खरी-अखरी: हिन्दुस्तान अगर पाकिस्तान में तब्दील हो जाय तो चौकियेगा मत !
राजनीति का सैन्यीकरण कर सेना के राजनीतिकरण की आधारशिला रख दी गई है
26 मई 2025 हिन्दुस्तान के इतिहास में दर्ज हो गई है जब नरेन्द्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री सेना के शौर्य और पराक्रम का राजनीतिकरण करते हुए लोकतंत्र के माथे पर पहली खील ठोंक दी। लोकतंत्र के सीने पर आखिरी खील ठोंकने का काम सेना पर छोड़ दिया है। गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत में भी जो काम जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक नहीं कर पाये, ऐसा नहीं है कि उनके पास मौके नहीं थे, थे और भरपूर मौके थे, उस काम को नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2025 को गुजरात के वडोदरा में करके दिखा दिया। नरेन्द्र मोदी के इस कृत्य को भारत से लोकतंत्र के खात्मे और हिन्दुस्तान को पाकिस्तान बनाने के ऐलान की तरह से देखा जा रहा है ! नरेन्द्र मोदी की इस नापाक हरकत की तुलना ठीक उसी तरह से की जा रही है जब नेताओं ने अपराधिक तत्वों का सहारा लेकर राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत की थी जो आगे चल कर अपराधियों के राजनीतिकरण में बदल गई। लग तो यही रहा है कि जिस तरह से नरेन्द्र मोदी सेना के शौर्य और पराक्रम का उपयोग चुनावी राजनीति के लिए खुले तौर पर पूरी निर्लज्जता के साथ सभी लोकतांत्रिक मर्यादाओं को रौंदते हुए राजनीति का सैन्यीकरण कर रहे हैं तो कल को हिन्दुस्तान के भीतर ऐसे हालात भी पैदा हो सकते हैं जब सेना का राजनीतिकरण हो जाय और वह सत्ता अपने हाथ में ले ले ! उस दिन भारतीय लोकतंत्र और संविधान के सीने में आखिरी खील ठुकेगी और भारत कभी लोकतांत्रिक देश हुआ करता था, इतिहास की किताबों में दर्ज हो जायेगा।
26 मई से पीएम नरेन्द्र मोदी का पंच दिवसीय देशी दौरा शुरू हुआ है। जिसमें वे दो दिन यानी 26 और 27 मई को अपने गृह प्रदेश गुजरात में रहकर बड़ोदरा, भुज, अहमदाबाद, गांधीनगर में रोड़ शो और रैलियां करेंगे। 29 मई को सिक्किम में राज्य गठन के 50 साल होने पर आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में हिस्सा लेंगे। उसके बाद पश्चिम बंगाल पहुंच कर अलीपुरदुआर में जनसभा को संबोधित करेंगे। 30 मई को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जनसभा में भाषण देकर बिहार के रोहतास पहुंच कर कुछ डवलपमेंट प्रोजेक्ट की आधार शिला रखने के साथ ही पटना में हवाई अड्डे के नये टर्मिनल का उद्घाटन करेंगे तत्पश्चात 31 मई को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के नंबूरी मैदान पर आयोजित अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती समारोह में शिरकत करेंगे। महिला सम्मेलन को भी संबोधित करने का कार्यक्रम है।
26 मई को जब पीएम मोदी गुजरात के बड़ोदरा एयरपोर्ट पर पहुंचे तो वहां से एक किलोमीटर दूर एयरफोर्स गेट तक मोदी का रोड़ शो कराया गया, उन पर प्रायोजित तरीके से पुष्प वर्षा कराई गई इतना ही नहीं रोड़ शो के रास्ते में एक मंच पर उसी कर्नल सोफिया कुरैशी, जिसे मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार (भाजपाई सरकार) में शामिल मंत्री विजय शाह ने आतंकवादियों की बहन कह कर संबोधित किया था तथा उस बयान पर स्वमेव संज्ञान लेते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सख्त आपत्ति जताते हुए शाह पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया, के पिता, भाई और जुड़वा बहन को खड़ा कर उनसे भी पुष्प वर्षा