें।
फल
- मौसमी और स्थानीय फल हर दिन खाएं। आजकल तरबूज, पपीता का मौसम है। इसलिए इन्हें ज़रूर खाएं। आगे जामुन का मौसम आने वाला है। जामुन शुगर के पेशंट के लिए काफी फायदेमंद है। सेब का विकल्प भी है। अगर शुगर नहीं है तो 1 आम तो हर दिन खा ही सकते हैं।
- हर दिन 1-2 फल खाना काफी है।
- हर दिन एक ही तरह के फल न खाएं। मसलन: हफ्ते में 2 दिन सेब और संतरा, 2 दिन अमरूद और पपीता, जामुन, 2 दिन तरबूज़ और आम, 1 दिन नाशपाती और मौसमी आदि।
- फल माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (जिनकी कम मात्रा में ज़रूरत होती है) के बेहतरीन सोर्स हैं। ये फाइबर व ऐंटिऑक्सिडेंट के भी बढ़िया सोर्स हैं।
- हर दिन की कुल डाइट में फल का हिस्सा 10 से 11 फीसदी यानी 100 ग्राम तक होना चाहिए।
- इन्हें कच्चा यानी सलाद के रूप में भी खा सकते हैं और पकाकर भी।
प्रोटीन
- हर दिन की डाइट में प्रोटीन ज़रूर शामिल करें।
- इंसानी शरीर को सिर्फ 20 तरह के एमिनो एसिड (प्रोटीन के टूटने से बनता है) की ज़रूरत होती है। इन 20 तरह के एमिनो एसिड (Amino Acid:AA) से हज़ारों तरह के प्रोटीन बनते हैं। इनके लिए हमें प्रोटीन के अलग-अलग सोर्स की ज़रूरत होती है। मसलन: दालें भी, सोयाबीन भी, बादाम भी, अगर नॉनवेज़ खाते हैं तो अंडे, मछलियां आदि भी।
- प्रोटीन की कमी से कई तरह की गंभीर परेशानियां हो सकती हैं। इनमें खून की कमी भी एक है।
- एक हेल्दी पुरुष या महिला को औसतन हर दिन करीब 0.66 ग्राम प्रोटीन प्रति किलोग्राम वज़न के हिसाब से ज़रूर लेना चाहिए। मान लीजिए अगर किसी शख्स का वज़न 70 किलोग्राम है तो हर दिन करीब 46 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए।
- अगर भोजन में अनाज और दालों का अनुपात 3:1 हो तो इससे भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाएगी।
- नॉनवेज़ न खाते हों तो दाल, सोयाबीन लें।
प्रोसेस्ड फूड
इस बात समझें कि ऐसे फूड आइटम्स को ज्यादा स्वादिष्ट बनाने के लिए उनमें फाइबर की मात्रा को काफी कम किया जाता है। इसके लिए कई बार प्रोसेसिंग की जाती है। साथ ही उनमें शुगर, फैट आदि अलग से मिलाया जाता है। इस वजह से ऐसे फूड आइटम्स में चीनी और नमक की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है। फैट, ऑयल, रिफाइंड भी काफी मात्रा में मिलाया जाता है। इन सभी की वजह से ऐसे फूड आइटम्स में ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी रहती है। न इनमें अच्छे फाइबर होते हैं और न ही ये विटामिन या मिनरल के अच्छे सोर्स माने जाते हैं।
इतना ही नहीं इनमें कैलरी की मात्रा भी बहुत ज्यादा होती है। इनमें कई तरह के कलर और केमिकल भी मिलाए जाते हैं। मसलन: चीज़, सॉस, मेयोनीज़, जैम, जूस, कोल्ड ड्रिंक, बिस्किट, कुकीज़, केक, पेस्ट्रीज़ आदि।इसलिए हमेशा कम से कम प्रोसेस्ड फूड खाने की कोशिश करें।
नमक
- ज्यादा नमक लेने से हाई बीपी की परेशानी बढ़ जाती है। अपने देश में औसतन कोई शख्स 3 ग्राम से 10 ग्राम तक नमक लेता है।
- औसतन एक शख्स को हर दिन 3 से 5 ग्राम (एक चम्मच) आयोडाइज्ड नमक ही लेना चाहिए। अनाज, दालों, सब्ज़ियों, दूध और नॉनवेज़, समुद्री फूड में सोडियम बहुतायत में मिलता है। वहीं बीन्स, केले और ड्राई फ्रूट्स में पोटैशियम अच्छी मात्रा में मौज़ूद होता है।
