होली के अवसर पर खूब टल्ली हुए छोरिया और छोरे
छोरियां छोरों से कम है के
होली पर चढ़ा शराब का नशा, जानिए कैसे शराब मिलाती है रंग में भंग
होली रंगों का त्यौहार है पर इस रंगों के त्यौहार में कई लोग प्यार के रंग से नहीं बल्कि नफरत के रंग से होली खेलते हैं या यू कहिए की कई लोगों की होली शराब के नशे से ही बनती है। ऐसा ही कुछ भारत के अंदर आज के समय में देखने को मिल रहा है। रंगों से ज्यादा तो शराब की बोतलों से मनाई जाने लगी है होली ।
आमिर खान अवनीत दंगल फिल्म का एक मशहूर डायलॉग है छोरियां छोरों से कम है के , हालांकि यह डायलॉग है तो हरियाणवी भाषा में मगर यह डायलॉग आज के वक्त में बड़े महानगरों में लड़कियों की शालीनता पर भारी पड़ रहा है । क्योंकि कभी शराब को सिर्फ पुरुषों के लिए माना जाता था कि पुरुष ही शराब पीते हैं मगर महानगर की संस्कृति में अब लड़कियां भी शराब पीने लगी है और लड़कियां खुद शराब के ठेकों से शराब खरीदनी हुई नजर आती है । क्या यही है नया भारत ?
शराब जिसे सेहत के लिए हानिकारक कहा गया है वही शराब आज के समय में समाज के लिए भी हानिकारक साबित हो रही है। पहले के समय में जहा होली को प्यार का और मोहब्बत का त्योहार कहा जाता था, जहां लोग आपस में मिलते थे वही आज के समय में माता-पिता अपने बच्चों को घर से बाहर भेजने के लिए भी डरते हैं। वजह है शराब यही शराब होली के रंगों में भंग डालती है क्योंकि शराब के नशे में अक्सर ज्यादातर लोग अपना होसोहावास खो देते है और होली के त्यौहार में छेड़छाड़, मारपीट जैसे अपराध को अंजाम देते है।
होली के दिन नही हर दिन देखने को मिलता है नया भारत !!
अमिताभ बच्चन की फिल्म शराबी का गाना लोग कहते हैं मैं शराबी नहीं , बहुत ही मशहूर गाना है । मगर आजकल लोग होली के दिन अपने आप को शराबी कहलाना ही पसंद करते हैं । क्योंकि संस्कृति कुछ ऐसी बनती जा रही है कि अगर आप समझ में शराब नहीं पीते हैं तो आपको समाज के लायक नहीं समझा जाता । होली के रंग में हमें भारत कि ज्यादातर हिस्सों में यही रूप देखने को मिलता है । जहा लड़के तो लड़के बल्कि लड़कियां भी शराब के नशे में धुत पाई जाती है। महानगरों में यह संस्कृति बहुत तेजी से पनप रही है । और आने वाले समय में इसके शहरों से छोटे शहरों की तरफ और फिर गांव की तरफ पैर पसारने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता । और फिर यही शराब उनके लिए मुसीबत का कारण भी बनता है। होली के पावन अवसर पर अक्सर लोग जाम छलकत्ते छलकत्ते सही और गलत में अंतर भूल जाते हैं। शराब के नशे में न केवल लड़ाई झगडे देखने को मिलते है बल्कि छेड़छाड़ के भी केस बढ़ते हैं। आज की युवतियां नशे मे गलतियां कर बैठती हैं और बाद में उन्हें पछताना होता है। होली पार्टी में लड़कियां भी नशे में चूर पाई जाती है और जवानी में गलत कदम उठा लेती है।
लड़के भी नशे की आड़ में सही और गलत का महत्व भूलते नजर आते हैं। उनका यह बर्ताव तो संस्कार पर सवाल उठता है की भारत का समाज और संस्कार भारत के युवा आखिर कहां जा रहे हैं? क्या शराब के मजे में वह अपने संस्कार भुला चुके हैं? होली पार्टी में लोग जाते तो खुशी के लिए हैं पर वहां जाकर मारपीट करते हुए नजर आते हैं। शराब लोगों के गुस्से पर भी हावी होता है और उनके गुस्से को बढ़ावा देता है , जिससे अक्सर ऐसी पार्टी में मारपीट बढ़ती देखी जा रही है। इन सब बातों से तो एक सवाल मन में आता है क्या होली का त्यौहार इन सब बातो के लिए बना है या आपस में रंग लगाकर होली खेलने के लिए बना है? जहां एक समय पर प्यार को होली के दिन महत्व दिया जाता था वही आज की युवा रंगों से ज्यादा तो नशों से होली मनाने में यकीन रखते हैं।
हुई महंगी बहुत ही शराब थोड़ी-थोड़ी पिया करो
दिवंगत गजल गायक पंकज उदास की गजल हुई महंगी बहुत ही शराब थोड़ी-थोड़ी पिया करो। होली के त्योहार पर यह बात सच होती हुई नजर आ रही है। होली के त्योहार पर दारू के दाम पिछले साल के मुकाबले थोड़े से ज्यादा ही रहे । लेकिन लोगों ने फिर भी जाम छलकाए। 20 से 60 रुपए अधिक मिली दारू पर भी लोगों के कदम ना लड़खड़ाए और बाकी दिनों से अधिक बिक्री हुई शराब की। जहां रॉयल स्टैग की एक बोतल 750 रुपए की है तो इस बोतल को किसी-किसी जगह पर 800 का भी बेचा जा रहा था। एक अनुमान के अनुसार होली के दिन आम दिनों से लगभग 50% से ज्यादा अधिक दारू की बिक्री हुई ।
सरकारों को अपने खजाने से मतलब ना कि संस्कार से
जहां हर एक राज्य की सरकार अपने खजाने को भरने के लिए हर साल शराब के ठेकों से कमाई करती है मगर यह कमाई समाज और संस्कृति के लिए कितनी खतरनाक साबित हो रही है इस बात पर ना तो सरकार का ध्यान जा रहा है ना ही समाज के प्रभावशाली लोगों का । इन सब बातों से तो एक बात स्पष्ट है कि शराब समाज और समाज के लोगों के लिए मुसीबत का कारण बनती है, ना सिर्फ सेहत बल्कि संस्कृति को भी हानि पहुंचती है। पर क्या यह कहना सही होगा कि अब के समय में त्योहारों का मतलब सिर्फ नशे करना है या उसे परिवार के साथ भी मनाया जा सकता है?
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