करवाई गई। इतना ही नहीं पीएम नरेन्द्र मोदी के इस रोड़ शो को नाम दिया गया सिंदूर सम्मान यात्रा। जिसे सीधे तौर पर सेना के राजनीतिकरण बतौर देखा जा रहा है। एनबीटी ने “गुजरात दौरे में पीएम मोदी का अभूतपूर्व स्वागत, कर्नल सोफिया कुरैशी के परिवार ने बरसाये फूल” हेडिंग लगाते हुए लिखा कि 25 हजार महिलाओं ने स्वागत किया, कर्नल सोफिया कुरैशी का परिवार भी था उपस्थित। भास्कर ने भी हेडिंग “पीएम मोदी के रोड़ शो में पहुंचा कर्नल सोफिया का परिवार – बहन शायना भास्कर से बोली पीएम ने महिलाओं को आगे बढाया।
जाहिर है सेना के शौर्य और पराक्रम को आगे रखकर प्रतीक (सिंदूर) के माध्यम से जो राजनीतिक ईवेंट किया गया उससे जाहिर है कि सेना का राजनीतिकरण किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस पंच दिवसीय ईवेंट का समापन हिमालयन ईवेंट के रूप में 9 जून को किया जायेगा जिस तारीख को नरेन्द्र मोदी अपने ग्यारह सालाना प्रधानमंत्रित्व काल की सालगिरह मनायेंगे। एक बात तो सही है कि मोदी हर काम प्लानिंग के साथ करते हैं। मोदी को करीब से जानने वालों की माने तो जहां पर उनके विपक्षी लोगों की सोच दम तोड़ने लगती है मोदी वहां से सोचना शुरू करते हैं। मोदी के दिमाग में क्या पल बढ़ रहा है उसको समझना तो दूर अंदाजा लगाना भी मुश्किल होता है। 22 अप्रैल को पहलगाम के आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या कर दी जाती है। मोदी तत्काल अपनी विदेश यात्रा बीच में ही छोड़ कर 23 अप्रैल की सुबह दिल्ली लौट आते हैं। फिर वे बिहार की मधुबनी पहुंच कर सीएम नितीश कुमार के साथ हंसी-ठठ्ठा करते हैं। वहां के बाद मुंबई होते हुए केरला पहुंच कर अडानी की तारीफों के पुल बांधते हैं। दिल्ली लौटने के पहले वे आंध्रप्रदेश पहुंच जाते हैं और सीएम चंद्रबाबू नायडू और पवन कल्याण के साथ मंच साझा करते जोरदार ठहाका लगाते हैं। 7 मई को पाकिस्तान के साथ गुथ्मगुथ्था शुरू हो जाती है तथा 10 मई को चौधरी ट्रम्प द्वारा अपने घर से ही ट्यूट कर दोनों को यानी भारत और पाकिस्तान को अलग – अलग कर दिया जाता है। इससे देशभर के राष्ट्रवादियों में गम पसर जाता है फिर भी तिरंगा यात्रा निकाली जाती है मगर उससे विपरीत संदेश जाता देख 12 मई की रात 8 बजे मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश दिया जाता है। वह भी फ्लाप ही रहता है तो नया सिलेबस तैयार करने के लिए 13 मई की अलसुबह मोदी आदमपुर पहुंच जाते हैं। वहां वे तकरीबन एक घंटा बिताते हैं उसमें उनका 28 मिनट का भाषण होता है। नये सिलेबस के लिए सेना के जवानों के साथ बेहतरीन बैकग्राउंड वाले नये फोटोशूट किये जाते हैं। मोदी की कमांडो वाली आदमकद फोटो खींची जाती है। देखते ही देखते देशभर में मोदी का प्रचार-प्रसार शुरू हो जाता है। इससे भी आशातीत सफलता न मिलती देख ब्रह्मास्त्र के तौर पर महिलाओं के पीछे छिप कर सिंदूर सम्मान यात्रा निकाली जाती है।
आईने की तरह साफ है कि इस सारे प्रोपेगेंडा के मूल में है बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के चुनाव। पिछली लोकसभा चुनाव के लिए पुलवामा के शहीदों ने संजीवनी का काम किया था। सारा देश जानता है कि सेना के 40 जवानों की लाश पर खड़े होकर वोट मांगे गये थे। सफलता भी मिली थी। पहलगाम हमला आसानी से चुनावी नैया को पार लगाता हुआ नहीं दिख रहा है शायद इसीलिए राष्ट्रवाद के नये अवतार के रूप में सिंदूर सम्मान यात्रा को पेश किया गया है क्योंकि मोदी बखूबी जानते हैं कि लोग क्या खरीदना चाहते हैं और माल को किस ब्रांडिंग के साथ बेचा जाता है। मोदी की छबि कभी भी हार न मानने वाले नेता की है। प्रोपेगेंडा के लिए उनका अपना पूरा ईको सिस्टम तैयार रहता है। अपने एकतरफा प्रचार के लिए उनका एक अलग ऐजेंडा है उसकी एक अलग लाइन है, वे उसी पर खेलते हैं बिना किसी चुनौती के।