- प्रोसेस्ड और प्रिज़र्व्ड फूड से बचना चाहिए। मसलन: सॉस, बिस्किट, चिप्स आदि। ध्यान दें कि मीठी चीज़ों, बिस्किट में भी नमक होता है।
चीनी
- एक सामान्य शख्स को हर दिन चीनी की मात्रा 20 से 25 ग्राम (4 से 5 छोटी चम्मच) से ज्यादा नहीं लेनी चाहिए।
- एक चाय में हम अमूमन एक से डेढ़ चम्मच तक चीनी ले लेते हैं। अगर दिन भर में 3-4 कप चाय पीते हैं तो चीनी का दैनिक कोटा पूरा हो जाता है। तब आपको दूसरी कोई भी मीठी चीज़ नहीं खानी चाहिए। वहीं अगर कोई शुगर का मरीज है तो उसे चीनी लेने से बचना चाहिए या फिर मात्रा एक-चौथाई से भी कम रखनी चाहिए।
- वज़न कम करने के दौरान भी चीनी की मात्रा ज़रूर कम करनी चाहिए।
तेल-घी
- अपने भोजन में इस तरह का फैट ज़रूर शामिल हो। जैसे- अल्फा-लिनोलेनिक (ALA)-3 PUFA (पॉलिअनसैचरेटिड फैटी एसिड) को शामिल करना चाहिए। इनकी मौजूदगी ज्यादातर नट्स (बादाम, अखरोट), ऑयल सीड्स (सरसों, तिल आदि), सोयाबीन, अनाज या मिलेट्स में होती है। यह ब्रेन सेल, नर्व सेल के लिए भी बहुत ज़रूरी है।
- टूना, सालमन समुद्री मछली भी शरीर के लिए अहम है। सैचरेटिड फैटी एसिड्स का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए। मसलन: घी, बटर आदि।
- एक ही तेल को बार-बार गर्म करके इस्तेमाल करना सेहत के लिए खतरनाक है।
कितना पानी पीना चाहिए
- हर दिन एक शख्स को 2 लीटर यानी करीब 8 गिलास के करीब पानी पीना चाहिए।
- पानी आप बैठकर भी पी सकते हैं और खड़े होकर भी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
- पानी में घुले केमिकल खत्म करने के लिए क्लोरीन टैब्लेट का उपयोग करना चाहिए। ऐसी 1 टैब्लेट में 0.5g क्लोरीन होना चाहिए, जिसे 20 लीटर पानी में मिलाना होता है।
- नारियल पानी अच्छा पेय है। 100ml में 15 कैलरी होती है। किडनी और हार्ट के मरीज़ों को इसे पीने से बचना चाहिए।
चाय-कॉफी के साथ खाना नहीं
- चाय और कॉफी में कैफीन होता है। यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करता है। एक 150ml ब्रू कॉफी में 80 से 120mg कैफीन होता है। इंस्टेंट कॉफी में 50 से 65mg, वहीं चाय में 30 से 65mg कैफीन मौज़ूद होता है।
- हर दिन एक शख्स को 300mg कैफीन की लिमिट को पार नहीं करना चाहिए।
- चाय में टैनिन भी मौज़ूद होता है। इसकी वजह से शरीर में आयरन को ज़ज्ब करने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
- खाने से 1 घंटा पहले और 1 घंटा बाद तक चाय-कॉफी लेने से बचना चाहिए।
शराब को न ही कहें
- अगर कोई शख्स हफ्ते में 3 से 4 दिन भी 2 पैग (हर पैग 30ml) लेता है तो उसे हाइपरटेंशन और ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक का खतरा होता है। यह शरीर में ट्राइग्लिसराइड बढ़ा देती है।
- यह फैटी लिवर का अहम कारण हो सकता है। फैटी लिवर के बाद शरीर में कलेस्ट्रॉल, बीपी की परेशानी शुरू हो सकती है।
- कई बार शराब नर्वस सिस्टम को भी नुकसान पहुंचाती है।
- अल्कोहल के ज्यादा इस्तेमाल से मुंह, गले, प्रोस्टेट और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा भी बढ़ता है।
इन सभी के लिए भी गाइडलाइंस प्रेग्नेंट महिला
- अगर किसी प्रेग्नेंट का वज़न प्रेग्नेंसी (9 महीने) के दौरान 10 से 12 किलो तक ही बढ़ता है तो मुमकिन है कि उनका बच्चा भी सेहतमंद हो। इससे (10-12 किलो) से ज्यादा होने पर दिक्कत आ सकती है।
- अगर किसी महिला का वज़न पहले से ही ज्यादा हो (BMI: 23 से 27.5Kg/m2) तो उस महिला का वजन 5 से 9 किलो से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए।
- डाइट में सिट्रस फ्रूट्स (आंवला और संतरा आदि) को शामिल करें। इनमें मौजूद विटामिन-C शरीर में पौधों से मिलने वाले आयरन को ज़ज्ब करने में मदद करता है।
- विटामिन-D की कमी को दूर करने के लिए हर दिन कम से कम 15 मिनट के लिए धूप में ज़रूर बैठें।
- प्रेग्नेंट महिला या फिर ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली किसी भी महिला को बिना डॉक्टर की सलाह कोई भी दवा नहीं लेनी चाहिए।
- हर दिन आयरन, प्रोटीन के लिए अच्छी मात्रा में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, मौसमी सब्ज़ियां और जो नॉनवेज़ खाते हैं वे चिकन, अंडे, मछलियां आदि ज़रूर लें।
ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिला
- बच्चे के जन्म के साथ ही उसका मां के साथ संपर्क होना चाहिए। जल्द से जल्द (1 घंटे के भीतर) ब्रेस्ट फीडिंग शुरू कर देनी चाहिए।
- बच्चों के सही विकास के लिए मां की सही डाइट बेहद ज़रूरी है।
- ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, ओवेरियन कैंसर, मोटापा और टाइप-2 डायबीटीज़ के मामले कम देखे गए हैं।
- ब्रेस्ट फीडिंग शुरू करने से लेकर बच्चे के जन्म के शुरुआती 6 महीनों तक शहद, ग्लूकोज़, वॉटर या मिल्क पाउडर देना सही नहीं है।
- बच्चे के जन्म के 3 से 4 दिनों तक ब्रेस्ट से निकलने वाले दूध (कलास्ट्रम: Colostrum) में विटामिन-A, मिनरल्स, विटामिंस और ऐंटिबॉडीज़ की बहुतायत होती है। इसलिए इसे ज़रूर पिलाना चाहिए।
- ब्रेस्ट फीडिंग करानेवाली महिला हो या प्रेग्नेंट सभी को तंबाकू, शराब, सिगरेट आदि से बचना चाहिए।
छोटा बच्चा
- जब बच्चा 6 महीने का होने वाला हो तो यह समझ लेना चाहिए कि अब इसे मां के दूध के अलावा भी खाना देना होगा।
- घर में बनी हुई चीज़ें देना ही बेहतर है।
- कुछ बड़ा होने पर दूध, लोकल और मौसमी फल व सब्ज़ियां, अंडा दे सकते हैं।
- यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के खाने में नमक की मात्रा कम ही हो।
- बिस्किट, केक, कोल्ड ड्रिंक्स आदि देने से बचना चाहिए। ये प्रोसेस्ड फूड हैं।
- बढ़ती उम्र के साथ खाने की मात्रा भी ज़रूर बढ़ानी चाहिए। इससे ज्यादा उम्र वाले बच्चों के लिए धीरे-धीरे मात्रा बढ़ानी होगी। बढ़ते हुए बच्चों को कैल्सियम, आयरन आदि के लिए दूध, अंडे आदि ज़रूर देने चाहिए।
- मां के दूध के अलावा 2 से 4 बार तक या फिर बच्चे की ज़रूरत के हिसाब से अलग-से खाना देना चाहिए।
- कुछ मात्रा में अंडे व मीट भी दे सकते हैं।
- ब्रेस्ट फीडिंग के साथ दिया जाने वाला खाना, डायरिया या दूसरी बीमारियों के साथ भी देना चाहिए, बशर्ते डॉक्टर ने मना न किया हो।
- भोजन में नमक की मात्रा कम हो।
तब मां का दूध पर्याप्त नहीं
- 500 कैलरी व 5 ग्राम प्रोटीन ही मिलता है 6 माह के बाद बच्चे को उसकी मां के दूध से हर दिन।