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपने 11 साल के कार्यकाल में उठे किसी भी सवाल का जबाव कभी नहीं दिया ऐसा नहीं है वे हर सवाल का जवाब देते हैं एक नया सवाल खड़ा करके (1961 में आई फिल्म ससुराल के एक गाने की तरह – इक सवाल मैं करूं इक सवाल तुम करो हर सवाल का सवाल ही जबाब हो) या पर फिर सवालों पर सवालों की परत बिछा कर। बड़ोदरा में निकाली गई सिंदूर सम्मान यात्रा के रास्ते में पुष्प वर्षा के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी के पिता, भाई, बहन को यूं ही नहीं बुलाया गया कि मोदी को उनसे लगाव है यह भी पहलगाम घटना के बाद से लगातार उठ रहे सवालों पर खाक डालना है। शाह, देवड़ा, जांगड़ा जैसे लोगों द्वारा फ्रंट में खड़े होकर कर्नल सोफिया कुरैशी, सेना, पहलगाम में मारे गए लोगों की विधवाओं पर अनाप-शनाप, अमर्यादित, अशोभनीय, निंदनीय टिप्पणी भी एक सोची समझी रणनीति के तहत की जा रही है। इनकी ऊलजलूल टिप्पणियों का मकसद भी देशभर में उठ रहे सवालों से पिट रही भद्द से ध्यान भटकाना ही है। वास्तव में अगर नरेन्द्र मोदी के मन में सेना, महिलाओं और सिंदूर का जरा सा भी सम्मान होता तो शाह, देवड़ा जांगड़ा जैसे लोग अभी भी खुले आसमान तले सांस नहीं ले रहे होते। मोदी बड़ोदरा में सिंदूर सम्मान यात्रा निकाल कर खुद पर पुष्प वर्षा कराने के बजाय अपनी पत्नी के सामने खड़े होकर खुद पुष्प वर्षा कर रहे होते।
जिस तरह से सोफिया कुरैशी के परिजनों से पुष्प वर्षा कराई गई है कल को कर्नल सोफिया कुरैशी, पूरी सेना को कतार में खड़ा कर पुष्प वर्षा कराये जाने के दृश्य सामने आयें तो देशवासी चौंके नहीं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यही है कि जब सेना की सफलता, उसकी उपलब्धि, उसका शौर्य और पराक्रम बीजेपी और मोदी को सत्ता दिला सकता है तो फिर ये सब सेना को सत्ता तक क्यों नहीं पहुंचा सकता ? भारत की विशेषता यह है कि यहां कभी भी सेना और राजनीति के बीच गठबंधन नहीं हो पाया जैसा हमारे पड़ोसी देशों में है। भारत की सेना ने कभी भी सरकार, सत्ता, सियासत से रत्ती भर भी करीबी नहीं बनाई न ही सरकार, सत्ता, सियासत ने सेना की सफलता, उपलब्धि, शौर्य और पराक्रम के नाम पर वोट मांगे मगर मोदी सत्ता ने अपने 11 वर्षीय कार्यकाल में इस दीवार को तोड़ दिया है और सबसे ज्यादा दुर्भाग्य तो ये है कि अभी तक सेना के शीर्ष नेतृत्व राष्ट्रपति से लेकर सेनाध्यक्षों ने इस पर एतराज नहीं किया है क्योंकि सेना में अब मानेकशॉ, बी पी मलिक जैसे जनरल नहीं हैं।
नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री जो भी कर रहे हैं सही कर रहे हैं और देश भी इसी लायक होकर रह गया है। फिलहाल देश इस दौर में शर्म निरपेक्षता के अमृत काल का आनंद ले रहा है। एक बात और हाल ही पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई बीजेपी और एनडीए के घटक दलों शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक से क्या यही संदेश निकलकर आया है कि मोदी ये स्वीकार कर चुके हैं कि पिछले 11 सालों में हमने देश के लिए धरातल पर कुछ नहीं किया है इसलिए अब सिंदूर के पीछे छुप जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है !
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!