- 650 से 720 कैलरी तक देनी चाहिए हर दिन 6 महीने तक के बच्चे को। प्रोटीन की मात्रा 10 ग्राम हो। यह मात्रा उम्र के साथ बढ़ती जाती है।
जब दूध पचाना हो मुश्किल
जब किसी बच्चे को क्रॉनिक डायरिया हो जाता है तो कुछ समय के लिए उसके द्वारा लैक्टोज़ (ग्लूकोज़ जो दूध में मिलता है) को पचाना मुश्किल हो जाता है। यह डायरिया में लैक्टेज़ एंजाइम की कमी की वजह से होता है। इस एंजाइम की ज़रूरत लैक्टोज़ के पाचन के लिए होती है। इस तरह की समस्या में बच्चे को कम दूध दें या फिर दूध की जगह दही देना चाहिए। हां, दूध को पूरी तरह बंद करना सही नहीं है, जब तक कि डॉक्टर न कह दे। ऐसे बच्चों में जब दूध पचाना मुश्किल हो जाए तो उन्हें दालें, चिकन और अंडों को डाइट में ज़रूर देना चाहिए। फिर बाद में दूध को धीरे-धीरे डाइट का हिस्सा बनाना चाहिए।
बुजुर्ग-2050 ईस्वी तक भारत की 20 फीसदी आबादी बुज़ुर्गों की होगी।
- बुढ़ापे की रफ्तार को कम करने के लिए यह ज़रूरी है कि हम प्रोसेस्ड फूड कम से कम खाएं और फाइबर ज्यादा लें।
- उम्र बढ़ने पर भूख में कमी आम है।
- शरीर की क्षमता का कम होना, पाचन शक्ति का कमज़ोर होना बुजुर्गों में सामान्य बात होती है। इसलिए भोजन भी इसी के अनुसार होना चाहिए।
- ऐसा खाना देना चाहिए जिसमें विटामिन और मिनरल के साथ फाइबर की भी मौजूदगी हो।
- 60 साल या इससे ज्यादा उम्र के बाद पाचन और शरीर के ज़ज्ब करने की क्षमता हर साल करीब 0.7 फीसदी कम होती जाती है।
- 60 साल या इससे ज्यादा उम्र के बाद हर साल इनकी डाइट में पानी में भिगोए या फिर उबाले हुए साबुत दाने, उबली हुई बीन्स, हरी और पत्तेदार सब्जियां, दूध ज़रूर शामिल हों।
- 1740 कैलरी लेनी चाहिए 60 साल या इससे ज्यादा उम्र के बुज़ुर्ग पुरुष को हर दिन1530 कैलरी लेनी चाहिए 60 साल या इससे ज्यादा उम्र की बुज़ुर्ग महिला को हर दिन
किसे कहेंगे ओवरवेट और मोटापा
- सामान्य रूप से इसकी परिभाषा BMI (बॉडी मास इंडेक्स) पर आधारित है।
- पेट के चारों ओर फैट का जमा होना ज्यादा हानिकारक है।
- अगर कोई शख्स मोटा है तो इसका मतलब है कि उसे कई तरह की बीमारियां होने की आशंका है। मसलन: टाइप-2 डायबीटीज़, फैटी लिवर, गॉल ब्लैडर में पथरी, जोड़ों (हड्डी) में परेशानियां, हाइपरटेंशन, दिल की बीमारियां, इनके अलावा कुछ मानसिक परेशानियां भी मुमकिन हैं।
- इसलिए ऐसे भोजन से बचना चाहिए जिनमें अतिरिक्त शुगर, फैट, सॉल्ट और ज्यादा प्रोसेस्ड फूड की मौजूदगी हो। ऐसा खाना शरीर में पहुंचने पर ही वज़न बढ़ता है और फिर वह शख्स मोटा होता जाता है।
- हर दिन एक्सरसाइज़ करने से मोटापा कम होता है। पेट की चर्बी घटती है।
- 25% लोग या तो ओवरवेट हैं या फिर मोटे हैं अपने देशे में। इसकी वजह है हाई कैलरी डाइट और फिज़िकल ऐक्टिविटी से दूरी।
BMI ऐसे जानें
- इसके लिए वजन और लंबाई का अनुपात निकाला जाता है यानी BMI = kg/m2 सामान्य शख्स के लिए
- BMI 18.5 से 23 kg/m2 के बीच होनी चाहिए।
- ओवरवेट: BMI 23.1 to 27.5 kg/m2
- मोटापा: BMI 27.5 kg/m2 से ऊपर
- कमर का घेरा: पुरुषों के लिए 35.5 इंच (90cm)
- महिलाओं के लिए: 31.5 इंच (80cm) तक हो।
- इससे ज्यादा होने पर बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है।
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